आज के दिन ही 1959 में सभी वर्गों और तिब्बत के तीनों क्षेत्रों (उ-सांग, खम और आमदो) के हजारों तिब्बती, चीनी हमले और कब्जे का प्रतिकार करने और उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए ल्हासा में जुटे थे। हम तिब्बत के 2000 साल पुराने समृद्ध, विशिष्ट इतिहास के इस दु:खद लेकिन ऐतिहासिक दौर की संतान है। आज हम यहां अपनी नि:स्वार्थ पिछली पीढ़ी द्वारा शुरू किए गए बहादुरीपूर्ण संघर्ष के प्रति अपने को पुन: समर्पित करने के लिए जुटे हैं। हम उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने तिब्बत के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया है। स्वाधीनता की जिस आकांक्षा ने हमारे बुजुर्गों को 10 मार्च, 1959 में एक ऐतिहासिक कदम उठाने को मजबूर किया था, वह हमारे बुनियादी स्वाधीनता, गरिमा और पहचान को सुरक्षित रखने के मौजूदा संघर्ष के लिए पथ-प्रदर्शक की तरह है।
तिब्बत में किस हद तक लगातार क्रूरतापूर्ण दमन और असंतोष का चक्र जारी है, यह वहां चिंताजनक रूप से बढ़ती संख्या में तिब्बतियों के आत्मदाह से ही साफ हो जाता है। वर्ष 2009 से अब तक 107 तिब्बतियो ने आत्मदाह कर लिया है। इसमें से अकेले नवंबर, 2012 में ही हुए आत्मदाह के 28 मामले शामिल हैं, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस के आयोजन के ठीक पहले और उसी दौरान की बात हैं। दु:खद यह है कि इनमें से 90 लोगों की मौत हो गर्इ है। हाल के वैशिवक इतिहास में इस तरह से इतने लोगों की मौत पहले कभी नहीं देखी गर्इ है। हालांकि, आत्मदाह करने वाले ज्यादातर लोग भिक्षु हैं, लेकिन इनमें सभी तरह के तिब्बती शामिल रहे हैं-नोमैड, किसान, विधार्थी और इनमें राजधानी ल्हासा सहित तिब्बत के तीनों क्षेत्रों उ-सांग, खम और आमदो में थे। हम इस दिन को सभी आत्मदाह करने वाले लोगों और उन सभी लोगों के लिए समर्पित करते हैं जिन्होंने तिब्बत के लिए अपनी जान दी है।
चीन जनवादी गणतंत्र द्वारा तिब्बत पर कब्जा और वहां जारी दमन ही वह प्राथमिक हालात हैं जिसकी वजह से तिब्बती आत्मदाह की ओर बढ़ रहे हैं। तिब्बती लोग अपने बौद्ध सभ्यता, मूल पहचान और गरिमा पर लगातार चीनी हमले को देख रहे हैं और अनुभव कर रहे हैं। चीन द्वारा परमपावन दलार्इ लामा की निंदा करने को लेकर भी उनमें गहरी नाराजगी है। वे इन सबको चेतावनी की तरह ही देख रहे हैं क्योंकि तिब्बत में चीनियों को बसाने की लहर चल रही है, जो तिब्बतियों की नौकरियां, उनकी जमीन हथिया रहे हैं और उनका भविष्य भी। इस प्रक्रिया में तिब्बती कस्बे और शहर चीनी कस्बों में बदल रहे हैं। वे हजारों नोमैड को चारागाहों से हटाकर स्थायी बस्तियों में बसाने का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इसकी वजह से पहले आत्मनिर्भर रह चुके परिवार अब दरिद्रता की स्थिति में पहुंच गए है। वहां उपनिवेशवादी तरीके से विकास गतिविधियां चलार्इ जा रही हैं जिसके द्वारा संसाधनों का भूखा चीन अरबों डालर मूल्य के तिब्बती प्राकृतिक संसाधनों को ढो कर ले जा रहा है। इन नीतियों की वजह से कोर्इ आसानी से यह संदेह जता सकता है कि चीन असल में तिब्बत को चाहता है, तिब्बती जनता को नहीं।
लेकिन तिब्बती जब इस तरह के गलत कार्यों के प्रति थोड़ा भी असंतोष दिखाते हैं तो उनके सामने सुरक्षा बलों द्वारा लंबे समय तक कारावास, प्रताड़ना, सार्वजनिक अपमान और गायब कर दिए जाने का जोखिम रहता है। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर रोक और कठोर सजा की वजह से तिब्बती आत्मदाह जैसे कदमों का सहारा लेने को मजबूर हो रहे हैं। वे चुप रहने और चीनी अधिकारियों के आगे आत्मसमर्पण की जगह मौत को गले लगाना पसंद कर रहे हैं। दिखावटी मुकदमा चला कर आत्मदाह करने वालों को अपराधी साबित करने और उनके परिवार के सदस्यों और दोस्तों पर मामला दर्ज करने के अधिकारियों के हाल के प्रयासों से आत्मदाह, प्रताड़ना और फिर आत्मदाह का चक्र और भी लंबे समय तक चल सकता है।
विभिन्न माध्यमों के द्वारा कशाग ने लगातार ऐसा न करने की अपील की है और साफतौर से तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों को विरोध प्रदर्शन के लिए आत्मदाह जैसे कदम के प्रति हतोत्साहित किया जाता रहा है। जीवन अनमोल है और एक मनुष्य होने के नाते हम यह नहीं चाहते कि किसी की भी इस तरह से मौत हो। एक बौद्ध होने के नाते हम मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। एक तिब्बती होने के नाते यह हमारा पुनीत कर्तव्य है कि तिब्बत में रहने वाली तिब्बती जनता की इन आकांक्षाओं का समर्थन करें: परमपावन महान चौदहवें दलार्इ लामा को तिब्बत में वापस बुलाया जाए, तिब्बती जनता को स्वाधीनता हासिल हो और सभी तिब्बतियों में एकता हो। चीन के लिए इस बर्बर और संगीन हालात को खत्म करने के लिए एकमात्र रास्ता यही है कि वह तिब्बती जनता की आकांक्षा का सम्मान करते हुए तिब्बत के प्रति अपनी मौजूदा कठोर नीतियों में बदलाव लाए।
कशाग मध्यम मार्ग नीति के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है जिसमें यह कहा गया है कि तिब्बत मसले को हल करने के लिए तिब्बतियों को वास्तविक स्वायत्तता दी जाए। परमपावन चौदहवें दलार्इ लामा ने दिखाया है कि यह सबसे व्यवहार्य और स्थायी तरीका हो सकता है। काफी सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श करने के बाद निर्वासित तिब्बती संसद ने एकमत से मध्यम मार्ग नीति को अपनाया है। तिब्बत के भीतर और बाहर रहने वाले तिब्बतियों ने भी इसको समर्थन दिया है और इसे कर्इ देशों की सरकारों, दुनिया के प्रमुख नेताओं और नोबेल विजेताओं का भी समर्थन मिला है। खासकर अब ज्यादा से ज्यादा चीनी बुद्धिजीवियों, विद्वानों और लेखकों को भी यह बात समझ में आ रही है।
इस समय कशाग को यह उम्मीद है नया चीनी नेतृत्व भी इस व्यावहारिक राजनीतिक तरीके पर गौर करेगा जिससे तिब्बतियों और चीनियों, दोनों के हित सधेंगे और दोनों के लिए फायदे की सिथति होगी। वर्ष 2002 में वार्ता प्रक्रिया शुरू होने से तिब्बतियों में यह उम्मीद जगी थी कि तिब्बत मसले का शांतिपूर्ण समाधान निकलेगा। लेकिन दुर्भाग्य से वार्ता प्रक्रिया के मौजूदा समय में बाधित रहने से इस उम्मीद को झटका लगा है।
चीन जनवादी गणतंत्र की सरकार के लिए तिब्बत कोर्इ संवैधानिक या सांस्थानिक समस्या नहीं है। पीआरसी के संविधान की धारा 31 के मुताबिक चीन ने हांगकांग और मकाउ के लिए एक देश, दो विधान का एक अलग सांस्थानिक तंत्र तैयार किया है। ताइवान (रिपबिलक आफ चाइना) के साथ बात करने के लिए एक मंत्रिमंडल स्तर की समिति का गठन कर चीनी नेतृत्व ने राजनीतिक इच्छाशकित का भी प्रदर्शन किया है। लेकिन जब बात तिब्बत की आती है तो चीनी नेतृत्व ने न तो कभी मौजूदा उपलब्ध संवैधानिक तंत्र को लागू किया है और न ही इस मसले के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उसने राजनीतिक इच्छाशकित दिखार्इ है। जहां तक हमारे पक्ष की बात है, हम तात्पर्य को प्राथमिक मानते हैं और प्रक्रिया हमारे लिए दूसरे स्थान पर आती है, और हम किसी भी जगह, किसी भी समय सार्थक वार्ता करने के लिए तैयार हैं।
तिब्बत मसले का एक उचित और स्थायी समाधान ढूंढ़ना व्यापक तौर पर दुनिया के हित में भी है। तिब्बत दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है और इसे तीसरा धु्रव माना जाता है क्योंकि वहां की हिमनदियों से एशिया के दस नदी तंत्र में जल की आपूर्ति होती है। यह एशिया के एक अरब से ज्यादा लोगों के शांति और समृद्धि में योगदान करता रहेगा, जो कि निचली जलधाराओं के पास रहते हैं और भरण-पोषण के लिए तिब्बत के जल पर निर्भर रहते हैं। इस मसले का तेजी से समाधान होने से सही संदेश जाएगा और यह दुनिया के अन्य स्वाधीनता संघर्षों के लिए एक माडल की तरह काम करेगा क्योंकि तिब्बत का संघर्ष एकमात्र है, जो मजबूती से अहिंसा और लोकतंत्र का सहारा लिए हुए है। इसी तरह तिब्बत मसले को हल करना चीन में संयम का प्रेरक बन सकता है, जो अंतिम लेकिन कम महत्वपूर्ण बात नहीं है।
हम भारत की जनता और सरकार के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हम दुनियाभर के उन सभी सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, तिब्बत समर्थक संगठनों और व्यकितगत समर्थकों के प्रति उनके समर्थक प्रस्तावों, बयानों और उनके द्वारा बेहिचक और उदार समर्थन के लिए काफी आभारी हैं। साथ ही हमारा यह मानना है कि अब विभिन्न सरकारों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए वह क्षण आ गया है कि वे चीन सरकार पर यह दबाव डालने के लिए ठोस कार्रवार्इ करें कि वह तिब्बती नेतृत्व के साथ सार्थक वार्ता शुरू करे।
हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह आहवान करते हैं कि वह चीन पर इस बात के लिए भी दबाव बनाएं कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त को तिब्बत में प्रवेश करने की इजाजत दे और राजनयिकों तथा अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी वहां जाने दे। केवल इसी तरीके से तिब्बत के संगीन हालात के बारे में सच से परदा उठ सकता है और आत्मदाहों पर रोक लग सकती है।
कशाग ने 2013 को तिब्बत के साथ एकजुटता अभियान के वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है। हमारा हर आयोजन शांतिपूर्ण, कानूनी तरीके से और गरिमा के साथ आयोजित किया जा रहा है। नर्इ दिल्ली में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा आयोजित चार दिवसीय जन अभियान में शामिल होने के लिए 30 जनवरी को हजारों तिब्बती और भारतीय मित्र जमा हुए थे। विभिन्न राजनीतिक दलों के कर्इ प्रमुख नेता इस अभियान में शामिल हुए और उन्होंने तिब्बत के लिए काम करने का वचन दिया। यूरोप के तिब्बती और तिब्बत मित्र ब्रसेल्स में तिब्बत के लिए यूरोपीय एकजुटता रैली का आयोजन कर रहे हैं। इस महीने उत्तर अमेरिका, यूरोप और अन्य जगहों के तिब्बती लोग तिब्बत जनमत निर्माण दिवस मनाएंगे। हम सभी को तीन ‘डी’ का मुख्य संदेश देना चाहते हैं: डीवोल्युशन, डेमोक्रेसी और डायलाग ( हस्तांतरण, लोकतंत्र और संवाद)।
तिब्बत के इतिहास के सबसे काले दिनों में भी धैर्य बनाए रखना हमारे लोगों की विशेषता है। परमपावन महान चौदहवें दलार्इ लामा के प्रबुद्ध नेतृत्व में हम लगातार विपरीत परिस्थितियों का सामना असाधारण एकता, सहनशीलता और गरिमा के साथ कर रहे हैं। मैं उत्कट रूप से परमपावन दलार्इ लामा के दिधरायु होने के लिए प्रार्थना करता हूं।
तिब्बत के भीतर और बाहर रहने वाले तिब्बतियों ने जिस तरह का समर्थन और एकजुटता दिखार्इ है उससे कशाग का उत्साह बढ़ा है और काफी संतुष्टि मिली है। एकता, आत्मनिर्भरता और नवाचार को अपना मार्गदर्शक सिद्धांत मानते हुए हम स्वाधीनता और गरिमा के साथ जीने की सभी तिब्बतियों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं, जिसके हम हकदार हैं और जो हमारा अधिकार है।
मैं एक बार फिर तिब्बत के अपने भाइयों एवं बहनों के प्रति सदभाव प्रकट करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं।
10 मार्च, 2013
धर्मशाला