
भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) के महिला सम्मेलन का उद्घाटन 22 मार्च को हुआ। इस सम्मेलन में अपने क्षेत्र के प्रमुख विद्वानों, पेशेवरों और अधिवक्ताओं ने महिलाओं की सुरक्षा, लचीलापन, पर्यावरण एवं जलवायु, डिजिटल सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता तथा पहचान एवं अभिव्यक्ति से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन नई दिल्ली स्थित भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ) और भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) ने युवा केंद्र (सी4वाई), सामाजिक शोध केंद्र (सीएसआर) और सामाजिक विकास एवं आपदा प्रबंधन संस्थान के सहयोग से किया था।
उद्घाटन सत्र में राजदूत (सेवानिवृत्त) दिलीप सिन्हा, नई दिल्ली स्थित परम पावन दलाई लामा ब्यूरो के प्रतिनिधि श्री जिग्मे जुंगने, जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय राजनीति, संगठन और निरस्त्रीकरण केंद्र (सीआईपीओडी) से डॉ. येशी चोएडोन, उत्तर प्रदेश के शिव नादर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध और शासन अध्ययन विभाग की आदरणीय प्रो. कावेरी गिल और आईटीएफएस की ओर से सम्मेलन की संयोजक सुश्री ज्योत्सना रॉय सहित प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
इन प्रतिष्ठित वक्ताओं ने सामूहिक रूप से तिब्बत के रणनीतिक, ऐतिहासिक और मानवीय महत्व को रेखांकित किया। इन वक्ताओं ने भारत की सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर इसके महत्वपूर्ण प्रभाव पर जोर देते हुए तिब्बती मुद्दे के लिए मजबूत जुड़ाव और समर्थन की वकालत की।
दलाई लामा ब्यूरो के प्रतिनिधि श्री जिग्मे जुंगनी ने तिब्बत मुद्दे को ‘दक्षिण पूर्व एशिया, विशेष रूप से भारत की सुरक्षा और स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मामला’ बताया।
डॉ. येशी चोएडॉन ने जोर देकर कहा कि ‘तिब्बत ने पहले 1950 में चामडो के युद्ध और बाद में 1959 में चीन द्वारा व्यापक पैमाने पर आक्रमण के बाद अपनी स्वतंत्रता खो दी। दुखद यह रहा कि 1959 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस आक्रमण और आधिपत्य को राजनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता के बजाय गलत तरीके से केवल मानवाधिकार मुद्दे के रूप में लिया गया था।’ डॉ. चोएडॉन ने आगे बताया कि ‘तिब्बत में चीन की बुनियादी ढांचागत गतिविधियां अब क्षेत्रीय सुरक्षा, जलवायु स्थिरता और जल संसाधनों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं।’
भिक्षुणी प्रो. कावेरी गिल ने जोर देकर कहा कि ‘हिमालय बेल्ट के साथ भारत और तिब्बत के बीच प्राकृतिक सीमा पर चीन का कोई उचित दावा या भूमिका नहीं है।’ उन्होंने सवाल किया कि ‘हमें अपने तिब्बती भाई- बहनों की ओर दोस्ती का हाथ क्यों नहीं बढ़ाना चाहिए, खासकर जब भारत वर्तमान बहुध्रुवीय व्यवस्था में ऐतिहासिक गुटनिरपेक्ष मैत्री भावना की विरासत के साथ सबसे महान राष्ट्र के रूप में खड़ा है?’
राजदूत दिलीप सिन्हा (सेवानिवृत्त) ने अपने व्याख्यान को इस बात पर केंद्रित रखा कि ‘तिब्बत के प्राचीन काल से चीन का हिस्सा होने का चीन का दावा झूठा और भ्रामक है। उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि खुद चीन भी अपने ऐतिहासिक मनगढ़ंत कपोलकथा पर भरोसा नहीं करता’। उन्होंने स्थिति को तिब्बत के प्रति अज्ञानता और उदासीनता की नीतियों के बीच की लड़ाई बताया और आग्रह किया कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तिब्बती मुद्दे को उठाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने तिब्बती मुद्दे को आगे बढ़ाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और याद दिलाया कि ‘भारत के सबसे बड़े पड़ोसी तिब्बत की सीमा भारत के साथ 4000 किलोमीटर की लंबाई तक मिलती है’।




सेंटर फॉर सोशल रिसर्च (सीएसआर) की निदेशक डॉ. रंजना कुमारी, जेएनयू में सीआईपीओडी के प्रोफेसर डॉ. येशी चोएडॉन, शिक्षाविद, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. आमना मिर्जा, सेंटर फॉर यूथ (सी4वाई) की अध्यक्ष सुश्री अलका तोमर, हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित तिब्बत नीति संस्थान में रिसर्च फेलो सुश्री धोंडुप वांगमो, कोआन एडवाइजरी, दिल्ली की एडवोकेट लालंतिका अरविंद, मलनाड कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदिरा बहादुर, कॉन्फ्लुएंस मीडिया की सह-संस्थापक और मुख्य रणनीति और प्रभाव अधिकारी सुश्री अनीसा द्राबू, जामिया मिलिया इस्लामिया की पीएचडी स्कॉलर सुश्री फराना सलाम, हरियाणा की परफॉरमेंस आर्टिस्ट और फिल्म अभिनेत्री सुश्री गायत्री कौशिक और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के समाजशास्त्र विभाग में एम.फिल. स्कॉलर सुश्री नांगसेल शेरपा।
पैनल सत्रों का कुशलतापूर्वक संचालन डॉ. रीना झा, सेंटर फॉर सोशल रिसर्च (सीएसआर) की शोध एवं ज्ञान प्रबंधन प्रभाग की प्रमुख डॉ. मानसी मिश्रा और जेजीयू, जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज, ओपी जिंदल विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर लर्निंग एंड इनोवेटिव पेडागोजीज की सहायक निदेशक डॉ. स्वाति चाओला ने किया।


इन पैनलों में 150 से अधिक प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया, जिनमें 9 राज्यों – दिल्ली, ओडिशा, पुड्डुचेरी, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और एक केंद्र शासित प्रदेश के 30 प्रतिनिधि शामिल थे। प्रतिभागियों में तिब्बत नीति संस्थान, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) की महिला सशक्तिकरण डेस्क, तिब्बती महिला संघ (टीडब्ल्यूए) की अध्यक्ष और टीम, तिब्बत एडवोकेसी एलायंस और दिल्ली में तिब्बती युवा छात्रावास के छात्र भी शामिल थे। छात्रों ने ताशी शोल्पा नृत्य, जिसे गुड लक नृत्य के रूप में भी जाना जाता है, ओपेरा (नामथार),और याक नृत्य सहित पारंपरिक तिब्बती नृत्य और गीत प्रस्तुत किए।

23 मार्च को चौथे पैनल सत्र के बाद भी चर्चा जारी रही जहां प्रतिभागियों ने समूह चर्चाओं में भाग लिया और सिफारिशें प्रस्तावित कीं। आईटीएफएस ने भारत सरकार और नागरिक समाज से तिब्बत विरासत के संरक्षण का समर्थन करने, हिमालयी क्षेत्र में चीनी आक्रमण का विरोध करने और तिब्बती महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक कल्याण तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने का आग्रह करते हुए प्रस्ताव पारित किए। इसने तिब्बती स्वतंत्रता संग्राम के साथ एकजुटता की पुष्टि की और भारत से तिब्बती सरकार को मान्यता देने और वैश्विक स्तर पर इस मुद्दे के पक्ष में अभियान चलाने का आह्वान किया। सम्मेलन में कैलाश-मानसरोवर के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व पर भी जोर दिया गया तथा भारत सरकार और परम पावन दलाई लामा के मार्गदर्शन में अप्रतिबंधित तीर्थयात्रा को बहाल कराने की मांग की गई।
उसी दिन आयोजित समापन सत्र में आईटीएफएस के अध्यक्ष प्रोफेसर आनंद कुमार, कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया के संयोजक श्री आर.के. खिरमे, सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता सुस्मिता हजारिका, सम्मेलन की संयोजक सुश्री ज्योत्सना रॉय और भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय की समन्वयक सुश्री ताशी देकि ने भाग लिया। इन प्रतिष्ठित वक्ताओं ने सामूहिक रूप से तिब्बती मुद्दे का समर्थन करने की नैतिक, रणनीतिक और मानवीय अनिवार्यता पर जोर दिया, भारतीय नेताओं की ऐतिहासिक प्रतिबद्धता, तिब्बत में मानवाधिकारों की चिंताओं को दूर करने की तत्काल आवश्यकता और निरंतर पक्षधरता कार्यक्रम और एकजुटता कार्यक्रम के माध्यम से गति बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डाला।
कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज-इंडिया (सीजीटीसी-आई) के संयोजक श्री आर.के. खिरमे ने तिब्बत आंदोलन को बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ‘हमें तिब्बत आंदोलन की चिनगारी को बचाए रखने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि ये चिनगारी आने वाले प्रयासों में तिब्बत की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगी।’ आईटीएफएस- इंडिया के अध्यक्ष प्रोफेसर आनंद कुमार ने तिब्बती आंदोलन की वैश्विक मान्यता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और कहा कि ‘तिब्बतियों को दुनिया से यह विश्वास मिलना चाहिए कि उनका आंदोलन न्यायसंगत और सही है। परम पावन 14वें दलाई लामा और तिब्बती लोग भारत में शरणार्थी नहीं हैं- वे सम्मानित अतिथि हैं। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, चरण सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और कई अन्य गणमान्य नेताओं सहित भारत के अनेक नेताओं ने वर्षों से इस भावना की पुष्टि की है।’ उन्होंने आगे बताया कि चीनी सरकार द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य जमा लेने के बाद से हिमालयी सीमा पर सुरक्षा चिंताओं के कारण भारत के सैन्य खर्च में काफी वृद्धि हुई है। सुश्री ज्योत्सना रॉय ने बताया कि इस महिला सम्मेलन को आयोजित करने का निर्णय 31 अक्तूबर से 01 नवंबर तक राजगीर में आयोजित भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) के नौवें राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान लिया गया था। इसके अतिरिक्त, भारत-तिब्बत समन्वय केंद्र की समन्वयक श्रीमती ताशी देकि ने तिब्बत में चल रहे मानवाधिकार मुद्दों पर जोर दिया और तिब्बत समर्थकों से अपने प्रयास जारी रखने की अपील की, क्योंकि तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।
आईटीएफएस महिला सम्मेलन ने तिब्बती और हिमालयी क्षेत्र की महिलाओं को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को प्रभावी ढंग से उजागर किया। साथ ही भारत और उसके बाहर तिब्बत के सामरिक, ऐतिहासिक और मानवीय महत्व पर जोर दिया। सम्मेलन में तिब्बती विरासत को संरक्षित करने, चीनी आक्रमण का विरोध करने और तिब्बती महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवा और कल्याण में सुधार करने का आह्वान किया गया। प्रस्तावों में भारत से तिब्बती निर्वासित सरकार को मान्यता देने और वैश्विक स्तर पर तिब्बती मुद्दे के पक्ष में अभियान चलाने का आग्रह किया गया। इसके साथ ही कैलाश-मानसरोवर की अप्रतिबंधित तीर्थयात्रा को बहाल करने की भी मांग की गई। समापन सत्र में इस बात की पुष्टि की गई कि तिब्बती भारत में सम्मानित अतिथि हैं, शरणार्थी नहीं। सम्मेलन में तिब्बती लोगों की स्थायी स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए तिब्बती आंदोलन की लौ को जीवित रखने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
– भारत तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ)