तिब्बत की स्वायत्तता का संघर्ष नया मोड़ ले रहा है. यह सच है कि दलाई लामा बूढ़े हो गये हैं और संघर्ष करते हुए थक गये हैं.
अत: राजनीतिक मामलों में उनकी सोच ठीक है कि नेतृत्व अब युवकों के हाथ में जाना चाहिए. सन 1959 में जब साम्यवादी चीन की सरकार का अत्याचार तिब्बत में बहुत बढ़ गया और दलाई लामा के गुप्तचरों ने सूचना दी कि चीन की साम्यवादी सरकार उन्हें कैद कर पेइचिंग ले जाना चाहती है तो रातों रात वह अपने हजारों अनुयायियों के साथ भारत आ गये जहां पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें राजनीतिक शरण दी. इसके बाद भारत और चीन के संबंध अत्यन्त कटु हो गये. अन्त में चीन ने 1962 भारत पर आक्रमण कर दिया.
इस जन आन्दोलन की 52वीं बरसी पर धर्मशाला में निर्वासित तिब्बतियों को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने कहा कि वे करीब पचास सालों से अहिंसक संघर्ष कर रहे हैं और अब समय आ गया है कि वे केवल धर्मगुरु की तरह अपना कत्र्तव्य निभाएं और तिब्बत की आजादी और वहां के लोगों को स्वायत्ता दिलाने के लिए जो संघर्ष करना है वह युवकों के हाथ में आये. यानी राजनीतिक संघर्ष का काम नई पीढ़ी के लोग अपने हाथों में ले लें. उन्होंने कहा कि उनकी उम्र 75 वर्ष से अधिक हो गई है और वे किसी भी दिन दुनिया से जा सकते हैं. परन्तु मरने से पहले ऐसी व्यवस्था कर देना चाहते हैं ताकि नई पीढ़ी अपना संघर्ष जारी रखे.
दलाई लामा के इस ऐलान से धर्मशाला में रह रहे निर्वासित तिब्बतियों के बीच निराशा छाई है. उन्होंने और तिब्बत से बाहर विभिन्न देशों में रहने वाले निर्वासित तिब्बतियों ने उनसे आग्रह किया है कि वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें. दलाई लामा के अनुयायियों का कहना है कि 52 वर्षों से वे तिब्बत की समस्याओं को लेकर इतने व्यस्त रहे कि उन्हें समय ही नहीं मिला कि कोई ऐसा अनुयायी तैयार कर सकें जो उनके बाद तिब्बतियों का अहिंसक संघर्ष जारी रखे.
दलाई लामा ने कहा है कि वे अपने जीवनकाल में ही तय कर देंगे कि अगला दलाई लामा कौन होगा. हो सकता है आगे दलाई लामा दो व्यक्ति हों. एक चीन द्वारा हड़पी तिब्बत की भूमि पर और दूसरा तिब्बत से बाहर. और दोनों में कोई एक महिला भी हो. उन्होंने यह भी कहा कि वे अब दलाई लामा के पुनर्जन्म के विश्वास को समाप्त करना चाहते हैं और उसकी जगह अपने जीवनकाल में ही नये दलाई लामा को नामजद करना चाहते हैं.
दलाई लामा के इस एलान के बाद चीन की साम्यवादी सरकार बौखला गई है. उसके प्रवक्ता पदमाचोलिंग ने कहा कि दलाई लामा का चुनाव एक हजार वर्ष से अधिक समय से पुनर्जीवन के सिद्धान्त पर होता आ रहा है. वर्तमान दलाई लामा उस परम्परा को कैसे समाप्त कर सकते हैं? उन्होंने यह भी कहा कि पुनर्जन्म के विश्वास पर जिस बच्चे को दलाई लामा के रूप में चुना जाता है उसकी मंजूरी चीन की केन्द्रीय सरकार देती है. ऐसा कुईंग राजाओं के समय से होता आ रहा है जिन्होंने चीन पर 1644 से 1912 तक राज किया है.
उन्होंने यह भी कहा कि अगला दलाई लामा वही व्यक्ति होगा जिसने चीन अधिकृत तिब्बत के क्षेत्र में जन्म लिया हो. कहने का मतलब यह है कि वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद चीन की साम्यवादी सरकार जिसे चाहेगी, उसे दलाई लामा बनाएगी. प्रवक्ता के अनुसार दलाई लामा की उम्र भले ही 75 वर्ष हो गई है परन्तु सूत्रों से पता चला है कि वे पूरी तरह स्वस्थ हैं और तिब्बत के लोगों को भड़काकर चीन की सरकार के खिलाफ विद्रोह कराना चाहते हैं
दलाई लामा का कहना है कि यदि अगले दलाई लामा का चुनाव उनकी मृत्यु के बाद हुआ तो निश्चय ही चीन की साम्यवादी सरकार अपने किसी कठपुतली को दलाई लामा घोषित कर देगी और इस तरह तिब्बत की स्वायत्तता का प्रश्न हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा . इसीलिए उन्होंने सोचा है कि उनके जीवनकाल में ही किसी एक या दो व्यक्ति को अगला दलाई लामा बना दिया जाए जिससे यह संघर्ष जारी रहे.
धर्मशाला में अपने संबोधन में उन्होंने यह भी कहा कि निर्वासित तिब्बतियों को मान लेना चाहिए कि उन्होंने तिब्बत को सदा के लिए खो दिया है परन्तु जिस तरह मध्यपूर्व के देशों में अहिंसक आंदोलनों के बल पर लोगों को आजादी मिल रही है वैसा ही आन्दोलन देर-सबेर उन्हें भी जारी रखना होगा. दलाई लामा का कहना है कि जब तक वे जीवित हैं, तिब्बत की निर्वासित जनता का पथ प्रदर्शन करते रहेंगे. परन्तु समय आ गया है जब राजनीतिक मामलों में युवक आगे आएं और तिब्बतियों के अहिंसक संघर्ष को बल दें.
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ दिनों में तिब्बत की निर्वासित सरकार जो धर्मशाला में स्थित है उसके प्रधानमंत्री का चुनाव होने वाला है और नया प्रधानमंत्री कोई ऐसा युवक हो जो तिब्बतियों के संघर्ष को आगे बढ़ाये. अभी तक जितने व्यक्तियों के नाम निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में आया है उनमें पहली पंक्ति में ‘लोबसॉंग संगे’ प्रमुख हैं जो हार्वर्ड विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफसर हैं. उन्होंने कहा कि यदि वे निर्वासित तिब्बतियों के प्रधानमंत्री नियुक्त हुए तो वे संघर्ष को दमदार तरीके से विश्व मंच पर उठाएंगे.