तिब्बती बौद्धों की आजादी के लिए छह दशक लम्बा संघर्ष चलाने वाले तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने निर्वासित तिब्बत सरकार के राजनीतिक प्रमुख से सेवानिवृत्त होने की घोषणा से सारा तिब्बती समाज सकते में आ गया है । तिब्बती विद्रोह दिवस की 52 वीं वर्षगांठ के मौके पर अपने भाषण में यह घोषणा करते हुए नोबल पुरस्कार विजेता नेता ने कहा कि वह सोमवार को औपचारिक रुप से निर्वासित तिब्बती संसद में एक प्रस्ताव पेश करेंगे जिसमें निर्वासित चार्टर में आवश्यक संशोधन किए जा सके जिससे एक निर्वासित नेता को औपचारिक सत्ता सौपंने के उनके फैसले को समाहित किया जा सके । 75 वर्षीय 14 वें दलाई लामा , तेनजिन ग्यात्सो 1959 में भारत पहुंचे थे। उन्होंने तिब्बत की स्वायत्तता के लिए 60 साल तक अहिंसक राजनीतिक संघर्ष किया। तेनजिन ग्यात्सो 6 जुलाई 1935 को तिब्बत में पैदा हुए और महज 15 साल की उम्र में तिब्बत के सर्वाच्च नेता 1950 बने।
तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा के इस फैसले का तमाम तिब्बती समाज में विरोध होना स्वाभाविक ही है। दलाई लामा को तिब्बतियों के एक मात्र राजनीतिक प्रतिनिधि के तौर पर आज पूरी दुनिया में पहचाना जाता है । दलाई लामा ने परम्परा तोडते हुए अपने उत्तराधिकारी का चयन चुनाव द्वारा करवाने की घोषणा की है , लेकिन चीन ने दो दिन पहले ही कहा था कि उनका उत्तराधिकारी पुनर्जन्म के जरिये ही चुना जाना चाहिए। 1959 में तिब्बत छोडने के पहले वह तिब्बतियों के धर्मगुरु होने के साथ ही तिब्बती सरकार के मुखिया भी थे। भारत ने इस घोषणा पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। उसने कहा है कि वह दलाई लामा को धार्मिक गुरु ही मानता है । वहीं चीन ने कहा है कि दलाई लामा को धार्मिक गुरु ही मानता है। वहीं चीन ने कहा है कि दलाई लामा को धार्मिक गुरु ही मानता है। वहीं चीन ने कहा है कि दलाई लामा का फैसला दुनिया को धोखा देने वाला कदम है। चीन की सार्वजनिक प्रतिक्रिया के बावजूद चीन सरकार को दलाई लामा के उस फैसला से राहत महसूस होगी । हालांकि भारत ने कभी भी दलाई लामा को राजनीतिक नेता के तौर पर मान्यता नहीं दी और हमेशा कहा कि वह दलाई लामा को सम्मानित आध्यात्मिक और धार्मिक नेता के तौर पर ही मानता है और उन्हें भारत में राजनीतिक गतिविधि चलाने की कोई इजाजत नही है। राजनयिक सूत्रों के मुताबिक दलाई लामा ने पहले ही तिब्बत को चीन का अंग मानकर तिब्बतियों के राजनीतिक अधिकार त्याग दिए थे, इसलिए उनके द्वारा राजनीतिक भूमिका त्यागना तार्किक कदम ही होगा।
भारत में रह रहे तिब्बती शरणार्थी उनके फैसले से सदमें में है। दलाई लामा 75 साल के हो चुके है, इसलिए उन्हें लग रहा है कि उनके जीवनकाल में ही उनका कोई राजनीतिक उत्तराधिकारी सामने आ जाए । दलाई लामा के हटने के बाद तिब्बती समुदाय को शून्यता महसूस होगी और उनका मनोबल गिरेगा। चीन ने कहा कि दलाई लामा ने पहले भी ऐसी बातें कही है। चीन सरकार और दलाई लामा ने पहले भी ऐसी बातें कही है। चीन चीन सरकार और दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच छह दौर की बातचीत हो चुकी है और तिब्बती चीन से यही चाह रहे है कि अगर वे तिब्बत लौटते है तो उनकी धार्मिक आजादी का पूरा सम्मान किया जाए । हांलाकि दलाई लामा ने तिब्बत को चीन का स्वशासी प्रांत मान लिया है, वह चीन सरकार के अधीन तिब्बत लौटने को तैयार है, लेकिन उनकी शर्त है कि भारत से लौटने वाले तिब्बतियों को धार्मिक आजादी दी जाए । भारत भी चाहेगा कि यहां रह रहे करीब ढाई लाख तिब्बती स्वदेश लौटें और भारत -चीन संबंधों में एक बडा गतिरोधक दूर हो।
दलाई लामा की सेवानिवृत्त घोषणा से हलचल ।
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