आज १० मार्च को ठीक ६४ साल पहले इसी तारीख को १९५९ में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के कब्जे के खिलाफ तिब्बती लोगों का विद्रोह हुआ था। तिब्बत की राजधानी ल्हासा में लगातार तीन साल तक इस तारीख को हिंसक प्रदर्शन होने के बाद आज ही के दिन ३४ वर्ष पहले १९८९ में पीआरसी द्वारा तिब्बत में पहली बार मार्शल लॉ लागू किया गया था। और १५ वर्ष पहले २००८ में आज ही के तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों में शांतिपूर्ण विद्रोह की ज्वाला दहक उठी थी। इसलिए इन तीन महत्वपूर्ण और पवित्र अवसरों की वर्षगांठ पर हम अपने हमवतनों और शहीदों को याद करते हैं और उनका सम्मान करते हैं जिन्होंने तिब्बत के लिए बिना मोल लिए अपनी जान दे दी। हम उनके परिवार के सदस्यों और उनके साथ एकजुटता से खड़े हैं जो अभी भी पीआरसी के कब्जे के दमनकारी शासन से पीड़ित हैं।
हम श्री मिकुलस पेक्सा के नेतृत्व में चार-सदस्यीय यूरोपीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल, श्री सल्वाडोर कारो कैबरेरा के नेतृत्व में मेक्सिको के नौ-सदस्यीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल, तिब्बत समर्थन समूहों के सदस्यों, लिथुआनियाई संसद के सदस्य श्री अरुणस वालिंस्कास और नेशनल एनडॉमेंट फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष श्री डेमन विल्सन सहित अपने विशिष्ट अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। इस महान अवसर पर हम तिब्बती लोगों के साथ एकजुटता प्रकट करने के लिए और राजनीतिक समर्थन के संकेत के तौर पर हमारे साथ शामिल होने वाले सभी लोगों के प्रति तहे दिल से धन्यवाद व्यक्त करते हैं।
चौसठ साल पहले इसी दिन को परम पावन १४वें दलाई लामा को ल्हासा के चीनी सैन्य मुख्यालय में एक नाटक देखने के लिए आमंत्रित किया गया था। परंपरा के विरुद्ध जाकर परम पावन को सीमित संख्या में निहत्थे पहरेदारों के साथ शो में भाग लेने का आदेश दिया गया था। जब यह जानकारी तिब्बती लोगों तक पहुंची तो वे उबल पड़े और परम पावन दलाई लामा को शो में शामिल न होने और तिब्बत में पीआरसी सरकार द्वारा शुरू की गई दमनकारी नीतियों के खिलाफ सामूहिक विद्रोह शुरू कर दिया। खाम और अमदो में कुछ साल पहले लागू किए गए तथाकथित लोकतांत्रिक सुधारों की यादें अभी भी ताजा ही थीं, इसलिए विद्रोह शुरू हो गया। तिब्बतियों को सामूहिकता और करों को बढ़ाने के नाम पर उनकी भूमि, पशुधन और उत्पादन के साधनों को जब्त करके एक साथ भूमि सुधार और सहकारी व्यवस्था शुरू की गई थी। धार्मिक सुधार के नाम पर भिक्षुओं और भिक्षुणियों को चीवर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और मठों को ध्वस्त कर दिया गया। जब तिब्बतियों ने विरोध किया तब लामाओं और आम नेताओं को धोखे से कैद कर लिया गया। तिब्बतियों पर ‘दस्यु’ और ‘विद्रोही’ का ठप्पा लगाकर उनका नरसंहार किया गया और उनका दमन किया गया। लगभग पिछले आठ वर्षों तक तिब्बतियों ने यह भी देखा था कि कैसे तिब्बत में पीआरसी नेतृत्व ने १७ सूत्रीय समझौते की शर्तों का घोर उल्लंघन किया था।
तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह ने परम पावन दलाई लामा और अन्य तिब्बती आध्यात्मिक और राजनीतिक नेताओं की चीनी सैन्य शिविर की यात्रा को टाल दिया और इस प्रकार इस घटना ने तिब्बती लोगों का भाग्य को बदल दिया। तिब्बत के देवताओं और दैवकृपा द्वारा संरक्षित और तिब्बती राष्ट्रीय सेना के सैनिकों और डेथ वॉलेंटियर आर्मी के चुशी गंगड्रुक रक्षकों द्वारा रक्षित परम पावन दलाई लामा ने कशाग के मंत्रियों के साथ स्वतंत्रता के लिए सुरक्षित रूप से निर्वासन में जाने का रास्ता चुना। तिब्बती सरकार के अधिकारियों सहित लगभग ८०,००० तिब्बतियों ने उनका अनुसरण किया। इस निर्वासन में जाने के निर्णय ने तिब्बतियों की राष्ट्रीय पहचान को मिटाने के लिए पीआरसी सरकार द्वारा किए गए हर प्रयास का विरोध करने के लिए तिब्बतियों में भावना और साहस के साथ अडिग नींव रखी।
चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा तिब्बत पर आक्रमण के दौरान लगभग १२ लाख तिब्बती मारे गए, ६००० से अधिक मठों का विनाश हुआ और साथ ही वनों की कटाई और वन्य जीवन का विनाश और खनिज संसाधनों का दोहन हुआ। तिब्बत को हुए भारी विनाश से सबक सीखने में नाकाम पीआरसी के अधिकारी वही गलती दोहरा रहे हैं और यहां तक कि अपने अपराध को ढंकने के लिए आंख मूंदकर विनाशक कार्रवाई भी कर रहे हैं।
१९८० में देंग शियाओपिंग ने सुधार और खुलेपन की नीति को लागू करते हुए दो समग्र स्थितियों के आधार पर विकास पर अपनी रणनीतिक सोच को सामने रखा। पहला, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों की मदद से पूर्वी तटीय क्षेत्रों को खोलना और विकसित करना। दूसरे, तटीय क्षेत्र ने बदले में १९९० के दशक के अंत तक मध्यम समृद्धि के स्तर पर पहुंचने तक मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों के विकास में तेजी लाने में मदद किया। हालांकि, नई सहस्राब्दी की शुरुआत में तथाकथित पश्चिमी चीन विकास कार्यक्रम लागू किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत पश्चिम से बिजली पूरब को भेजना, वेस्ट-टू-ईस्ट गैस पाइपलाइन, किंघाई-तिब्बत रेलवे, रिटर्निंग फार्मलैंड टू फॉरेस्ट एंड ग्रासिंग टू ग्रासलैंड्स, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट वगैरह जैसी परियोजनाएं शामिल थीं। वास्तव में ये औपनिवेशिक नीतियां हैं, जिनका उद्देश्य स्थानीय लोगों की आजीविका में सुधार के बजाय पश्चिमी क्षेत्र के संसाधनों का दोहन करना और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखना है। पचास वर्षों की नियत अवधि के लिए कार्यान्वित किए जा रहे इन कार्यक्रमों को देखते हुए कहा जा सकता है कि शायद ही ऐसी कोई परियोजना हो जो तिब्बत और तिब्बती लोगों की आजीविका के लिए वास्तव में लाभकारी हो। इसलिए देंग शियाओपिंग की विकास की रणनीतिक सोच एक खोखला नारा बनकर रह गई। इन नीतियों से न केवल चीन और तिब्बत के बीच संपत्ति की खाई चौड़ी हो गई है, बल्कि तिब्बती क्षेत्र और तिब्बती आज धनी चीनियों के लिए महज रूमानी वस्तु बन कर रह गए हैं। आज शी जिनपिंग आम समृद्धि की वकालत करते हैं, लेकिन इसे साकार होते देखने में कितना समय लगेगा, यह कहना किसी के लिए भी मुश्किल है।
चीनी राष्ट्र के लिए एकीकृत समुदाय की भावना को मजबूत करने के लिए पीआरसी सरकार वर्तमान में तिब्बती बौद्ध धर्म के चीनीकरण और पूरे तिब्बत में चीनी भाषा के प्रचार के माध्यम से एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक धर्म और एक भाषा की नीति को लागू कर रही है। तिब्बती बच्चों को चीनी भाषा और जीवन शैली सीखने के लिए औपनिवेशिक शैली के किंडरगार्टन और आवासीय स्कूलों के विशाल नेटवर्क में जाने के लिए मजबूर किया जाता है। पीआरसी सरकार इन स्कूलों में सार्वभौमिक रूप से अपनाई गई शिक्षा प्रणाली और आंतरिक मानवाधिकार मानकों की पूरी अवहेलना करते हुए आत्मसातवादी भाषा नीति लागू कर रही है। इस वर्ष ०६ फरवरी को अपनी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों ने आवासीय विद्यालय प्रणाली के माध्यम से १० लाख से अधिक तिब्बती बच्चों को सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई रूप से आत्मसात करने की पीआरसी सरकार की नीति के खिलाफ चेतावनी दी है। २०२१ में प्रकाशित तथाकथित तिब्बत स्टैटिस्टिकल ईयर बुक में २००० में ४४९१ प्री-प्राइमरी चिल्ड्रेन स्कूल दर्शाए गए हैं, जो २०१० में तेजी से बढ़कर २३,४१४ और २०२० में १,५०,९३४ हो गए हैं।
आत्मसातिकरण में तेजी लाने के लिए तिब्बतियों और चीनियों के बीच विवाह को ‘जातीय सद्भाव के मॉडल परिवार’ के रूप में बढ़ावा देकर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। इसी तरह, हजारों तिब्बती बच्चों को चीनी क्षेत्रों में तथाकथित तिब्बती स्कूलों में भेजा जा रहा है। नौकरी दिलाने के नाम पर बड़े पैमाने पर युवा तिब्बतियों को दिहाड़ी मजदूरों के रूप में चीनी अधिकारियों के नियंत्रण में भेजा जा रहा है और चीन से काम करने वाली टीमों को तिब्बती क्षेत्रों में भेजा जा रहा है। इसके अलावा, चोन काउंटी और बत्से काउंटी के ५५७० तिब्बती निवासियों को उनके क्षेत्रों में बांध निर्माण और जल संरक्षण के बहाने जबरन जियुक्वान में गुआझोउ काउंटी में स्थानांतरित कर दिया गया है। पारिस्थितिकीय संरक्षण के लिए प्रवासन के नाम पर द्रुक्चू काउंटी में २२५७ परिवारों को लान्झो झिंकू में पुनर्स्थापित किया गया है। इसके अलावा, त्सो सिटी, थेवो काउंटी और चोन काउंटी में तिब्बतियों को स्थानांतरित किया जाना तय किया गया है। इसी तरह जल संसाधन मंत्रालय के तहत ग्यालमो न्गुलचू (सलवीन), न्यागचू (यालुंग) और ज़ाचु (मेकांग) नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं के कारण १३,४१५ स्थानीय निवासियों को विस्थापित किया गया था। इसी तरह, नगाबा प्रिफेक्चर में १३,००० से अधिक तिब्बतियों को स्थानांतरित किया गया और ३००० से अधिक को विस्थापित करने की योजना है। तिब्बतियों का यह सामूहिक विस्थापन १९३० के दशक में कई दशकों में लाखों जातीय अल्पसंख्यकों के जबरन पुनर्वास की स्टालिन की नीति के बराबर है, जिसे १४ नवंबर १९८९ को सोवियत संघ (यूएसएसआर) के सर्वोच्च सोवियत द्वारा अवैध और आपराधिक दमनकारी कृत्य घोषित किया गया था।
इसी तरह, नागचू, नागरी और शिगात्से प्रिफेक्चरों के लगभग बीस काउंटियों से १,००,००० से अधिक तिब्बती खानाबदोशों को तथाकथित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के गोंगकर काउंटी के दीनबुरी में निर्मित शहर नंबर चार में स्थानांतरित कर दिया गया था। यह गंभीर संदेह और आशंका पैदा करता है कि यह परियोजना कैसे विस्थापित लोगों के लिए स्थायी आजीविका प्रदान करेगी और उनकी मूल भूमि का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाएगा।
पीआरसी सरकार अलगाववाद का मुकाबला करने और सामाजिक स्थिरता बनाए रखने के नाम पर तिब्बतियों के हर आंदोलन को सांस्कृतिक क्रांति के समय से भी अधिक कठोर उपायों से नियंत्रित कर रही है। ग्रिड प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से नवीनतम तकनीक का उपयोग करके हर शहर, गांव, गली, चारागाह क्षेत्रों और घास के मैदानों का लगातार सर्वेक्षण किया जाता है। पिछले महीने टीएआर में एक तथाकथित ‘नेटवर्क और सूचना सुरक्षा पर विनियम’ लागू हुआ। इसने इंटरनेट की जानकारी की निगरानी और नियंत्रण के लिए काउंटी स्तर से ऊपर के सरकारी विभागों, राज्य और सार्वजनिक अंगों को काम सौंपा। विनियमन ‘अलगाववादी ताकतों’ के साथ सोशल मीडिया समूह बनाने और उसमें भाग लेने को भी अपराधी बनाता है। चीनी सरकार ने छात्रों, खानाबदोशों, किसानों सहित तिब्बतियों को जबरन बहकाने के अपने अभियान को तेज कर दिया है और सामाजिक प्रबंधन के नाम पर डीएनए सैंपल की जांच, आइरिस स्कैन और चेहरे की पहचान के माध्यम से भी किया जा रहा है।
पिछले साल मार्च में चीन सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में पूर्वोत्तर तिब्बत में कीर्ति मठ के पास पुलिस स्टेशन के सामने खुद को आग लगाने के बाद ८१ वर्षीय तफुन की मृत्यु हो गई थी। वह २००९ के बाद से तिब्बत में आत्मदाह करने वाले १५७वें पुष्ट और ज्ञात तिब्बती बन गए। कशाग ने तिब्बतियों से फिर से अपील की कि वे तिब्बत मुक्ति साधना के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगाने के लिए अपने जीवन को संरक्षित रखें और आत्मदाह जैसे कदम न उठाएं।
तिब्बती लेखकों, बुद्धिजीवियों, भाषा अधिकार कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ताओं और पशु वध के खिलाफ आवाज उठाने वालों को जबरन गायब कर देने और न्यायेतर कारावास देने की अत्यधिक चिंताजनक खबरें तिब्बत से सामने आती रहती हैं। तिब्बती राजनीतिक कैदियों को खराब स्वास्थ्य की स्थिति में रिहा कर दिया जाता है और उन्हें निरंतर निगरानी में रखा जाता है। पिछले जुलाई में २००८ के तिब्बत व्यापी विरोध के दौरान गिरफ्तार किए गए एक पूर्व राजनीतिक कैदी जिग्मे ग्यात्सो की खराब स्वास्थ्य के कारण मृत्यु हो गई। एक अन्य पूर्व राजनीतिक कैदी गेशे तेनज़िन पलसांग, जिन्हें २०१२ में जेल की सजा सुनाई गई थी, का पिछले सितंबर में निधन हो गया। इसी बीच खबर के अनुसार, चीनी पुलिस ने एक वृद्धाश्रम से किराने का सामान चुरा कर ले जाने के आरोप में एक तिब्बती को कथित तौर पर पीट-पीट कर मार डाला। तिब्बतियों को सिर्फ धार्मिक कृत्य करने के लिए ही पीट-पीटकर मार डाला जाता है। साथ ही, परम पावन दलाई लामा की तस्वीरें रखने के लिए तिब्बतियों की गिरफ्तारी बेरोकटोक जारी है।
चीनी अधिकारियों द्वारा १९९५ में अपहरण कर लिए जाने के बाद से ग्यारहवें पंचेन लामा तेनज़िन गेधुन येशी थिनले, जिन्हें लोकप्रिय रूप से गेधुन चोएक्यी न्यिमा कहा जाता है, का ठिकाना अज्ञात है। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ग्यारहवें पंचेन लामा और अन्य तिब्बती राजनीतिक कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए हरसंभव प्रयास जारी रखेगा। और सरकारों, मानवाधिकार संगठनों और व्यक्तियों से निरंतर समर्थन की अपील करता रहेगा। इस समर्थन अभियान में पहल करनेवाले सभी लोगों का हम धन्यवाद करते हैं।
राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्तता पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का कानून है कि पूरे देश में क्षेत्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, पीपुल्स प्रोक्यूरेट्स के प्रमुख और उप मुख्य अभियोजक, राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्रों के पीपुल्स कोर्ट के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, स्वायत्त क्षेत्रों प्रिफेक्चर और काउंटी के प्रमुख संबंधित क्षेत्र में क्षेत्रीय स्वायत्तता का उपयोग करने के लिए अधिकृत होंगे। हालांकि, तथाकथित टीएआर में काउंटी, प्रिफेक्चर और क्षेत्रीय स्तरों पर नेतृत्व में तिब्बतियों का प्रतिनिधित्व बमुश्किल ४३% है। और यदि राजनीतिक परामर्शदात्री सम्मेलन जैसे शक्तिहीन निकायों में शामिल होने वाले लगभग ८०% तिब्बतियों को ध्यान में नहीं रखा जाता है, तो तिब्बती प्रतिनिधित्व का प्रतिशत निश्चित रूप से बहुत कम होगा। टीएआर के समग्र नेतृत्व में लगभग १०% तथाकथित चीनी कैडर हैं जो चीन से तिब्बत की सहायता के लिए भेजे गए हैं। यह दर्शाता है कि पीआरसी सरकार तिब्बतियों को खुद पर शासन करने का कितना अधिकार देती है। इसी तरह, पिछले साल ही टीएआर में लगभग १३९ तिब्बती अधिकारियों पर जांच बिठाई गई और कानून के उल्लंघन और भ्रष्टाचार के बहाने निष्कासित कर दिया गया। बहुत से लोग इसे चीनी सरकार के स्थापित तंत्र के रूप में मानते हैं जिसका उद्देश्य सक्षम और होनहार तिब्बती अधिकारियों और तिब्बतियों के कौशल और क्षमता का गला घोंटना है। टीएआर के तथाकथित पीपुल्स प्रोक्यूरेटोरेट की वर्तमान वर्ष की रिपोर्ट ने १९९० से कुछ मामलों में जांच किए जाने की सूचना दी है। यह न्यायिक अभियोजन अवधि की पूरी तरह से अवहेलना है।
तिब्बत की राजधानी ल्हासा में लागू शून्य-कोविड नीति के तहत पिछले साल १०० से अधिक दिनों तक लगातार गंभीर लॉकडाउन रखा गया था, जिससे लोगों के दैनिक जीवन में भारी कठिनाई हुई। इससे कुछ लोगों को आत्महत्या तक करना पड़ा था। कुछ को वहां की वस्तुस्थिति और उनके ठिकाने के बारे में वीडियो और जानकारी बांटने के लिए गिरफ्तार भी किया गया था। तिब्बत से निकली जानकारी के मुताबिक, दिसंबर २०२२ में अचानक लॉकडाउन हटने के बाद चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण कई तिब्बतियों की मौत हो गई। यह बात इससे पता चली कि रोजाना बड़ी संख्या में शवों को श्मशान घाट ले जाते देखा जा रहा था। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और तिब्बती समुदाय के कार्यालयों में मृतकों और महामारी से प्रभावित लोगों के लिए साप्ताहिक प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है।
जनता के लिए कल्याणकारी उपाय करना और लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान करना सरकार की वैधता अर्जित करने की बुनियादी शर्त है। अत: यदि कोई सरकार किसी राष्ट्रीयता के उन्मूलन की नीतियों को खुल्लम-खुल्ला लागू करती है तो लोगों को सरकार की नीतियों का विरोध करने और यहां तक कि अपनी सुरक्षा के लिए सरकार को नकारने का जन्मसिद्ध अधिकार है।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन इस संबंध में मध्यम मार्ग दृष्टिकोण की नीति के आधार पर तिब्बत की भविष्य की स्थिति पर चर्चा करने के लिए परस्पर सहयोग का रास्ता खोजने की उम्मीद कर रहा है। हम समानता और मित्रता के आधार पर चीन सरकार के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी और स्थायी समाधान चाहते हैं। इसके अलावा, हम चीन की सरकार से आग्रह करते हैं कि वह तिब्बती पहचान को खत्म करने की अपनी त्रुटिपूर्ण नीति को तुरंत बंद कर दे।
हम फरवरी २०२३ में अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों की हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी के अध्यक्ष माइकल मैककॉल, सांसद जिम मैकगवर्न, सीनेटर जेफ मर्कजे और सीनेटर टॉड यांग द्वारा तिब्बत-चीन संघर्ष के समाधान के लिए प्रस्ताव को बढ़ावा देने के द्विदलीय और द्विसदनीय विधेयक का स्वागत करते हैं। यह तिब्बती लोगों की आशा और दृढ़ संकल्प को पुनर्जीवित करेगा। विधेयक का उद्देश्य तिब्बत की वास्तविक ऐतिहासिक स्थिति और वर्तमान स्थिति की तात्कालिकता को पहचानते हुए चीन-तिब्बत संघर्ष का समाधान खोजना है। इसी तरह १४ दिसंबर को कनाडा की संसद ने सर्वसम्मति से मध्यम मार्ग दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए और तिब्बती प्रतिनिधियों और पीआरसी सरकार के बीच संवाद की बहाली का समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। उक्त विधेयक और संकल्प निश्चित रूप से चीन-तिब्बत संघर्ष में दोनों पक्षों को विजयी बनाते हुए समाधान के रूप में मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को उपयोगी साबित करेगा।
परम पावन दलाई लामा मानवता की एकता की भावना के साथ दूसरों के कल्याण के लिए प्रेम, करुणा और चिंता के विकास पर बल देते हैं। यदि हम अपने दैनिक जीवन में उनकी सलाह का पालन कर सकते हैं तो यह निश्चित रूप से युद्ध में उलझी इस दुनिया में शत्रुता को शांत करेगा और प्राकृतिक आपदा, महामारी और अकाल की समस्याओं को दूर करेगा।
परम पावन दलाई लामा न केवल तिब्बत और तिब्बती लोगों के रक्षक और प्रतीक हैं, बल्कि मानवीय मूल्यों और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने, तिब्बत की बौद्ध संस्कृति के संरक्षण और प्राचीन भारतीय ज्ञान के पुनरुत्थान के लिए अपनी प्रतिबद्धता के लिए दुनिया भर में अद्वितीय नेता हैं। हम परम पावन दलाई लामा को अलगाववादी के रूप में प्रचारित करने के चीनी कम्युनिस्ट सरकार के निराधार आरोपों और दुनिया भर में परम पावन द्वारा दी जर रही मेधावी सेवाओं में बाधा डालने के हर प्रयास का दृढ़ता से विरोध करेंगे। इसके अलावा, अगर चीन परम पावन दलाई लामा और तिब्बती लोगों के बीच ऐतिहासिक संबंध और वर्तमान स्थिति की वास्तविकता को सकारात्मक रूप से पहचानने में विफल रहता है तो पीआरसी सरकार चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने की कुंजी खो देगी।
मैं इस अवसर पर तिब्बती लोगों की ओर से हमें दूसरा घर प्रदान करने के लिए भारत के प्रति कृतज्ञता और प्रशंसा व्यक्त करना चाहता हूं। साथ ही साथ अमेरिका और अन्य सरकारों, तिब्बत पर आठवें विश्व सांसद सम्मेलन के बाद मेक्सिको और स्पेन में नवगठित तिब्बत समर्थक संसदीय समूहों सहित अन्य संसदीय तिब्बत समर्थक समूहों , तिब्बत समर्थन समूहों और सत्य और न्याय का समर्थन करने वाले व्यक्तियों, तिब्बती संघों, स्वैच्छिक तिब्बती समर्थन समूहों और गैर-सरकारी संगठनों को उनके स्वैच्छिक समर्थन अभियानों के लिए भी धन्यवाद देते हैं।
अंत में मैं परम पावन दलाई लामा की लंबी आयु और साथ ही साथ उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करता हूं। तिब्बत की सच्चाई की जीत हो और दुनिया भर में शांति का वातावरण फैले, इसी कामना के साथ।
कशाग
१० मार्च २०२३