प्रो0 श्यामनाथ मिश्र
पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खेतड़ी (राजस्थान)
वयोवृद्ध बौद्ध धर्मगुरु परमपावन दलाईलामा के प्रति लोगों की श्रद्धा लगातार बढ़ती जा रही है। इसका ठोस प्रमाण है उनकी सिक्किम यात्रा। इसी दिसबंर, 2023 में उन्हें सिक्किम सरकार ने सादर आमन्त्रित किया था। इसके लिये और इससे भी बढ़कर उनके दर्षन हेतु मुख्यमंत्री प्रेमसिंह तमांग तीन-चार बार हिमाचल प्रदेष के कांगड़ा जिले में धर्मषाला स्थित उनके आवास पहुँचे। उनके ऊपर सिक्किम की जनता का दबाव बढ़ता जा रहा था। दलाईलामा सात-आठ साल से सिक्किम गये नहीं थे। सिक्किम में लाखों लोगों ने दलाईलामा के अभिनंदन तथा प्रवचन में शामिल हो उनके आषीर्वाद प्राप्त किये। इन कार्यक्रमों में राज्यपाल महोदय, मंत्रीगण, अधिकारी-कर्मचारी, जनप्रतिनिधि तथा पत्रकार एवं विद्वान् भी उपस्थित रहे। विभिन्न रिलिजन (मत, पंथ, मज़हब, संप्रदाय) के अनुयायी भी दलाईलामा के प्रेरणापूर्ण प्रवचनों से लाभान्वित हुए। सिक्किम सरकार द्वारा दलाईलामा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए भव्य भोज का आयोजन किया गया। स्वागत एवं सम्मान करने के नाम पर सिक्किमवासी दलाईलामा के प्रेरक योगदान के लिये उनके प्रति भावपूर्ण आभार प्रकट कर रहे थे।
सिक्किम जैसा ही वातावरण पष्चिम बंगाल के सालूगाड़ा में था। यहाँ भी दलाईलामा के प्रवचन में असंख्य लोग पहुँचे। सभी उनके दीर्घजीवन हेतु भगवान् बुद्ध से प्रार्थना कर रहे थे। ज्ञातव्य है कि दलाईलामा अपनी आयु के 89वें वर्ष में हैं। इस उम्र में भी वे पूर्णतः स्वस्थ तथा सक्रिय हैं। वे अपने आध्यात्मिक दायित्व कुषलतापूर्वक निभा रहे हैं। अपनी लंबी उम्र के बावजूद वे यहाँ से पहुँचे बोधगया।
भगवान् बुद्ध को ज्ञानप्राप्ति बोधगया में हुई थी। यहाँ अनेक देषों के बौद्ध मतावलंबियों ने भव्य-दिव्य मंदिर बनवाये हैं। दलाईलामा के आध्यात्मिक अनुष्ठान, प्रवचन एवं उपदेष में भारी भीड़ उमड़ती है। इस वर्ष भी यहाँ यही देखने को मिला। लोग उनके दर्षन कर स्वयं को धन्य कर रहे थे। दलाईलामा अपने प्रवचनों में मानवीय मूल्यों की मजबूती पर जोर देते हैं। उनके अनुसार ये मूल्य प्रत्येक अर्थात् सभी के लिये समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। कोई किसी भी संप्रदाय का हो, वह ईष्वर या आत्मा में विष्वासी हो या अविष्वासी हो-उसे भी जीवन में मूल्य अपनाने होंगे। बौद्ध दर्षन की प्राचीन नालंदा परंपरानुसार ये जीवन मूल्य हैं-शांति, अहिंसा, करुणा, मैत्री, सेवा-सद्भाव तथा परोपकार।
दलाईलामा की मानवीय मूल्यों के प्रति आचार-विचार-व्यवहार में निष्ठा का एक ठोस प्रमाण है नोबल शांति पुरस्कार। उन्हें नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की 34 वीं वर्षगाँठ इसी 2023 में है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस 10 दिसम्बर को उन्हें यह सम्मानपूर्ण पुरस्कार दिया गया था। प्रतिवर्ष इसी उपलक्ष्य में तिब्बती एवं तिब्बत समर्थक विष्वभर में विभिन्न विषेष आयोजन करते हैं। इनमें तिब्बत में जारी चीनी अत्याचार से विष्व समुदाय को अवगत कराया जाता है। शांतिपूर्ण प्रदर्षन, रैली, सभा तथा षिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों के लिये प्रतियोगिताओं के संयोजन से तिब्बती संघर्ष को नई ऊर्जा मिलती है। इस वर्ष भी ऐसा विष्वस्तर पर हुआ। तिब्बत में मानवाधिकारों के हनन के लिये साम्राज्यवादी चीन की कटु आलोचना की गई। सभी सहभागी संगठन एवं विचारक तिब्बती संघर्ष को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये एकजुट दिखाई दिये।
मानवाधिकार दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों में तिब्बती आंदोलन को शांतिपूर्ण एवं अहिंसक बनाये रखने पर जोर दिया गया। दलाईलामा का यही निर्देष है। वे कहते हैं कि तिब्बती संघर्ष हमारा पवित्र उद्देष्य है इसलिये इसकी सफलता के लिये हमें शांति-अहिंसा जैसे पवित्र साधनों का उपयोग करना है। वे इस विषय में गांधी-दर्षन से प्रभावित हैं। वह भी पवित्र साध्य की प्राप्ति के लिये पवित्र साधन अपनाने की सलाह देता है। इन कार्यक्रमों में सभी राष्ट्रीय-क्षेत्रीय-अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों से अपील की गई कि वे तिब्बत की अत्यन्त दयनीय स्थिति को समाप्त करने हेतु चीन सरकार पर दबाव बढ़ायें। चीन सरकार हांगकांग, ताइवान, इस्ट तुर्किस्तान तथा मंगोलिया में भी व्यापक पैमाने पर मानवाधिकारों का दमन कर रही है। चीन सरकार की मानवाधिकार विरोधी नीति का विरोध विष्व की सम्पूर्ण लोकतांत्रिक शक्तियों का महत्वपूर्ण कर्तव्य है।
चीन सरकार अपने पड़ोसी देषों का साजिषपूर्वक चीनीकरण कर रही है। सभी के भूभाग का अतिक्रमण कर रही है। इनके पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है तथा इनकी प्रकृति एवं सम्पत्ति को बर्बाद कर रही है। इनके प्रषासन पर उसका प्रभावी नियंत्रण बढ़ता जा रहा है। भारत में भी वह अलगाववाद-आतंकवाद तथा तस्करी को बढ़ा रही है। तिब्बत पर अवैध नियंत्रण कर चुके चीन की विस्तारवादी नीति पर अंकुष लगाने के लिये संगठित प्रयास करना होगा।
तिब्बती संसदीय प्रतिनिधिमण्डल ने भी अपने वार्षिक तिब्बती जागरुकता अभियान में ‘‘साजिषपूर्ण चीनीकरण नीति’’ को सप्रमाण उजागर किया है। निर्वासित तिब्बत सरकार, जो कि वास्तव में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित तिब्बत सरकार है, के कार्यालय विभिन्न देषों में कार्यरत हैं। दिसम्बर में अपने भ्रमण के दौरान तिब्बती राजदूतों (प्रतिनिधियों) ने अपनी नियुक्ति वाले देषों में विभिन्न सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थानों, जनप्रतिनिधियों, मीडियाकर्मियों, कलाकारों, साहित्यकारों तथा जनमतनिर्माता विचारकों के साथ सार्थक संवाद किया। उन्होंने आह्वान किया कि पूर्ण स्वतंत्रता की जगह तिब्बत को ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ दी जाये। यही मध्यममार्ग नीति है, जो कि चीनी संविधान और राष्ट्रीयता संबंधी कानून के भी अनुकूल है। चीन के पास प्रतिरक्षा एवं विदेष विभाग हो। धर्म, संस्कृति भाषादि विषय तिब्बतियों को मिलें। इस समाधान से चीन की संप्रभुता सुरक्षित रहेगी और तिब्बतियों को स्वषासन का अधिकार मिल जायेगा।