तिब्बती लोकतंत्र दिवस की 56वीं वर्षगांठ पर निर्वासित तिब्बती संसद का बयान
आज 2 सितंबर, 2016 है, वह बेहतरीन दिन, जिस दिन हम उदात्त तिब्बती लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना की 56वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, जिसमें कि सर्वश्रेष्ठ धार्मिक एवं राजनीतिक चरित्र को समाहित किया गया है। इस अवसर पर मैं, निर्वासित तिब्बती संसद की तरफ से तिब्बत के भीतर और निर्वासन, दोनों जगहों पर रहने वाले अपने प्यारे तिब्बती साथियों को अपनी बधाई और शुभकामना देता हूं।
वर्ष 1959 में चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने सैन्य बल का इस्तेमाल कर समूचे तिब्बती क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और तिब्बती जनता पर अपना शासन थोप दिया। इसकी वजह से तिब्बत के सर्वोच्च लौकिक और आध्यात्मिक प्रमुख परमपावन दलाई लामा के पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा कि अपनी मातृभूमि को छोड़ दें और पड़ोसी देश भारत की पवित्र भूमि पर शरण मांगें। इसी तरह अस्सी हजार से ज्यादा तिब्बती परमपावन दलाई लामा के पदचिह्नों पर चलकर निर्वासन में जाने को मजबूर हुए। भारत की जमीन पर कदम रखने के तत्काल बाद परमपावन दलाई लामा ने एक निर्वासित तिब्बती सरकार की सभी संस्थाओं को फिर से खड़ा करने की कोशिश शुरू कर दी। इसके साथ ही उन्होंने नए निर्वासित तिब्बती संसद की स्थापना की प्रक्रिया भी शुरू कर दी, जिसमें तिब्बत के तीनों परंपरागत प्रांतों और तिब्बत की विभिन्न धार्मिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य शामिल किए गए। 2 सितंबर, 1960 को निर्वासित तिब्बती संसद के पहले सदस्यों ने औपचारिक तौर पर शपथ ग्रहण किया और यह तिब्बत की एक उदात्त लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत का सूचक था। वर्ष 1961 में भविष्य के तिब्बत के लिए एक संविधान की बुनियादी विशेषताओं को रेखांकित करने वाले एक दस्तावेज की घोषणा की गई। वर्ष 1963 में तिब्बत के एक संविधान का ऐलान कर दिया गया। वर्ष 1991 में परमपावन दलाई लामा ने चुने हुए संसद के लिए कार्यकाल निर्धारित किया, उसके सदस्यों की संख्या बढ़ाई और अन्य बदलाव किए ताकि उसे एक सार्थक कानून निर्माण निकाय बनाया जा सके। इस विकास के क्रम में ही परमपावन दलाई लामा ने 28 जून, 1991 को निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर को अपनी मंजूरी दी, जिस पर 11वें निर्वासित तिब्बती संसद ने चर्चा की थी और उसे स्वीकार किया था।
तब के बाद के तमाम वर्षों में अब तक निर्वासित तिब्बती संसद केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के लिए विभिन्न आकार के करीब 30 विधायी अधिनियम और नियम-कानून अपनाने में सक्षम रहा है। वर्ष 2001 में एक नई व्यवस्था स्थापित की गई, जिसके द्वारा तिब्बती जनता ने केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के कार्यकारी प्रमुख कालोन ट्रिपा का सीधा चुनाव करना शुरू किया। यह निर्वासित तिब्बती जनता के लोकतांत्रिक विकास की दिशा में एक बड़ा कदम था। खासकर वर्ष 2011 में परमपावन दलाई लामा ने खासकर तिब्बती जनता की तात्कालिक और दीर्घकालिक, दोनों तरह के हितो को ध्यान में रखते हुए और तमाम तरह के फायदों-नुकसान और उनमें निहित कारणों का मूल्यांकन करते हुए, अपने सभी ऐतिहासिक राजनीतिक एवं प्रशासनिक ताकतों को त्याग कर उसे स्वयं तिब्बती जनता द्वारा चुने जाने वाले नेताओं को सौंप दिया। परमपावन इस बात पर सहमत हुए कि तिब्बत के भीतर और निर्वासन में रहने वाले तिब्बतियों का वे सांकेतिक प्रतिनिधित्व करते रहेंगे और निश्चित रूप से उनको अपनी प्रभावी सेवा देंगे तथा निर्वासित तिब्बती लोकतांत्रिक संस्थाएं उसी के अनुरूप चलती रहेंगी जैसी कि परमपावन दलाई लामा की इच्छा थी।
निर्वासित तिब्बतियों के बीच लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थिरता हासिल कर पाएगी और उसमें प्रगति होगी, यह काफी कुछ बौद्धिक परिपक्वता, अन्य सभी से ऊपर समूचे जनता की व्यापक भलाई को कायम रखने की क्षमता और तिब्बती जनता के बीच सहयोग की भावना पर निर्भर होगा। इसी समझ के साथ हाल में जब 16वीं निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्यों ने शपथ ग्रहण किया तो उन्हें अलग-अलग टीमों में विभाजित कर दिया गया और उन्हें उन विभिन्न जगहों पर दौरे की जिम्मेदारी सौंपी गई जहां-जहां तिब्बतियों की बस्ती है। इन टीमों को यह एजेंडा सौंपा गया कि वे तिब्बती जनता को व्याख्या के साथ समझाएं-और इस तरह से उनके विश्वास को बढ़ाएं-कि परमपावन दलाई के प्रचुरता से लगातार फल-फूल रहे कार्य क्या हैं, आज तिब्बत में हालात कितने दुखदायी हैं, वैश्विक राजनीतिक हालात में तिब्बत मसले की क्या स्थिति है, तिब्बती जनता के लिए अपनी आंतरिक एकजुटता बनाए रखना और उसे मजबूती देना कितना जरूरी है, आदि। स्थानीय तिब्बती बस्तियों और काॅलोनियों, उनके विभिन्न वर्गों और साथ ही व्यक्तियों द्वारा अपनी शिकायतों के बारे में जो ज्ञापन आदि दिए गए उसे शासन के मुख्य अंग केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के कार्यकारी कशाग और उसके तहत आने वाले अन्य संबंधित विभागों तथा प्रशासनिक निकायों को भेजा गया ताकि उन्हें समय से मदद मिल सके और उनकी समस्याओं का समाधान हो या उनमें कमी आ सके। तिब्बती जनता की समस्याओं को हल करने के लिए प्रयासों की यह विधि एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। इस तरह के प्रयासों के द्वारा निर्वासित तिब्बती प्रशासन ने अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लगातार चलने वाले प्रयासों के साथ केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और आम जनता के बीच एक सेतु की तरह का दर्जा हासिल कर लिया है।
निर्वासन में तिब्बती लोकतंत्र के विकास के बारे में इस समय एक महत्वपूर्ण मसला बार-बार दोहराया जा रहा है। हाल में सिक्योंग के चयन और निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्यों को चुनने के लिए हुए तिब्बती आम चुनाव। इन चुनावों में ऐसी कई घटनाएं देखी गईं जिनमें तिब्बती यह भूल गए कि तिब्बत के भीतर कितने दुःखद हालात हैं और तिब्बत की जनता को ऐसे ही हालात में ही रहना पड़ रहा है और कुछ लोग इस बात की सराहना करने में विफल रहे कि तिब्बती जनता के लिए अपनी उदात्त परंपराओं और रिवाजों का संरक्षण और उनको बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है, जो कि उनके अंदर बिना किसी क्षरण के निहित होना चाहिए। इसकी जगह, चुनाव प्रचार के दौरान हर क्षेत्र में सीमाओं का उल्लंघन किया गया, जो कि काफी हद तक विरोधी और कट्र समर्थक तैयार करने वाला था। यह एक तरह का ऐसा कलहपूर्ण चुनाव अभियान का अनुसारण था जो कि दुनिया के पूरी तरह से स्वतंत्र और ताकतवर लोकतांत्रिक देशों में ही होता है। इन सबसे तिब्बती जनता के अतुलनीय अगुआ परमपावन दलाई लामा परेशान हो गए और आखिरकार उन्हें कुछ बोलना ही पड़ा। बाद मेें सिक्योंग के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान कई अन्य बातों के अलावा परमपावन ने यह भी कहा, ”सांप्रदायिक या अन्य ऐसे समूह जैसे प्रांत के आधार पर समूह में बंट जाना और संकीर्ण स्थानीय हितों के लिए अन्य तरह के विवाद, सिर्फ वर्तमान के मामूली अस्थायी उद्देश्य के लिए, और कुछ नहीं बल्कि कहा जा सकता है कि एक तरह के संकीर्ण सोच वाले स्वार्थी फायदे उठाना ही है। यह सब अच्छी बात नहीं है। हम तिब्बत के तीनों प्रांतों के लोग एक जनता हैं, अपनी खुशी साथ मिलकर बांटते रहे हैं और उसी तरह दुख के क्षणों में भी साथ रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम एक जनता के समुदाय है, जो अपने सुख और दुख के क्षणों को साझा करते हैं। हम सबको यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि इस तरह से प्रांतवाद जैसी चीजों के आधार पर कभी भी कोई सांप्रदायीकरण न किया जाए और मैं चाहता हूं कि आप सब इन बातों को ध्यान मंें रखें।” बाद में परमपावन दलाई लामा जब अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में जुटी तिब्बती जनता को संबोधित कर रहे थे तो उन्होंने यह बहुत सहज करने वाला भरोसा दिया, ”सभी तरह के असंगत मसले, जो हाल में संपन्न तिब्बती आम चुनाव के दौरान सामने आए हैं, अब पूरी तरह से दब चुके हैं, जैसे तमाम झंझावातों के बाद आसमान साफ हो गया हो। अब आप सहजता महसूस कर सकते हैं।“ जैसा कि परमपावन ने बताया, कार्यकारी कशाग और निर्वासित तिब्बती संसद, दोनोें के प्रमुखों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं, दोनों अब पूरी तरह से अपनी-अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में लग गए हैं। अब सभी तिब्बतियों को अपने प्रयासों का एकीकरण करना चाहिए, इस बुनियादी आधार पर कि भाईचारे का एक अटूट गठजोड़ बना रहे, जो विचारों और अभिव्यक्ति के सुस्पष्ट साझेपन और वास्तविक कार्य के द्वारा संचालित हो और एक बिंदु वाले उपकरण जैसे एकता को बनाए रखा जाए। इसलिए अब समय आ गया है कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सभी अधिकारी और आम तिब्बती जनता सहकारी तरीके से काम कर एक ऐसा सकारात्मक बदलाव लाएं जिससे एकता का उद्देश्य पूरा हो।
इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि चीन सरकार तिब्बत के प्रति अपनी नीति में कोई बदलाव ला सकती है। सच तो यह है कि तिब्बती के प्रति उसकी नीति और दमनकारी तथा अशुभसूचक होती जा रही है। मैं वहां पिछले कुछ महीनों में ऐसी परिस्थिति के बनने का कुछ उदाहरण देना चाहता हूं। चीन यह भ्रामक सूचना दे रहा है कि तिब्बत के किरोंग काउंटी तक रेलमार्ग बनाने की उसकी योजना पूरी होने के पीछे, जो कि हिमालय के पार नेपाल सीमा के बहुत करीब है, उसका इरादा तिब्बत को दक्षिण पूर्व एशिया के प्रमुख बाजारों, खासकर भारत से जोड़ने का है। वह यह गलत व्याख्या भी कर रहा है कि किरोंग में पर्यटन के विकास से, जो कि काफी सुंदर प्राकृतिक दृश्यों वाला है, स्थानीय तिब्बती जनता की जीविका की समस्या हल हो जाएगी। हालांकि, सच्चाई तो यह है कि यह परियोजना इस तरह से तैयार की गई है कि इससे चीन की दीर्घकालिक विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाया जा सके और इससे तिब्बत के साथ ही नेपाल और भारत जैसे पड़ोसी देशों के लिए भी गंभीर क्षेत्रीय जोखिम है।
भूमि का वह टुकड़ा जो समूचे तिब्बती पठार के किसानों और घुमंतू लोगों का है और जहां वे कई पीढ़ियों से स्वतंत्र तरीके से जहां चाहे आ-जा सकते थे, ताकत के बल पर छीना जा रहा है या उसको विभाजित कर दिया जा रहा है, इसकी वजह से उनके सामने जीविका का भारी संकट आ खड़ा हुआ है। तिब्बती घुमंतू लोग, जिन्होंने प्रशासन के सामने याचिका दी है कि उनके परंपरागत घास भूमि पर या तो उन्हें समान स्वामित्व दिया जाए या उन्हें वापस किया जाए, न सिर्फ पूरी तरह से नजरअंदाज किए जा रहे हैं, बल्कि उनका उत्पीड़न भी किया जा रहा है। उदाहरण के लिए हाल में ही सोएपा नाम के एक तिब्बती बौद्ध भिक्षु को सेरशुल काउंटी सरकार के सचिवालय के बाहर ही गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह प्रशासन को यह याचिका देकर वापस आ रहे थे कि उस जमीन का उचित तरीके से पुनर्वितरण किया जाए, जिसे सैन्य बलों ने स्थानीय तिब्बतियों से अवैध तरीके से छीन लिया है। चीनी पुलिस जब उन्हें पकड़कर ले गई तो स्थानीय सरकारी अधिकारियों ने उनसे कहा कि जमीन अंततः सरकार की है और तिब्बती घुमंतू समुदाय को यह बात जान लेना चाहिए कि इस जमीन पर उनका कोई मालिकाना हक नहीं है। उन्हें यह भी चेतावनी दी गई कि निकट भविष्य में यदि तिब्बतियों ने जमीन के मसले पर चीन सरकार के निर्णय का सम्मान न करते हुए अधिकारियों को याचिका देने जैसा कदम उठाया तो पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेगी और जेल में डाल देगी। ऐसी परिस्थिति को देखते हुए तिब्बतियों के लिए यह बेहद कठिन हो गया है कि अपने पुरखों की जमीन के सहारे अपनी जीविका को बनाए रख सकें।
इसी तरह से पहले वर्ष 2002 में भी चीन, तिब्बत के कार्जे तिब्बती स्वायत्त प्रशासनिक क्षेत्र में स्थित सरता काउंटी के सरता लारुंग नांगतेन लोबलिंग में एक बर्बर नीति लागू कर चुका है, जिसके तहत उसमें पढ़ने वाले भिक्षुओं और भिक्षुणियों की संख्या में भारी कटौती कर दी गई थी, भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों के आवास को ढहा दिया गया था और अन्य तमाम तरह के दमनकारी कदम उठाए गए थे। इस साल चीन ने फिर से इसी तरह का एक आदेश जारी किया, यह कहते हुए कि धार्मिक अकादमियों में बहुत ज्यादा भिक्षु और भिक्षुणी हैं और उनकी संख्या में भारी कटौती करनी होगी, यह भी कहा गया कि भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आवास की संख्या भी बहुत ज्यादा है, इसलिए उन्हें ढहा देने की जरूरत है। इस आदेश पर 20 जुलाई से अमल किया जाने लगा और यह अब भी जारी है और इस तरह से प्रसिद्ध लारुंग बौद्ध अकादमी की गरिमा और ख्याति तथा पवित्रता का कोई भी ध्यान या चिंता नहीं की जा रही है। यह मामला हमारे लिए गहरी चिंता का विषय है। अमेरिकी सरकार और अन्य कई प्रमुख मंचों ने इस घटनाक्रम पर ध्यान दिया है और इसके प्रति गहरी चिंता जताई है। लारुंग गार बौद्ध अकादमी के भिक्षु और भिक्षुणियांें ने अपने को पूरी तरह से बौद्ध धर्म के अध्ययन और उसकी संस्कृति तथा विज्ञान के प्रति समर्पित किया है और वे बौद्ध धर्म का फायदा ही चाहते हैं, वे ऐसे प्राणी हैं जो किसी तरह की अवैध गतिविधि में भी शामिल नहीं हैं। चीन सरकार की इस तरह की कार्रवाइयों से धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति उसका दोहरापन उजागर हो गया हैः वह अक्सर दावा करती रही है कि तिब्बत में धार्मिक आज़ादी है। लेकिन इससे यह बात साफतौर पर उजागर हो गई है कि वास्तव में वहां धार्मिक आज़ादी पर तमाम तरह के अंकुश और प्रतिबंध लगे हुए हैं।
इसी तरह से 28 जुलाई, 2016 को चीन सरकार ने नाबा काउंटी में स्थित कीर्ति मठ के हर निवासी को एक पुस्तिका दी, जिसका शीर्षक था-”मठों के लिए केस आधारित कानून सीखने की पाठ्यपुस्तक“ और उसने एक कठोर आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया था कि हर भिक्षु को इस पुस्तिका का गहराई से अध्ययन करना होगा। केस आधारित कानून सिखाने वाली यह पुस्तक तिब्बती और चीनी, दोनों भाषाओं में थी। तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों ने बताया है कि यह और कुछ नहीं बल्कि चीन सरकार द्वारा तिब्बत में लागू की जाने वाली अपनी बर्बर नीतियों को वैधानिकता का जामा पहनाने का प्रयास है, जो कि अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए लागू हैं। चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपने हिंसक दमन को ढंकने के लिए ऐसे गुमराह करने वाले दस्तावेज प्रकाशित कर रही है जिसमें तिब्बती जनता के ऊपर निराधार आरोप लगाए जाते हैं।
तिब्बती जनता के अपने बुनियादी हितों के लिए संघर्ष के सभी पहलुओं को देखते हुए अमेरिका, यूरोपीय देशों सहित दुनिया भर की सरकारें, संसद, विभिन्न तरह के संगठन आदि लगातार अपना समर्थन दे रहे हैं। खासकर भारत सरकार और यहां की जनता का समर्थन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। हाल में डिप्टी स्पीकर के नेतृत्व में निर्वासित तिब्बती सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली में भारतीय संसद के मानसून सत्र के दौरान दोनों सदनों के कई संसद सदस्यों से मिला। इस मुलाकात का उद्देश्य सांसदो के बीच एक तरह की घनिष्ठता कायम करना, तिब्बत मसले के सभी पहलुओं के बारे में जागरूकता पैदा करना और इसके लिए समर्थन हासिल करना था। आज जब हम यहां थेकछेन चोलिंग परिसर में तिब्बती लोकतांत्रिक दिवस की 56वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो हमारे बीच समारोह में भारतीय संसद के कई सदस्य शामिल हुए और उन्होंने भाषण भी दिया, एक तरह से कहें तो उन्होंने तिब्बत के मसले पर अपना समर्थन दिया है। मैं इस अवसर पर उन सभी लोगों धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने तिब्बत मसले में रुचि दिखाई है और इसे अपना समर्थन दिया है।
इस बुनियादी सवाल की बात करें कि किस तरीके से तिब्बत की समस्या का हल निकल सकता है, तिब्बती जनता के सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का संरक्षण किया जा सकता और उसे आगे जारी रखा जा सकता है और अन्य संबंधित मसलों के बारे में कहें तो मुख्य कारक यही रहेगा कि तिब्बती जनता जोश के साथ परमपावन दलाई लामा की इच्छा को ध्यान में रखते हुए हर समय अपने सभी प्रयासों के द्वारा कुछ नतीजे देने वाले काम करे। इसके मुताबिक हम हर तिब्बती से यह आह्वान करते हैं कि वह अडिग रहे और हर समय अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं के प्रति दृढ़ रहे। यही सबसे महत्वपूर्ण बात है।
अंत में हम यह प्रार्थना करते हैं कि तिब्बती जनता के बहुमूल्य अगुआ परमपावन दलाई लामा हजारों साल तक जीएं, उनकी सभी आकांक्षाएं सहजता से पूरी हों और तिब्बती जनता का उद्देश्य तेजी से पूरा हो सके।
निर्वासित तिब्बती संसद,
धर्मशाला
2 सितंबर, 2016
नोट: इस अनुवाद और मूल तिब्बती पाठ के बीच अनजाने में हुई किसी तरह की असंगतता दिखने पर तिब्बती पाठ को ही आधिकारिक और अंतिम माना जाए।