तिब्बत पर चीनी कब्जे के खिलाफ तिब्बती लोगों ने 63 साल पहले आज ही के दिन सन 1959 में ल्हासा की सड़कों पर शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन किया था। आज का दिन सन 2008 के मार्च महीने में सम्पूर्ण तिब्बत में तिब्बतियों द्वारा चीनी शासन के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की चौदहवीं वर्षगांठ भी हैं। हम तिब्बत के उन वीर भाइयों और बहनों को श्रद्धांजलि अर्पित करते है जिन्होंने तिब्बत के आध्यात्मिक और राजनीतिक मामले की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दी है। हम तिब्बत में भारी दमन का सामना कर रहे तिब्बती लोगों के प्रति एकजुटता प्रकट करते है।
तिब्बत के लंबे इतिहास में, तिब्बतियों ने तीन महान धार्मिक राजाओं के शासनकाल में अपना प्रभाव और अधिकार प्राप्त किया है। अपने विघटन के बाद भी तिब्बती बौद्ध धर्म ने मंगोलिया की सैन्य शक्ति और चीन की राजनीतिक शक्ति के बावजूद पूर्वी एशिया में समान प्रभाव का आनंद लिया था। तिब्बत ने उन साम्राज्यों के साथ भी पुजारी-संरक्षक का संबंध बना लिया था, जिन्होंने कालक्रम में तिब्बत और चीनी साम्राज्यों पर कब्जा किया था। इनके बीच का यह संबंध अधिकतर समय तक आपसी सम्मान और सद्भाव के आधार रहा है।
जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने 1 अक्टूबर 1949 को सत्ता स्थापित किया था तब उसने तिब्बत की तथाकथित ”शांतिपूर्ण मुक्ति“ की घोषणा की। इसके तुरन्त बाद सन 1950 में बड़ी संख्या में चीनी कम्युनिस्ट सेनाबल ने तिब्बत के छामदो पर अक्रमाण कर तिब्बती सेना को पराजित किया था। सन 1951 को चीन ने तिब्बतियों को जबरन 17 सूत्रीय संधी पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर पहली बार समपूर्ण तिब्बत को अपने कब्जे में ले लिया था। हालांकि, परमपावन दलाई लामा जी और तत्कालीन तिब्बत सरकार ने चीनी सरकार के साथ समझोते के आधार पर सहयोग देने की हरसंभव प्रयास किया था लेकिन चीनी सेना के निरंतर दमन से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का बुनियादी ही कुचाल दिया था। परम पावन दलाई लामा जी के साथ 80 हज़ार तिब्बतियों के पास निर्वासन में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं मिला था।
अगले दो दशकों के लिए तिब्बत ने अपने इतिहास में सबसे बुरे समय का अनुभव किया। 1956 में तिब्बत के खाम और आम्दो प्रांतों में तथाकथित “लोकतंत्रिक सुधार” के शुरू होने के बाद मठों का विध्वंस तथा लामाओं एवं भिक्षुओं को गिरफ्तार किया गया था। उस समय, चीन सरकार को नस्लीय मुद्दों के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं थी। हालांकि यह जल्द ही बदल गया जब माउ चेतुंद ने 1958 के अम्दो प्रांत के यदज़ी काउंटी में तिब्बतियों तथा सालारों द्वारा विद्रोह किए जाने पर संकेत लेते हुए बताया कि राष्ट्रीयता का मुद्दा वास्वत में वर्ग का मुद्दा है। माउ चेतुंद ने विद्रोह को दमन करने, लोकतंत्रितक सुधारों और सांस्कृति क्रांति के नाम पर विध्वंसकारी अभियानों का अनेक कार्यक्रम शुरू किया था। यह वास्तव में तिब्बत में सांस्कृतिक नरसंहार का शुरूआत थी जिसके कारण 12 लाख तिब्बतियों की मृत्यु तथा छह हज़ार मठों का विनाश हुआ था।
1980 के दशक में चीन में सुधार और खुलेपन की नीति देखी और चौथा चीन लोक गणराज्य की संविधान तथा राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्तता कानून की घोषणा की गई। इसके अतिरिक्त, तिब्बत स्वायत्त प्रिफेक्चर तथा काउंटियों में कई कानून बनाकर मठों की पुनर्स्थापना, भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों की धार्मिक अध्ययन की पुनरुद्धार, तिब्बती भाषा को प्रोत्साहित करना तथा तिब्बत कार्यकर्ताओं के पोषण एवं भूमि का स्वामित्व सौंपने जैसी उदार नीतियों के कार्यान्वयन की गारंटी देने की कानूनी समर्थन दिया गया था। इसी तरह भारत से नए तिब्बती तथ्यान्वेषी प्रतिनिधिमंडल और खोजी मिशनों को अनुमति देने और तिब्बतियों को अपने परिवार तथा रिश्तेदारों से मिलने के लिए तिब्बत में जाने की अनुमति प्रदान करने से चीन-तिब्बत संघर्ष के समाधान में एक नए उम्मीद की किरण जागी थी।
हालांकि, चीन के उदारवादी नेताओं जैसे हू याबाँग को पद से हटाने, 10वें पेंचेन लामा की अचानक मृत्यु, तिब्बती लोगों द्वारा ल्हासा के शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाने की मार्शल लॉ, तियानमेन चौक पर लोकतांत्रिक आंदोलन के छात्रों पर कुचल देना, तिब्बत और चीन सरकार के बीच संवाद प्रतिक्रिया पर रोक लगने के बाद से तिब्बत में स्थिति बद से बदतर हो गई थी। विशेष रूप से 1990 से चीन सरकार ने तिब्बत पर अपने नियंत्रण को मजबूत करने के लिए कठोर नीतियों का पालन किया था। तिब्बत में बुनियादी ढांचे के विकास के नाम पर चीनी आबादी को तिब्बत में स्थानांतरित करने में तेजी लाई और तिब्बती क्षेत्रों की प्रशासनिक कार्यालयों में चीनी कर्मचारियों की संख्या बढ़ा दिया है। इसी तरह अनिवार्य शिक्षा की आड़ में मठों की परम्परा का विनाश तथा मठों को नियंत्रित करने के लिए लोकतांत्रिक प्रबंधन समिति को मजबूत किया गया।
पश्चिम विकास कार्यक्रम अर्थात वेस्टर्न डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरूअत से तिब्बत पर नियंत्रण करना चीन के लिए आसान हो गया। चीनी प्रवासियों को लाभ पहुंचाने और तिब्बत में खनिज संसाधनों के दोहन के लिए बड़े पैमाने पर विकाय कार्यक्रम चलाए गए। द्विभाषी शिक्षा नीति के नाम पर चीनी भाषा को बढ़ावा देने से तिब्बती भाषा को ओर ज्यादा कमजोर कर दिया। चीन सरकार ने तिब्बती लोगों पर नियंत्रण करने के लिए टुल्कु के पुनर्जन्म का चयन करने की आधिकारों को हड़पने की नए नीति अपनाईगई थी।
इन क्रूर नीतियों के परिणामस्वरूप 2008 में तिब्बत के तीनों प्रातों से तिब्बतियों ने चीनी शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए गए। चीन सरकार ने प्रदर्शनकारियों को क्रूरता से दमन किया जिसके कारण सैकड़ों तिब्बतियों की मौत तथा हजारों तिब्बतियों को गिरफ्तार किया था। इसके परिणामस्वरूप तिब्बत में बड़े पैमाने पर सशस्त्र बलों की तैनाती और पूरे तिब्बत में तिब्बतियों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया था। चीनी भाषा के माध्यम से शिक्षा बनाने की नीति तेजी से लागू किया और मठों में “देशभक्ति शिक्षा” अभियान को मजबूत किया। इसके चलते चीनी शासन के विरोध में 2009 से अब तक पूरे तिब्बत में 156 तिब्बतियों ने परम पावन दलाई लामा की तिब्बत में वापसी तथा तिब्बत की आज़ादी के लिए आत्मा-बलिदान दिया था। चीन-तिब्बत वार्ता की प्रक्रिया भी 2010 से समाप्त हो गया था।
आज हमारे लिए सबसे चिंता का विषय तिब्बत में तिब्बतियों की नए पीढ़ीयों को व्यवस्थित रूप चीनीयों में बदलना है। 2011 में चीनी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ नीति सलाहकारों ने राष्ट्रीय-क्षेत्रीय स्वायत्तता प्रणाली को निरस्त करने और 56 राष्ट्रीयताओं की पहचान को कमजोर करने एवं एक चीनी राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने के लिए तथाकथित ‘दूसरी पीढ़ी की जातीय नीतियां” को लागू करने का आह्वान किया था। उन्होंने नस्लीय अल्पसंख्यकों के लिए अधिमान्य नीतियों को रद्द करने, नस्लीय अस्मिता को प्रोत्साहित करने, चीनी भाषा उपयोग करने और राष्ट्रीयताओं के लिए स्कूलों को बंद करने का आह्वान किया। इन सभी उपायों का आज वास्तव में तिब्बत में लागू किए जा रहे हैं।
2012 में चीन सरकार को गांवों में प्राथमिक स्कूलों को बोर्डिंग स्कूलों में विलय करने की नीति को बदलना पड़ा था क्योंकि चीन में इस पर कड़ा विरोध हुआ था। हालांकि 2015 में चीनी राज्य परिषद ने एक निर्देश जारी कर अलग नस्लीय क्षेत्रों के बच्चों को बोर्डिंग स्कूल व्यवस्था में पढ़ना, रहना और बढ़ना अनिवार्य कर दिया था। ऐसा अनुमान है कि 2019 तक तिब्बत के कुल छात्रों में से 78 प्रतिशत बच्चों को बोर्डिंग स्कूलों में रहने के लिए मजबूर किया गया है।
इसी तरह अगस्त 2021 में चीन के शिक्षा मंत्रालय ने 14वें पंचवर्षीय योजना के दौरान जातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल-पूर्व बच्चों को समान भाषा में शिक्षा के लिए बच्चों की समरूपता योजना (चिल्ड्रन होमोफोली प्लान फॉर कॉमन लैंग्वेज फॉर प्रीस्कूल चिल्ड्रन) को लागू करने का एक आदेश जारी किया। इससे स्कूल-पूर्व बच्चों को आवश्यक शिक्षा के लिए तथाकथित अच्छी नींव रखने के लिए चीनी भाषा अर्थात मंदारिन बोलने और लिखने के लिए अनिवार्य किया है। इसी तरह तिब्बती क्षेत्रों में सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती परीक्षा की माध्यम तिब्बती भाषा से चीनी भाषा में बदल दिया है।
तिब्बती बच्चों को तिब्बती भाषा सीखने की अधिकार से वंचित करने वाले ऐसी नीति का गंभीर परिणाम अगले दो दशकों में जरूर दिखेंगा। तिब्बती भाषा तिब्बती लोगों की पहचान, संस्कृति और धर्म का मुख्य हिस्सा है।
अपनी भाषा सीखने और उपयोग करने के अधिकार का व्यवस्थित रूप से समाप्त करना चीनी संविधान और राष्ट्रीय-क्षेत्रीय स्वायत्त पर कानून में निहित अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के अधिकारों का घोर उल्लंघन है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कैसे चीन सरकार भाषाओं के संरक्षण पर विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घोषणाओं का उल्लंघन कर रहा है जिसमें सितंबर 2018 में चीन के छंगश में आयोजित “विश्व भाषा संसाधन संरक्षण सम्मेलन” की घोषणा, संयुक्त राष्ट्र के स्थानीय लोगों के अधिकारों पर घोषणा तथा नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम शामिल हैं। ये वे संधियां और कानून हैं, जिस पर चीन ने हस्ताक्षर किए हैं।
हम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संविधान का सम्मान करते हैं क्योंकि यह राष्ट्रीयताओं की समानता को कायम रखता है और अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों का आश्वासन देता है। हालांकि, चीनी भाषा को बढ़ावा देने के लिए दिसंबर 2021 में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की चीन की स्थायी समिति ने अपनी भाषा सिखाने के लिए राष्ट्रीयताओं के अधिकारों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों को रद्द कर दिया। यह चीनी संविधान के सिद्धांतों की दुरुपयोग तथा गलत व्याख्या करना है।
हम चीनी लोगों और उनकी संस्कृति का सम्मान करते हैं। लेकिन हम खुद को एक चीनी नागरिक के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते हैं, क्योंकि तिब्बती लोगों की एक अलग नस्ल है जोकि छह मूल पैतृक जनजातियों से निकली है और संस्कृति के तौर पर बॉन परंपरा एवं बौद्ध धर्म से प्रभावित है।
यदि चीन सरकार तिब्बती लोगों के प्रेम और निष्ठा पाना चाहते है तो उसे अपने स्वयं के संविधान का सम्मान करते हुए तिब्बतियों की मानवाधिकारों का अत्याचार और तिब्बती पहचान का विनाश बंद करना चाहिए। चीन को तिब्बतियों और चीनियों के इस ऐतिहासिक तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि वे एक पड़ोसी के रूप में सद्भाव और पारस्परिक सहयोग के साथ रहते थे। चीन सरकार को उन विचारों और कार्यों को समाप्त करना चाहिए जो तिब्बतियों और चीनियों के बीच शत्रुता को जन्म देते हैं, इसके बजाय तिब्बतियों की आकांक्षाओं पर ध्यान देना चाहिए।
पिछले 63 वर्षों से तिब्बती लोगों द्वारा अपनी वास्तविक आकांक्षाओं को स्पष्ट किए जाने के बावजूद चीन सरकार इसकी विपरीत नीतियों को आगे बढ़ा रही है। आज, बुनियादी ढांचे के निर्माण और प्राकृतिक भंडार के निर्माण के नाम पर तिब्बती खानाबदोशों और किसानों को स्थानांतरित होने के लिए विस्थापित होने पर मजबूर किया जाता है। उनके रहने वाले पारंपरिक वातावरण को जबरन बदल दिया गया है। गरीबी को कम करने और ‘ग्रामीण अधिशेष मजदूरों’ के प्रशिक्षण और स्थानांतरण की आड़ में विस्थापन को भी आगे बढ़ाया गया है। तिब्बती विद्यर्थियों को चीन में काम करने के लिए उसके ‘आत्मसातिकरण अभियान’ के हिस्से के रूप में भेजा जा रहा है। इसी तरह, ‘नस्लीय एकता के लिए आदर्श’ के नारे के तहत तिब्बतियों और चीनियों के बीच विवाह संबंध को प्रोत्साहित किया जाता है।
नास्तिक चीन सरकार तिब्बती बौद्ध धर्म की पुनर्जन्म परम्परा, मठों को नियंत्रण तथा भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के अकादमिक शिक्षण एवं मुक्त आवाजाही के प्रतिबंधों में हस्तक्षेप करना जारी रखे हुए है। ‘तिब्बती बौद्ध धर्म को समाजवादी समाज के अनुकूल बनाने और चीनी संदर्भ में विकसित करने’ के बैनर तले चीन सरकार ने ऑनलाइन धार्मिक सामग्री के प्रसार पर प्रतिबंध लगा दिया है और खाम ड्रागो में बौद्ध मूर्तियों को विध्वंस किया गया है। साथ ही तिब्बती परंपरिक प्रांत खाम के खरमार मठ को जबरन बंद कर दिया था। इसी तरह तिब्बती बुद्धिजीवियों जैसे गो शेरब ग्यात्सो, लेखकों, शिक्षकों, छात्रों, मानवाधिकारों एवं पर्यावरण कार्यकर्ताओं को मनमाने ढंग से गिरफ्तारी तथा कारावास निरंतर जारी है। चीन में तिब्बती बौद्ध मठों और स्तूपों को नष्ट करने, पारंपरिक वास्तुकला, तिब्बती लेखन और भित्ति चित्र को नष्ट करने की भी खबरें हैं।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन माध्यम-मार्ग नीति के तहत वार्ता के माध्यम से तिब्बत की भविष्य की स्थिति के लिए एक पारस्परिक रूप से सहमत समाधान खोजने की उम्मीद करता है विशेषकर चीन सरकार से अपनी गलत नीतियों को ठीक करने का आग्रह करते है। हम समानता, मित्रता और पारस्परिक लाभ के आधार पर स्थायी समाधान तलाशने के लिए चर्चा में शामिल होने के लिए तैयार हैं।
जब तक चीन-तिब्बत संघर्ष का समाधान नहीं हो जाता है, हम तिब्बत में अपने भाइयों एवं बहनों के स्वतंत्र प्रवक्ता के रूप में चीन सरकार द्वारा तिब्बत में चलाए जा रहे दमन और तिब्बती पहचान को खत्म करने की इरादे के बारे में विश्व की संसदों, सरकारों, विशेषज्ञों तथा पत्रकारों के ध्यान में स्वैच्छिक तिब्बती वकालत अभियान तथा अन्य माध्यमों के द्वारा उपयोग करने की हरसंभव प्रयास करेंगे।
चीन के दमन के बावजूद तिब्बत के भीतर तिब्बती लोगों ने अपने धर्म, संस्कृति, भाषा तथा प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षण करने के अपने दृढ़ संकल्प और साहस में अडिग है। उनकी साहस हमारे संकल्प के लिए प्ररेणा है। तिब्बत में हमारे तिब्बती भाइयों एवं बहनों द्वारा ली जा रही जिम्मेदारी एक जन्मसिद्ध मानव अधिकार है और चीनी संविधान के अनुरुप भी है। इसलिए हमें अटूट संकल्प के साथ अपनी पहचान को सुरक्षित रखने की अधिकार के लिए संघर्ष जारी रखना सबसे महत्वपूर्ण है। तिब्बत में चीन सरकार की नीतियों को ध्यान में रखते हुए निर्वासन में तिब्बतियों को अपनी संस्कृति और पहचान को बनाए रखने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करना चाहिए।
परम पावन 14वें दलाई लामा के मार्गदर्शन और नेतृत्व में निर्वासन में तिब्बतियों ने एक प्रभावशाली प्रशासन के निर्माण में उत्कृष्ट उपलब्धियां प्राप्त की हैं। हमें इसे बनाए रखने की प्रयासों को बरकरार रखना चाहिए।
इस अवसर का लाभ उठाते हुए हम पिछले 60 वर्षों से तिब्बत मुद्दे के लिए निरंतर समर्थन देने वाले विभिन्न राष्ट्रों विशेष रूप से भारत के केंद्र और राज्य सरकारों तथा तिब्बत समर्थक समूहों के प्रति आभार प्रकट करना चाहते हैं। हम अमेरिका सरकार द्वारा तिब्बती मुद्दों के लिए विशेष समन्वयक नियुक्त करने के लिए आभार प्रकट करते हैं। हम समान विचारधारा वाले राष्ट्रों से तिब्बत मुद्दे की समाधान हेतु माध्यम-मार्ग दृष्टिकोण को समर्थन देते हुए तिब्बत की वास्तविक ऐतिहासिक स्थिति को मान्यता देने की आग्रह करते हैं।
चूंकि मई महीने में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैचेलेट शिंझियांग की यात्रा करने वाली हैं, हम उच्चायुक्त से तिब्बत का भी दौरा करने की आग्रह करते हैं।
हम 26 वर्षीय प्रसिद्ध तिब्बती गायक छेवांग नोरबू के लिए प्रार्थना प्रकट करते हैं जिन्होंने कुछ मीडिया सूत्रों के अनुसार 25 फरवरी को ल्हासा में आत्मदाह कर तिब्बत के लिए बलिदान दी थी। हालांकि, चीनी सरकार द्वारा लगाए गए भारी प्रतिबंधों और निगरानी के कारण, हमें उनकी स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। हमारे संघर्ष के इस महत्वपूर्ण समय में एक देशभक्त तिब्बती की प्राण भी हमारे लिए एक अपूरणीय क्षति है। चूंकि प्रत्येक तिब्बती का जीवन अनमोल है, हमें जीवित रहना चाहिए और अपने आध्यात्मिक और राजनीतिक कार्यों में योगदान देना चाहिए।
हम इस दिन को यूक्रेन पर आक्रमण से उत्पन्न युद्ध की छाया के रूप में भी चिह्नित करते हैं। हम इस संघर्ष में अपनी जान गवाने वालों और घायलों के लिए प्रार्थना करते हैं और 20 लाख से अधिक यूक्रेनियाई शरणार्थियों के प्रति एकजुटता प्रकट करते हैं। हम वैश्विक महामारी और अन्य मानव निर्मित संघर्षों के तत्काल अंत के लिए भी प्रार्थना करते हैं। और मानवता शांति एवं खुशी के साथ से रह सके।
अंत में, मैं परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु और उनकी इच्छाओं की सहज पूर्ति के लिए प्रार्थना करता हूं। तिब्बत मुद्दे के सत्य की विजय हो।
कशाग
10 मार्च 2022
नोटः यह तिब्बती भाषा में जारी वक्तव्य का अंग्रेजी अनुवाद है। यदि इसमें और तिब्बती मूल पत्र के बीच कोई अंतर है तो कृपया तिब्बती बयान को आधिकारिक और अंतिम मानें।