३० अप्रैल २०२३, नई दिल्ली। विख्यात समाजवादी चिंतकों में से एक उत्कृष्ट सांसद और तिब्बत के मित्र मधु लिमये का जन्म शताब्दी समारोह ३० अप्रैल २०२३ को नई दिल्ली में आयोजित किया गया।
इस शताब्दी समारोह में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, प्रख्यात सार्वजनिक बुद्धिजीवियों, समाजवादी कार्यकर्ताओं, मधु लिमये के मित्रों और आम जनता ने भाग लिया।
समारोह में भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ), मजनूं का टीला और बौद्ध विहार के समयेलिंग तिब्बती बस्ती के तिब्बती प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
समारोह के आयोजकों में से एक भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) के अध्यक्ष डॉ. आनंद कुमार ने समारोह में सदस्यों को संबोधित किया। वरिष्ठ समाजवादी कार्यकर्ताओं और मधु लिमये के दोस्तों को समारोह में सम्मानित भी किया गया।
उसी दिन उत्साही तिब्बत समर्थक, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व सांसद पद्म विभूषण डॉ. निर्मला देशपांडे का १५वां स्मृति दिवस कार्यक्रम नई दिल्ली के एमपी क्लब में मनाया गया।
इस अवसर पर आईटीसीओ और मजनूं का टीला और बौद्ध विहार के समयेलिंग तिब्बती बस्ती के तिब्बती प्रतिनिधियों ने कार्यक्रम में भाग लिया और सदस्यों ने डॉ. निर्मला देशपांडे के चित्र पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर सामाजिक कार्य, शिक्षा, संस्कृति और स्वास्थ्य के क्षेत्र की ७ अग्रणी महिलाओं को डॉ. निर्मला देशपांडे स्मृति नारी सम्मान- २०२३ से सम्मानित किया गया। इनमें सीटीए के सुरक्षा विभाग की कलोन ग्यारी डोलमा भी थीं। कार्यक्रम का आयोजन डॉ. निर्मला देशपांडे द्वारा स्थापित गांधीवादी संगठनों के वैश्विक महासंघ अखिल भारत रचनात्मक समाज ने किया।
मधु लिमये और डॉ. निर्मला देशपांडे का संक्षिप्त परिचय
मधु लिमये (०१ मई १९२२ – ०८ जनवरी १९९५) एक प्रसिद्ध समाजवादी महापुरुष थे, जिन्होंने १९४० से लेकर अपने शानदार जीवन के अंत तक ५० से अधिक वर्षों तक समाजवादी आंदोलन में योगदान दिया। वह राम मनोहर लोहिया के अनुयायी और तिब्बत के मित्र और उत्साही तिब्बत समर्थक जॉर्ज फर्नांडीस के साथी थे। वह १९६३, ’६७, ’७४ और ’७७ में बिहार से लोकसभा के लिए चुने गए एक उत्कृष्ट सांसद थे। वह एक अनुकरणीय समाजवादी थे जिन्होंने सादगी, ईमानदारी और दृढ़ विश्वास के साहस का परिचय दिया।
निर्मला देशपांडे (१७ अक्तूबर १९२९ – ०१ मई २००८) एक प्रसिद्ध भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता थीं जिन्होंने गांधीवादी विचार और दर्शन को अपनाया। उन्होंने अपना पूरा जीवन सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने और महिलाओं, आदिवासियों और भारत में वंचितों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। वह अगस्त १९९७ से अगस्त १९९९ तक और २४ जून २००४ से २०१० तक दो बार राज्यसभा की मनोनीत सदस्य रहीं। उन्हें २००६ में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। ०१ मई २००८ को तड़के नई दिल्ली में ७९ वर्ष की आयु में उनकी नींद में ही मृत्यु हो गई।