हिंदी बीबीसी, 4 जून, 2012
तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा के दो विशेष प्रतिनिधियों ने चीन के साथ नौ दौर की वार्ताओं के बाद इस्तीफ़ा दे दिया है।
निर्वासन में चल रही तिब्बत की सरकार ने एक वक्तव्य में इस्तीफे का कारण चीन की तरफ से कोई भी सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलना बताया है।
अपने इस्तीफे में लोडी जी ग्यारी और केल्सांग ग्याल्टसेन ने कहा: “वर्ष 2008 से तिब्बत में खराब होती स्थिति के कारण बढ़ते आत्मदाह के मामलों की वजह से हम इस्तीफ़ा दे रहे हैं.”
इन दोनो प्रतिनिधियों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है।
चीन सरकार के प्रतिनिधियों के साथ इनकी बातचीत की शुरुआत वर्ष 2002 से हुई थी और आखिरी दौर की बातचीत दो साल पहले जनवरी 2010 में हुई थी.
तिब्बती प्रतिनिधियों के मुताबिक स्वायत्तता के प्रस्ताव पर चीन सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण वो इस्तीफा दे रहे हैं।
उन्होंने कहा, “चीन के एक प्रमुख वार्तकार ने बातचीत के दौरान चीन के संविधान से अल्पसंख्यक के दर्जे को खत्म करने की वकालत की जिससे स्वायत्तता का आधार की खत्म सा हो जाता है। ऐसे हालात में कोई भी सार्थक बातचीत मुश्किल है.”
चीन दलाई लामा पर आरोप लगाता रहा है कि वो बातचीत को लेकर गंभीर नहीं हैं और वो तिब्बत की स्वतंत्रता और कथित हिंसा का समर्थन बंद करें.
चीन का कहना है कि वो सिर्फ दलाई लामा के भविष्य पर बात करेगा और निर्वासन में चल रही सरकार से कोई बातचीत नहीं करेगा।
उधर दलाई लामा का कहना रहा है कि वो तिब्बत की स्वायत्तता चाहते हैं. वो तिब्बत के भीतर अशांति फैलाने के किसी भी आरोप से इनकार करते हैं.
चीन ने वर्ष 1950 से तिब्बत पर मजबूती के साथ शासन किया है जब से उसकी सेना ने तिब्बत में खुसकर वहाँ “शांतिपूर्ण मुक्ति” की घोषणा की थी.
चीन का कहना है कि उसके शासन में तिब्बत में तरक्की की है। वो तिब्बती अधिकारों की अवहेलना के आरोपों को नकारता रहा है।
वर्ष 1959 में दलाई लामा ने तिब्बत से भागकर भारत का रुख किया था। निर्वासन में काम कर रहे तिब्बती गुटों का कहना है कि आत्मदाह के दो प्रयासों के बाद तिब्बत के भीतर बेचैनी है।
आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2011 से अब तक 35 तिब्बतियों ने तिब्बत में चीन के शासन के विरोध में आत्मदाह किया है, जिनमें से करीब 27 की मौत हो चुकी है, हालाँकि ज्यादातर आत्मदाह के प्रयास तिब्बती इलाकों में कथित “तिब्बत स्वायत्त इलाके” में हुए हैं।