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जिनेवा। एक तिब्बती प्रतिनिधि ने जिनेवा में चल रहे ४९वें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सत्र में १० मार्च १९५९ को तिब्बत पर हुए चीनी आक्रमण और तिब्बती लोगों के दुखद भाग्य को याद किया और उस पर विचार की।
वीडियो बयान के माध्यम से मौखिक हस्तक्षेप करते हुए तिब्बत ब्यूरो में संयुक्त राष्ट्र वकालत अधिकारी कलडेन छोमो ने संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के संबोधन का स्वागत करते हुए कहा कि ‘चीन के अधिकृत क्षेत्रों में मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कार्रवाई लंबे समय से नहीं हुई है।’
जैसा कि दुनिया के सामने यूक्रेन में मानवाधिकारों के खतरनाक उल्लंघन और मानवीय संकटों की घटनाएं सामने आ रही है, इसी संदर्भ में उन्होंने चीनी घुसपैठ के परिणामस्वरूप तिब्बती लोगों के ऐसे ही दुखद भाग्य को याद किया। ६३वें तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति दिवस के अवसर पर उन्होंने कहा, ‘१० मार्च १९५९ को हजारों तिब्बती चीनी प्रभुत्व का विरोध करते हुए पोटाला महल की सड़क पर उतर आए थे’। कलडेन छोमो ने कहा कि फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के अनुसार तिब्बत को रहने के लिए फिर से सबसे कम आजाद स्थान का दर्जा दिया गया है।
काल्डेन छोमो ने अपने मौखिक हस्तक्षेप के अंत में कहा, ‘हम उच्चायुक्त से चीन को इस बात के लिए राजी करने की अपील करते हैं कि वे तिब्बती लोगों की अंतर्निहित शिकायतों को दूर करने के लिए तिब्बती अधिकार रक्षकों और सामाजिक अधिकारों के पैरोकारों को डराने और उत्पीड़न करने के बजाय चीन से निर्वासित तिब्बती प्रशासन के नेतृत्व के साथ एक सार्थक बातचीत शुरू करने का आह्वान करें।’