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तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र में चीनी अधिकारियों ने हाल ही में अफवाहों और गलत सूचनाओं पर रोक लगाने के उद्देश्य से एक अभियान चलाने की घोषणा की। लेकिन तिब्बती विश्लेषकों का कहना है कि इसका असली मकसद, खासकर तिब्बती स्वतंत्रता के पैरोकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करना है।
चीन तिब्बत ऑनलाइन में 01 अप्रैल को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, 17 सूत्रीय ष्अफवाह और प्रतिक्रियावादी गतिविधियां रोकोष् अभियान के तहत उन लोगों के लिए पुरस्कार दिया जाएगा जो अधिकारियों को अवैध गतिविधियों की विस्तृत सूचना प्रदान करेंगे।
इस अभियान के तहत अनधिकृत प्रकाशनों के मुद्रण या वितरण, तिब्बत के लिए अत्यधिक स्वायत्तता की पैरोकारी और अंधविश्वासों को प्रोत्साहन देकर धार्मिक अनुयायियों को ष्गुमराह करनेष् जैसी गतिविधियों की सूचना देने पर इन खबरियों को 1000 से 10,000 युआन (141 से 1,410 अमेरिकी डॉलर) तक का पुरस्कार दिया जाएगा।
इन उपायों में विशेष रूप से “उन लोगों के बारे में विचार विमर्श किया गया है जो तिब्बती स्वतंत्रता का आह्वान करने जैसी अवैध गतिविधियों की पैरोकारी करते हैं।”
भय फैलाना
कई तिब्बती विश्लेषकों का कहना है कि अभियान तिब्बतियों को एक-दूसरे की सुरागरसी करने और उनकी राष्ट्रीय पहचान की भावना को नष्ट करने के लिए है।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रवक्ता आर्य त्सावांग ग्यालपो ने आरएफए की तिब्बती सेवा को बताया कि “वास्तव में इस अभियान का उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा और तिब्बती धर्म और संस्कृति के संरक्षण की वकालत करने वालों के लिए भय और संदेह का वातावरण पैदा करना है।”
प्रवक्ता ने कहा “यह अभियान उन साहसी तिब्बतियों की गिरफ्तारी और नजरबंदी की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है जो तिब्बती भाषा और संस्कृति के पक्ष में खड़े होते हैं।”
तिब्बत नीति संस्थान के एक शोधकर्ता तेनजिन डेल्हा ने आरएफए को बताया, “ये तथाकथित मानक कोई नई बात नहीं है। चीनी अधिकारियों ने बहुत पहले इन नीतियों को लागू किया था ताकि तिब्बती लोगों पर दमन चक्र को तेज किया जा सके और उन पर आसानी से नियंत्रण स्थापित किया जा सके।”
उन्होंने कहा ष्खबरियों को पुरस्कृत करके यह अभियान तिब्बतियों के बीच ही आपसी कलह का बीज बोता है। पहले की नीतियों के विपरीत यह (अभियान) तिब्बतियों में अधिक आक्रोश और अविश्वास पैदा करेगा।”
खबरियों को पुरस्कृत करने की नीति की पहले भी मिशालें रही हैं। इसी तरह के अभियान वर्ष 2000 में और फिर सितंबर 2019 में चलाए गए थे।