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चीन ने तिब्बत पर अपने कब्जे को वैध बनाने के प्रयास में और अपनी पीठ खुद थपथपाने के उद्देश्य से प्रचार को तेज करने के लिए मंच बनाकर असंख्य कार्यक्रम और दिवस मनाना शुरू कर दिया है। 28 मार्च को ष्दास मुक्ति दिवसष् इन्हीं दिवसों में से एक है। इसकी शुरुआत जनवरी 2009 में की गई थी। विशेष रूप से 10 मार्च को आयोजित होनेवाले तिब्बती विद्रोह दिवस का विस्मृत करने के लिए यह शुरू हुआ। दुनिया भर में चीन के वुहान से निकलकर छा गए कोरोना वायरस के संकट के बादल और महामारी के बावजूद चीन ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा में इस दिवस का आयोजन किया।
तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के अध्यक्ष चे डल्हा (पिनयिनरू क्यूई जाला) ने इस दिवस पर अपने भाषण को टेलीकास्ट करते हुए इस बात पर विस्तार से बताया कि कैसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने तिब्बत को दासप्रथा से मुक्त कराया और तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार और आर्थिक समृद्धि कैसे आई। उन्होंने कहा कि तिब्बत ने कम्युनिस्ट पार्टी के तहत इन 61 वर्षों में धार्मिक स्वतंत्रता का खूब उपभोग किया है। हालांकि ये सभी दावे पुराने और चीन द्वारा गढ़े हुए हैं जिनका उपयोग चीन हमेशा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भ्रमित करने और गलत सूचना देने के लिए करता आया है।
तिब्बतियों के लिए तो इन 61 वर्षों का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन क्रूर कब्जे, दमन और कठिनाइयों के साठ लंबे साल साबित हुए हैं। चीन लोकतांत्रिक सुधार की बात करता है, लेकिन दुनिया जानती है कि चीन में ही जब लोकतंत्र नहीं है तो चे डेल्हा तिब्बत में किस लोकतंत्र की बात कर रहे हैं?
आर्थिक विकास पर सामान्य चीनी प्रचार और सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि सभी दोहराया जाता है। तथ्य यह है कि तिब्बत कभी भी एक गरीब देश नहीं था, लोगों के पास आध्यात्मिकता का पता लगाने के लिए खाने और अच्छी बुद्धि के लिए पर्याप्त था। जहां तक गरीबी उन्मूलन का सवाल है, तिब्बत ने कभी अकाल नहीं झेला है, लेकिन चीनी कब्जे के साथ, यह अकाल पड़ा, जहां कई लोग भुखमरी से मर गए।
आम तौर पर तिब्बत में आर्थिक विकास और सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की बात चीनी प्रचार तंत्र द्वारा बार बार दोहराया जाता है। असलियत यह है कि तिब्बत कभी भी गरीब देश नहीं था। लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त था और वे आध्यात्मिक खोज में लगे रहते थे। जहां तक गरीबी उन्मूलन का सवाल है, तिब्बत ने पहले कभी अकाल नहीं झेला। लेकिन चीनी कब्जे के साथ यह अकाल भी आया जब कई लोग भुखमरी से मर गए।
चीन तिब्बत में जिस 160 अरब युआन की जीडीपी की बात कर रहा है वह आकर्षक लग सकता है। लेकिन ये सारे पैसे कहां गए? तिब्बत के आर्थिक आंकड़ों की करीबी जांच से पता चलेगा कि यह सभी पैसे इन पांच क्षेत्रों में गए हैंरू 1) तिब्बती पठार का सैन्यीकरण, 2) तिब्बत में विशाल चीनी सेना, सुरक्षा बलों और कर्मचारियों का रखरखाव, 3) तिब्बती खनिज संसाधन का शोषण और इन सामानों को चीन तक परिवहन के लिए सड़कों, रेलवे और हवाई अड्डों का निर्माण, 4) तिब्बत के जल संसाधनों का दोहन करने के लिए बांधों का निर्माण, और 5) तिब्बती क्षेत्रों में चीनी मूल की आबादी का बड़े पैमाने पर बसाना।
धार्मिक स्वतंत्रता की बात करे तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शासन में तिब्बत में 6000 से अधिक बौद्ध मठों का विनाश कर दिया गया है। आज भी लारुंग गर और याचेन गर जैसे तिब्बती मठ गंभीर प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टी मठों के प्रशासन और उच्च तिब्बती लामाओं के पुनर्जन्म के चयन में हस्तक्षेप कर रही है, जिसमें परम पावन दलाई लामा का पुनर्जन्म भी शामिल हैं।
अभी अभी जानकारी सामने आई है कि पिछले साल दिसंबर में 75 वर्षीय एक पिता (जम्पा दोरजी) और उनके बेटे को चमडो में परम पावन दलाई लामा के धार्मिक प्रवचन को सुनने के आरोप में हिरासत में लिया गया है। परम पावन दलाई लामा की तस्वीर रखने के लिए लोगों को गिरफ्तार किया जाता है और जेल में डाल दिया जाता है। अभी हाल ही में, 16 मार्च को तेनजिन डेलेक रिनपोछे के करीबी सहयोगी वेन ताशी फुंटसोक की मौत यातना दिए जाने से हो गई। तो धार्मिक स्वतंत्रता कहां है?
चीन ‘दासों की मुक्ति और आजादी’ की बात कहता है, लेकिन यह गलत है। कोई मुक्ति नहीं हुई और न ही कोई आजादी मिली है। आप सेना और बंदूक के बल पर किसी को भी मुक्त नहीं करा सकते। आप जबरन समझौता कराकर किसी को आजाद नहीं कर सकते हैं। तथ्य यह है कि चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया और यह एक क्रूर और अवैध कार्रवाई थी। चीन ने तिब्बत के साथ किए गए समझौते में जो वादे किए थे, उन्हें भी पूरा नहीं किया। मुक्ति, लोकतांत्रिक सुधार और आर्थिक विकास की ये सभी बातें अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने और तिब्बत पर अपने अवैध कब्जे को सही ठहराने के लिए फर्जीवाड़ा और शुद्ध रूप से अफवाह हैं।
’श्री त्सेवांग ग्यालपो आर्या केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) के सूचना सचिव हैं। वह तिब्बतन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के प्रमुख भी हैं।