आज चीनी दमन के विरूद्ध 1959 में तिब्बत के लोगों द्वारा शान्तिमय विद्रोह की 51वीं वर्षगांठ है तथा मार्च 2008 में समूचे तिब्बत में फूटे विरोध की दूसरी वर्षगांठ। इस अवसर पर मैं तिब्बत के उन वीरों और वीरांगनाओं को श्रद्घांजलि अर्पित करता हूँ जिन्होंने तिब्बत के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया तथा जो लोग अब तक तिब्बत में यातनाएं झेल रहे हैं उनके दुःखों के शीघ्र अन्त के लिए प्रार्थना करता हूँ।
कई दशकों से अनेक मुशिकलों का सामना करने को बावजूद तिब्बती लोग अपना साहस तथा संकल्प संजोए रखने, अपनी करूणामयी संस्कृति के संरक्षण तथा अपनी अस्मिता को कायम रखने में सफल रहे हैं। यह बात भी प्रेरणादायक है कि तिब्बतियों की एक नई पीढ़ी तिब्बत के सरकारों को सजीव रख रही है। मैं उन तिब्बती लोगों के जो अब भी भय और दमन को सहन कर रहे हैं उनके साहस को प्रणाम करता हूँ। हम चाहे किन्हीं भी परिस्थितियों में हों सभी तिब्बतियों का यह दायित्व है कि वे अपनी विशिष्ट पहचान तथा संस्कृति की रक्षा करते हुए भी अन्य राष्ट्रीय इकाईयों के बीच समता, समरसता तथा एकता बनाए रखें। तिब्बत के अनेक भागों में बहुत से तिब्बती पार्टी, सरकार तथा सेना में जिम्मेदार पदों पर काम कर रहे हैं तथा तिब्बतियों की यदासम्भव सहायता कर रहे हैं। अब तक उनके द्वारा दिए गए सकारात्मक योगदान की हम सराहना करते हैं। जाहिर है कि जब निकट भविष्य में तिब्बत सार्थक स्वायत्तता प्राप्त कर लेगा तो उन लोगों को वैसे ही उत्तरदायित्व निभाते रहना होगा।
मैं यह दुहराना चाहूंगा कि एक बार जब तिब्बत की समस्या का समाधान हो गया तो मैं कोई राजनीतिक पद ग्रहण नहीं करूंगा और न ही निर्वासित सरकार के सदस्य तिब्बती प्रशासन में कोई पद ग्रहण करेंगे। भूत में भी में निरन्तर इस बात को स्पष्ट कर चुका हूँ। मैं निमंत्रण देता हूँ उन तिब्बती अधिकारियों को जो तिब्बत के कई स्वायत्त प्रभागों में कार्यरत है कि निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों की दशा और दिशा को समझने हेतु वे आऐं और स्वतंत्र देशों में रह रहे तिब्बती समाजों से चाहे सरकारी या गैर तौर पर मिलें तथा स्वयं हालात का जायजा लें।
निर्वासित तिब्बती जहां भी जा कर बसे हैं वही उन्होंने तिब्बत के प्रशन पर जागरूकता पैदा करने के अतिरिक्त अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक तथा आद्यात्मिक परम्पराओं का संरक्षण और सवर्धन भी किया है। अन्य शरणार्थियों के विपरीत हम अपेक्षतः अधिक सफल रहे हैं। क्योंकि हम अपने बच्चों को अपने पारम्परिक मूल्यों के अनुरूप उनका पालन पोषण करते हुए भी ठोस आधुनिक शिक्षा उपलब्ध करवा पाए हैं। क्योंकि बौद्ध धर्म की चार प्रमुख शाखाओं तथा बौन धर्म के अध्यक्ष भी निर्वासन मे हैं हम धार्मिक प्रशिक्षण तथा चर्य्या हेतु अनेक संस्थाओं को भी स्थापित कर सके हैं। इन संस्थाओं में 10,000 भिक्षु और भिक्षुणिओं को अपना काम काज करने की स्वतंत्रता है। तिब्बत से निरंतर चले आ रहे भिक्षु तथा भिक्षुणिओं और छात्रों के लिए भी शिक्षा के अवसर प्रदान करने में हम सफल रहे हैं। साथ ही पूर्व और पशिचम के देशों में बौद्ध धर्म के अमूत पूर्व प्रसार तथा भविष्य में उसके समृद्ध होने की संभावना से हम आशान्वित हुए है कि वह सुरक्षित रहेगा। तिब्बत के इतिहास के सर्वाधिक संकटमय इस दौर में यह हमारे लिए बड़ी सांत्वना की बात है।
वर्तमान में चीनी अधिकारी तिब्बत के मठों में कई राजनीतिक अभियान चला रहे हैं, जैसे कि राष्ट्रीय पुनर शिक्षण। भिक्षु तथा भिक्षुणियों को उन्होंने बन्दीगृह जैसी स्थिति में डाल रखा है और शान्ति से अपनी चर्य्याऐं करने तथा शिक्षा पाने से वंचित कर रखा है। इन परिस्थितियों में मठ केवल अजायब घर बन कर रह गए हैं।
बौद्ध धर्म के करूणा और अहिंसा के सिद्धान्तो पर आधारित तिब्बती संस्कृति न केवल तिब्बती लोगों बल्कि चीनियों समेत समस्त विशव के लोगों के लिए हितकर है। अतःहम तिब्बतियों को केवल भौतिक प्रगति पर ही ध्यान न देकर बल्कि तिब्बत के भीतर और तिब्बत से बाहरी रह रहे तिब्बतियों को अपने पारम्परिक मूल्यों के साथ साथ आधुनिक शिक्षा को भी उदार बनाना चाहिए। अधिक युवा तिब्बतियों को विशेषज्ञ तथा दक्ष व्यवसायिक बनना चाहिए। आवशयक है कि तिब्बती लोग न केवल अन्य राष्ट्रीय लोगों के साथ मैत्री रखें बल्कि अपने लोगों से भी और आपस के छोटे छोटे झगड़ों में न पड़े। मैं उन से अनुरोध करूगा कि आपस के मतभेद शान्ति तथा धैर्य से सुलझाऐं।
चीनी प्रशासन स्वीकार करे या न करे परन्तु तिब्बत के सम्बन्ध में गम्भीर समस्या तो हैं ही। सारा संसार जानता हैं कि तिब्बत में बड़े पैमाने पर सेना की उपस्थिति तथा तिब्बत यात्रा पर लगे प्रतिबन्ध इसका स्पष्ट प्रमाण है। यह हम दोनों में से किसी के हित में नही । हमें समस्या के समाधान हेतु अवसर का उपयोग करना होगा।
गत तीस वर्ष से अधिक समय से दोनों पक्षों के लिए लाभकारी अपने मध्यमार्गीय सिद्धांत द्वारा मैं ने तिब्बत समस्या के समाधान हेतु चीन के जनवादी लोकतंत्र से बात करने की चेष्टा की है। यद्यापि मैने तिब्बत की आकाक्षाओं को स्पष्ट रूप से उदाह्रत किया है, जो कि चीनी संविधान तथा प्रदेशक स्वायत्तता के प्रावधानों के अनुकूल हैं, तो भी उस का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है। वर्तमान चीनी नेतृत्व के रूख को देखते हुए कोई उम्मीद नहीं कि निकट भविष्य में भी कोई परिणाम निकले। हां वार्तालाप के हित में हमारे दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन नही है।
गर्व और सन्तोष का विषय है कि दोनों पक्षों के लिये पारस्पारिक तौर पर हितकर हमारे मध्यमार्गीय दृष्टिकोण तथा तिब्बती संघर्ष के न्यायोचित होने की बात को वर्ष प्रतिवर्ष अनेक धर्मआगुओं और राजनीतिक नेताओं ने अधिकाधिक रूप में समझा और स्वीकारा है, जिन में शामिल है अमरीका के राष्ट्रपित, विख्यत गैर-सरकारी संस्थाएं, विशव समाज तथा विशेषकर, चीनी बुद्धिजीवी। स्पष्ट है कि तिब्बत की समस्या चीनी और तिब्बती जनता के बीच का विवाद नहीं बल्कि इस का कारण है चीनी समाजवादी प्रशासन की अतिवादी वाम दलीय नीतियां।
तिब्बत के 2008 के प्रदर्शनों के बाद से चीन के भीतर और बाहरी रहने वाले चीनी बुद्धिजीवियों ने तिब्बत समस्या से सम्बन्धित 800 से भी अधिक निष्पक्ष लेख लिखें है। अपनी विदेश यात्राओं के दौरान में जहां भी जाता हूं तो जब मेरी साधारणतयः चीनियों से भेट होती है, विशेष कर बुद्धिजीवियों और छात्रों से, तो वे अपनी हार्दिक सहानुभूति और सहायत का प्रकटीकरण करते हैं। क्योंकि चीन तिब्बत समस्या का समाधान, अन्ततोगत्वा, दोनों देशों की जनता के बीच होना है, इसलिये जहां भी हो सके मैं आपस में सूझबूझ स्थापित करने के उद्देशय से चीनी लोगों के प्रति हाथ बढ़ाता हूँ। अतः तिब्बतियों के लिये हर जगह यह बहुत जरूरी है कि वे चीनियों के साथ निकट सम्बन्ध बनाऐं तथा तिब्बत के सत्य के बारे और तिब्बत के वर्तमान हालात से उन्हें अवगत कराऐं।
आईए हम पूर्वी तुर्कस्तान के लोगों का भी स्मरण करे जिन्होने महान विपत्तियां तथा अधिकाधिक यातनाऐं झेली है, उन चीनी बुद्धिजीवियों के भी याद करे जो अधिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष-रत है और जिन्हें कठोर दण्ड मिला है। मै उनके साथ अपनी एकात्मता प्रकट करता हूँ तथा दृढ़ता से उनके साथ हूँ।
बहुत आवशयक है कि चीन की 1.3अरब जनता को अपने देश तथा अन्यो के बारे में सूचना पाने की स्वतन्त्रता हो और साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी हो तथा कानून का शासन चले। यदि चीन में अधिक पारदर्शिता हो तो विशवास में वृद्धि होगी जिसके परिणाम स्वरूप समरसता, स्थिरता तथा प्रगति को बल मिलेगा। अतः हर किसी को इस दिशा में प्रयत्न करना चाहिए। तिब्बती जनता के एक स्वतंत्र प्रवक्ता के नाते मै बार बार उन की आकांक्षाओं की व्याख्या चीनी लोकतांत्रिक गणराज्य के नेताओं के समक्ष कर चुका हूँ। उनकी और से सकारात्मक प्रतिक्रिया का अभाव निराशजनक है। यद्यपि वर्तमान प्रशासन अपने कठोरवादी पक्ष से चिमटा भी रहे तो भी, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर घटित हो रहे बदलावों को देखते हुए तथा चीनी जनता के दृष्टिकोण में परिवर्तन के संदर्भ में, कहा जा सकता है कि समय आएगा जब विजय सत्य की ही होगी। अतः यह जरूरी है कि सभी धैर्य रखें और आस न छोड़े।
पांचवें तिब्बत वर्क फोरम के अवसर पर लिये गए केन्द्रीय सरकार के इस निर्णय का हम स्वागत करते हैं कि भविष्य में प्रगति और विकास के लिए सभी तिब्बती प्रदेशों में समान नीति लागू की जाएगी। नेशनल पीपुल्ज़ कान्फैन्स के हाल ही में हुए अधिवेशन में प्रधानमंत्री वेन जिया बाओ ने भी इस की पुष्टि की। यह हमारी बार बार दुहराई जाने वाली मांग के अनुरूप है कि सभी तिब्बती प्रदेशों के लिए समान प्रशासनिक व्यवस्था हो। इसी प्रकार तिब्बती इलाकों में हुए विकास की भी हम सरहाना करते हैं, विशेषतः घुमन्तओं और कृषि से जुड़े क्षेत्रों में। हां, हमें सतर्क रहना चाहिए कि यह विकास हमारी मूल्यवान संस्कृति, भाषा तथा तिब्बत के प्राकृतिक पर्य्यावरण के लिए हानिकारक न हो जिस का सम्बन्ध समस्त ऐशिया के कल्याण से जुड़ा है।
इस अवसर पर मै अपना हार्दिक अभार प्रकट करना चाहूंगा उन अनेक देशों के नेताओं और उनके बुद्धिजीवियों, जन साधारण, तिब्बत समर्थक समूहों तथा उन सभी के प्रति जो सत्य और न्याय के पक्षधर है और चीनी सरकार के दबाव तथा उत्पीड़न के बावजूद भी तिब्बत के प्रशन पर हमारा समर्थन कर रहे हैं। भारत सरकार, प्रदेश सरकारों तथा भारत की जनता के प्रति मैं विशेष रूप से उनके निरन्तर तथा उदार समर्थन के लिये दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
अन्त में, मैं समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए प्रार्थना करता हूँ।
दलाई लामा
10 मार्च, 2010