धर्मशाला , प्रेट्र। तिब्बत में बौद्धों के छह दशाक लंबे संघर्ष का नेतृत्व करने वाले ने गुरुवार को राजनीति को अलविदा कह दिया। लेकिन वह तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु बने रहेंगे और तिब्बत के लिए अर्थपूर्ण स्वायत्तता की वकालत करना जारी रखेंगे।
तिब्बत राष्ट्रीय विद्रोह दिवस की 52 जयंती पर संबोधन में दलाई लामा ने अपने सेवानिवृत्ति की घोषणा की । 71 वषीय नोबेल पुरस्कार विजेता दलाई लामा ने कहा कि वह निर्वासित तिब्बती सरकार के राजनितिक प्रमुख का पद छोड देंगे और अपना औपचारिक अधिकार स्वतंत्र रुप से निर्वाचित नेता को सौंप देंगे। लेकिन आध्यात्मिक नेता की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की बात स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वह तिब्बत के न्यायोचित हक को लेकर अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। तिब्बत धर्मगुरु का कहना है कि वह सोमवार को औपचारिक रुप से तिब्बत की निर्वासित संसद में एक प्रस्ताव पेश करेंगे ताकि तिब्बती चार्टर में आवश्यक संशोधन किया जा सके और एक निर्वाचित नेता को औपचारिक सत्ता सौंपने के उनके फैसले को उसमें समाहित किया जा सके।
दलाई लामा के अनुसार , 1960 से ही मैंने बार- बार इस बात पर जोर दिया है कि तिब्बतियों को एक ऐसे नेता की जरुरत है जिसे तिब्बती जनता ने स्वतंत्र रुप से चुना है और जिसे मैं अपनी सत्ता सौंप सकूं । तिब्बती भाषा में 15 मिनट के अपने भाषण में उन्होंने कहा कि सत्ता हस्तांतरण की उनकी इच्छा का जिम्मेदारियों से पीछे हटने से कोई संबंध नहीं है। तिब्बत की आजादी के लिए वह अपना संघर्ष जारी रखेगे।
चीन ने कहा, धोखा देने वाली बात है।
दलाई लामा की सेवानिवृत्ति पर फौरी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चीन ने कहा है कि रिटायर होने की तिब्बती धर्म गुरु की घोषणा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को धोखे में रखने की चाल है । चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जियांग यू ने कहा, धर्म की आड में राजनीतिक बनवास और उनकी गतिविधायों का उद्देश्य चीन को विभाजित करना है। प्रवक्ता के अनुसार , निर्वासन के तहत गठित तिब्बती सरकार एक अवैध संगठन है और दुनिया का कोई भी देश ने इसे मान्यचा नहीं दी है।