धर्मशाला। नई दिल्ली स्थित भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ) ने तिब्बत पर अपने वार्षिक आउटरीच कार्यक्रम के तहत ०३ से ०५ नवंबर २०२३ तक हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तीन दिवसीय शैक्षणिक दौरे का आयोजन किया। कार्यक्रम में भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) और अंग्रेजी पत्रकारिता विभाग, नई दिल्ली के पैंतीस छात्रों और पांच संकाय सदस्यों ने हिस्सा लिया। प्रतिभागियों के साथ आईटीसीओ समन्वयक थुप्टेन रिनज़िन और कार्यक्रम अधिकारी चोनी छेरिंग भी थे।
पूरे कार्यक्रम के दौरान समूह विविध गतिविधियों में लगा रहा। उन्होंने पहले दिन केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के भ्रमण के साथ अपनी यात्रा की शुरुआत की, जहां उन्होंने सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) के कालोन नोरज़िन डोल्मा से मुलाकात की। सुश्री डोल्मा ने तिब्बत, संगठनात्मक संरचना और सीटीए के कार्यों के बारे में जानकारी प्रदान की। विशेष रूप से अपने विभाग के कार्यों और भूमिका पर प्रकाश डाला। इसके बाद एक प्रश्नोत्तर सत्र में तिब्बत के अंदर की वर्तमान स्थिति, औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों और सीटीए की मध्यम-मार्ग नीति पर चर्चा हुई।
समूह ने निर्वासित तिब्बती संसद (टीपीईई) का भी दौरा किया और सांसद तेनज़िन जिगदल के साथ एक जानकारीपूर्ण बातचीत की। जिगदल ने तिब्बती लोकतंत्र के विकास, चुनाव प्रक्रिया और निर्वासित तिब्बती संसद की कार्यप्रणाली और संरचना पर प्रकाश डाला। तिब्बती सांसद एक प्रश्नोत्तर सत्र में भी शामिल हुए, जहां उन्होंने तिब्बती चुनाव प्रक्रिया, निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर, संसदीय निर्वाचन क्षेत्र और अन्य विषयों को स्पष्ट किया।
दोपहर में समूह ने सीटीए प्रमुख सिक्योंग पेन्पा छेरिंग से मुलाकात की। उन्होंने छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित किया, जिसमें तिब्बती पठार के वैश्विक महत्व, इसके भौगोलिक और पर्यावरणीय आयामों पर चर्चा की गई। इसके अतिरिक्त उन्होंने तिब्बत की राजनीतिक स्थिति, निर्वासित तिब्बती नेतृत्व और ऐतिहासिक भारत-तिब्बत संबंधों से जुड़े विषयों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि तिब्बत और दुनिया के बारे में सूचनाओं से अपडेट रहने के महत्व पर जोर देना मीडिया छात्रों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है। उनके संबोधन के बाद एक चर्चा का सत्र हुआ, जिसके दौरान छात्रों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और तिब्बत के बारे में कई प्रश्न पूछे। सिक्योंग ने सभी सवालों का अपनी वाक्पटुता से जवाब दिया।
इसके अतिरिक्त समूह ने तिब्बती वर्क्स और अभिलेखागार पुस्तकालय (एलटीडब्ल्यूए) का भ्रमण किया, सचिव ल्हावांग के साथ बातचीत की और पुस्तकालय के इतिहास और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी हासिल की।
दूसरे दिन समूह ने तिब्बती चिल्ड्रेंस विलेज (टीसीवी) का दौरा किया और टीसीवी के निदेशक सुल्ट्रिम दोरजी के साथ बातचीत की। यहां समूह ने तिब्बती समुदाय के इतिहास, शिक्षा प्रणाली और टीसीवी के योगदान के बारे में जानकारी हासिल की। इस यात्रा के बाद वे तिब्बती युवा कांग्रेस (टीवाईसी), नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ तिब्बत (एनडीपीटी), और स्टूडेंट्स फॉर फ्री तिब्बत (एसएफटी) सहित प्रमुख तिब्बती गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों से मिले और निर्वासित तिब्बती समुदाय के भीतर उनके संबंधित संगठनों और भूमिकाओं के बारे में जानकारी ली।
समूह ने डीआईआईआर, सीटीए के तिब्बत संग्रहालय का भी दौरा किया, जहां तिब्बती इतिहास में गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त की और नोरबुलिंगका संस्थान के बारे में जानकारी प्राप्त की। तिब्बती लकड़ी की नक्काशी, तैल चित्रकला, थांगका पेंटिंग, गुड़िया संग्रहालय और नोरबुलिंगका मंदिर और दुकान का दौरा करने के साथ ही विभिन्न कलात्मक प्रक्रियाओं का अवलोकन किया।
अंतिम दिन छुगलाखांग मंदिर परिसर, मठों और मैक्लोडगंज और उसके आसपास के अन्य सांस्कृतिक केंद्रों का दौरा शामिल था, जो तिब्बती आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं के बारे में गहन अनुभव प्रदान करता है।
कार्यक्रम का समापन आईटीसीओ समन्वयक थुप्टेन रिनज़िन और कार्यक्रम अधिकारी चोनी छेरिंग को धन्यवाद देने के साथ हुआ और तिब्बत के बारे में ज्ञानवर्धक अवसर प्रदान करने के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। प्रतिभागियों ने अपने मंडलियों और व्यापक भारतीय आबादी के बीच तिब्बत के बारे में जागरुकता बढ़ाने का संकल्प लिया।
अंत में आईटीसीओ समन्वयक थुप्टेन रिनज़िन ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया और प्रत्येक सदस्य को खटक (तिब्बती पवित्र सफेद स्कार्फ) प्रदान किया, उनके भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना की और उम्मीद की कि कार्यक्रम ने तिब्बत और तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में उनकी समझ को समृद्ध किया होगा।