प्रो0 श्यामनाथ मिश्र / पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
तिब्बती जनक्रांति दिवस की 64वीं वर्षगाँठ 10 मार्च, 2023 को भारत सहित विश्व के लगभग सभी देशो में उत्साहपूर्वक मनाई गई। तिब्बतियों और तिब्बत समर्थकों का यह विश्वयापी उत्साह प्रशसनीय है। उपनिवेशवादी चीन सरकार विभिन्न देशो को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी देती रहती है इसके बावजूद तिब्बती आंदोलन का सहयोग एवं समर्थन विश्व स्तर पर बढ़ता जा रहा है। निर्वासित तिब्बत सरकार, जो कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में धरमशाला से संचालित है, इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजन किया, जिसमें तिब्बती सांसद भी सम्मिलित थे। वास्तव में यह सरकार विश्व के अनेक देशो में रह रहे तिब्बतियों द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर मतदान से गठित अर्थात् निर्वासित सरकार है। इसका निर्वाचन लोकतांत्रिक पद्धति से कराया जाता है। परम पावन दलाई लामा अपने समस्त राजनीतिक अधिकार निर्वासित तिब्बत सरकार को सौंप चुके हैं। वे स्वयं राजप्रमुख या शासनप्रमुख नहीं हैं। इसी से स्पष्ट है कि निर्वासित तिब्बत सरकार द्वारा तिब्बती जनक्रांति दिवस के अवसर पर जो विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, वह तिब्बती जनभावना का प्रतीक है। यह तिब्बत समर्थकों की भावना की भी निशानी है। उम्मीद की जानी चाहिये कि चीन सरकार इस तथ्य पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगी।
तिब्बत जनक्रांति दिवस के अवसर पर कई देशो की संसद में तिब्बत की चिंताजनक आंतरिक स्थिति पर खुलकर चर्चा की गई। वहाँ के जनप्रतिनिधि चीनी दबाव की उपेक्षा करते हुए तिब्बत के पक्ष में खड़े हैं। उनके लिये तिब्बत समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है, क्योंकि तिब्बत पर अवैध नियंत्रण कर चीन ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया है। उसने लोकतांत्रिक आदर्शो एवं मानवीय मूल्यों का उल्लंघन किया है। स्वतंत्र देश पर साम्राज्यवादी चीन का आधिपत्य पूर्णतः अस्वीकार्य है।
भारतीय संसद में भी समय-समय पर तिब्बत की चर्चा हुई है। ऐसी चर्चा होती रहे तो ठीक रहेगा। तथाकथित भारत-चीन संबंध के नाम पर ऐसी चर्चा से दूर रहना नुकसानदेह है। चीन ने ‘‘पंचशील’’ और ‘‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’’ के संकल्प को भी महत्वहीन समझा। भारत के शांति प्रयासों के विपरीत वह युद्ध की तैयारी कर रहा था। उसने 1962 में बहुत बड़े भारतीय भूभाग पर अपना गैरकानूनी कब्जा कर लिया। वह अब भी भारत के अटूट अंग अरुणाचल प्रदेश में कई नामों का चीनीकरण कर रहा है। चीन 1962 के बाद भी भारत को चारों ओर से घेरने, इसे अपमानित करने तथा नये-नये भारतीय क्षेत्र पर चीन के दावे स्थापित करने की विस्तारवादी नीति पर चल रहा है। सराहनीय बदलाव यह है कि अब भारत सरकार चीन को उसी की भाषा में मुँहतोड़ जवाब दे रही है। अपने व्यापक राष्ट्रीय हित, अन्तरराष्ट्रीय परिस्थिति तथा कूटनीतिक रणनीति के अनुरूप भारत सरकार को चाहिये कि वह भारतीय संसद में उद्बोधन के लिये दलाई लामा को आमंत्रित करे। भारत की प्राचीन संस्कृति की समृद्धि में उनके सराहनीय योगदान के लिये उन्हें ‘‘भारत रत्न’’ से सम्मानित किया जाये।
तिब्बत की निर्वासित संसद में लगातार कई वर्षों से तिब्बती संघर्ष में सक्रिय साथ देने के लिये अमरीकी प्रतिनिधि सभा की पूर्व अध्यक्ष नैंसी पैलोसी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन अभिनंदन योग्य है। तिब्बत के अन्य कार्यालयों द्वारा भी कृतज्ञता ज्ञापन का यह प्रस्ताव अनुमोदित किया गया है। नैंसी पैलोसी के प्रयासों के परिणामस्वरूप अमरीकी सरकार तिब्बत के विषय में चीन सरकार के विरूद्ध खड़ी है। तिब्बत में मानवाधिकरों का हनन लगातार जारी है। प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण को चीन सरकार बर्बाद कर रही है। ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक लोकतांत्रिक सरकार का कर्तव्य है कि वह चीनी धमकियों की परवाह किये बिना तिब्बत के पक्ष में बोले। अपने राष्ट्रीय हित तथा अपनी संप्रभुता को चीन के समक्ष समर्पित नहीं किया जा सकता। तिब्बती संसद ने मार्च के अपने बजट सत्र में तिब्बत की दयनीय स्थिति पर विशेष चर्चा करते हुए तिब्बतियों के प्रति अपनी एकजुटता का संकल्प व्यक्त किया है। चीन के साथ अपनी द्विपक्षीय वार्ता में भारत आवष्यक रूप से तिब्बत की दयनीय स्थिति को उठाये।
विश्व के अनेक देशो में स्थित चीनी दूतावासों पर विरोध प्रदर्शन कर तिब्बती जनक्रांति दिवस की वर्षगाँठ मनाई गई। तिब्बत के विषय में प्रत्येक देश में जागरुकता बढ़ती जा रही है। इसी मार्च माह में तिब्बत सरकार में सूचना एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के कालोन अर्थात् मंत्री नोर्गिन डोल्मा तथा इसके महासचिव माननीय कर्मा जी ने अपने ताइवान प्रवास में तिब्बत की स्थिति के बारे में वहाँ के लोगों को जागरुक किया है। उन्होंने वहाँ के विदेश मंत्री, संसद के स्पीकर, सांसदों, मानवाधिकार समिति के अध्यक्ष समर्थक संगठनों, गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों एवं अन्य प्रबुद्ध व्यक्तियों से वार्ता की है। उन्होंने अपील की है कि वे तिब्बत समस्या का समाधान करने के लिये चीन पर दबाव बढ़ायें।
चीन सरकार को ताइवान में तिब्बत की चर्चा बिल्कुल बर्दाष्त नहीं है। इसके बावजूद ताइवान में नोर्गिन डोल्मा और कर्मा की प्रत्येक वार्ता सार्थक रही। ताइवान ने चीनी अत्याचार के विरूद्ध तिब्बती संघर्ष में खुलकर सहयोग एवं समर्थन देते रहने का आश्वासन दिया है। चीनी दमनकारी नीति, जो तिब्बत में 1959 से लगातार जारी है, के खिलाफ सभी देशो में अधिकाधिक विरोध प्रदर्शन होना चाहिये। विश्वभर से चीन को संदेश जाना चाहिये कि उसकी क्रूर विस्तारवादी आमानवीय नीति का जोरदार विरोध और भी अधिक सुसंगठित तथा तीव्र किया जायेगा। तिब्बती जनक्रांति दिवस का वास्तविक संदेश यही है।