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३० अगस्त २०२१
चीन चाहता है कि हम इस बात पर विश्वास कर लें कि उसने ७० साल पहले तिब्बत को मुक्त करा दिया था। वास्तव में ऐसा नहीं हुआ था। यह सच है कि २३ मई १९५१ को तिब्बत और चीन ने ‘तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के लिए उपायों पर समझौते’ पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे १७ सूत्रीय समझौते के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन इसके बाद चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर उसे पूरी तरह से सील कर दिया न कि उसे ‘मुक्त’ कराया।
अपने संस्मरणों के आधार पर दलाई लामा ने कहा कि समझौता करने के लिए तिब्बती प्रतिनिधियों पर ‘दबाव बनाकर’ उन्हें मजबूर किया गया था, और यहां तक कि समझौते पर मुहर भी जाली थी। जब वह मार्च १९५९ में भारतीय सीमा पार कर असम के तेजपुर पहुंचे, तभी इस तिब्बती नेता ने तुरंत समझौते की निंदा की थी।
अजीबोगरीब तरह से, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अगस्त में २३ मई की घटना को मनाने का फैसला किया। कोई नहीं जानता कि तथाकथित मुक्ति की सालगिरह २३ मई को क्यों नहीं मनाई गई या यहां तक कि जब ‘कोर लीडर’ शी जिनपिंग ने जुलाई में तिब्बत का दौरा किया, उस समय क्यों नहीं मनाई गई। क्या मई में लद्दाख में सीमा की स्थिति को लेकर बीजिंग घबराया हुआ था?
१९ अगस्त को बीजिंग का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल चीनी पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस के प्रमुख और पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य वांग यांग के नेतृत्व में तथाकथित ‘तिब्बत मुक्ति’ की ७०वीं वर्षगांठ समारोह में भाग लेने के लिए ल्हासा में उतरा। श्री वांग कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व की पंक्ति में चौथे स्थान पर हैं।
श्री वांग के साथ संयुक्त मोर्चा कार्य विभाग के अल्पसंख्यकों (और विशेष रूप से तिब्बत) से संबंधित विभाग के कई अधिकारियों, जिसमें इसके मंत्री यू क्वान और मुट्ठी भर कट्टर तिब्बती कम्युनिस्ट भी हैं, के अलावा सेंट्रल सैन्य आयोग (सीएमसी) के सदस्य और सीएमसी राजनीतिक कार्य विभाग के निदेशक एडमिरल मियाओ हुआ भी थे।
हालांकि बहुत कम टिप्पणीकारों ने एडमिरल हुआ की उपस्थिति पर ध्यान दिया, लेकिन तिब्बत में निश्चित रूप से सफेद वर्दी वाले एक थ्री-स्टार एडमिरल की उपस्थिति पहली बार देखी गई। बाद में एडमिरल मियाओ तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट (टीएमडी) के शक्तिशाली राजनीतिक कमिश्नर लेफ्टिनेंट जनरल झांग ज़ुएजी के साथ एक तेज़ रफ्तार ट्रेन से नाग्चू के सुदूर, ठंडे, निर्जन उच्च-ऊंचाई वाले क्षेत्र की ओर चले गए। एडमिरल मियाओ संभवत: ‘राजनीतिक कार्य’ के लिए दुनिया की छत पर आए थे और जुलाई में राष्ट्रपति शी की यात्रा के दौरान अपने सहयोगी जनरल झांग यूक्सिया के साथ ‘सीमा’ मसले पर टीएमडी से चर्चा करने के लिए आए थे।
दुनिया की छत पर वास्तव में क्या पक रहा है?
चीनी नेतृत्व की मुख्य चिंता पीएलए में तिब्बतियों की भर्ती के लिए बड़े अभियान के अलावा, सीमाओं की ‘स्थिरता’ को लेकर प्रतीत होती है। पोटाला स्क्वायर से अपने भाषण में श्री वांग ने कहा, ‘वर्तमान में, तिब्बत में सामाजिक स्थिति सामंजस्यपूर्ण और स्थिर है। विकास की गुणवत्ता में लगातार सुधार हो रहा है। लोगों के जीवन स्तर में व्यापक रूप से सुधार हुआ है। पारिस्थितिक सुरक्षा बाधा तेजी से खत्म हो रही है। जातीय और धर्म के पहलू सामंजस्यपूर्ण हैं। सीमा मजबूत और सुरक्षित है। पार्टी का निर्माण व्यापक रूप से मजबूत है और नया समाजवादी तिब्बत जीवंत रूप से आगे बढ़ रहा है।’ हालांकि यह सब उनकी इच्छाधारी सोच हो सकती है।
भारत की सीमाओं पर ‘मामूली रूप से समृद्ध’ ६०५ गांवों के निर्माण के अलावा, सीमा को स्थिर करने का एक और तरीका हान मूल के चीनियों और तिब्बतियों के बीच अंतर-नस्लीय विवाह है। पिछले ७० वर्षों में इस तरह की घटनाएं दुर्लभ रही हैं। क्योंकि तिब्बती हमेशा अपनी ‘अस्मिता’ के खो जाने के डर से इस तरह के विवाह संबंधों के प्रति अनिच्छुक रहे हैं। लेकिन इससे ऐसा लगता है कि अब यह प्रवृत्ति बदल रही है।
मार्च १९५५ में भारतीय विदेश मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में सिक्किम के राजनीतिक अधिकारी आपा पंत ने लिखा था कि सिक्किम के पास चुंबी घाटी में लोगों का उपयोग चीन द्वारा तिब्बतियों का दिल जीतने के प्रयास के तौर पर किया गया था। इस रिपोर्ट में उन्होंने इसके तहत अंतर नस्लीय विवाह का उल्लेख किया। उन्होंने लिखा, ‘तिब्बत और चीन के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित करने की नीति के विभिन्न पहलुओं को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इनमें से एक चीनी-तिब्बतियों के बीच वैवाहिक संबंध है। यहां तक कि कई बार प्रचार के माध्यम से इस तरह के विवाह संबंधों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।’ हालांकि उन्होंने लिखा है कि इसे लेकर कई तिब्बतियों में डर था। चीनी सबसे योग्य तिब्बती लड़कियों से शादी करेंगे और चीन-तिब्बती लोगों की एक नई पीढ़ी का निर्माण करेंगे जो चीन के प्रति गहरा भावनात्मक समर्थन रखेंगे।’ हालांकि, १९५९ में दलाई लामा के भारत में शरण लेने के बाद इस प्रकार के अंतर-नस्लीय विवाह व्यावहारिक रूप से बंद हो गए।
लेकिन जैसा कि ‘चाइना डेली’ अखबार में एक लेख में कहा गया है, ‘अब स्थिति बदल गई है। हान-तिब्बती जोड़े क्षेत्र में एकता और प्रेम की मिशाल कायम कर रहे हैं।’ अखबार ने जुलाई में तिब्बत में स्थानीय अधिकारियों के साथ बातचीत के दौरान शी जिनपिंग के हवाले से उनके कई उद्धरण प्रकाशित किए। जैसे, ‘सीमा क्षेत्र रक्षा की पहली पंक्ति है और राष्ट्रीय सुरक्षा का घेरा है। हमें सीमा के बुनियादी ढांचे के निर्माण को मजबूत करना चाहिए। सभी नस्लीय समूहों के लोगों को सीमा पर जड़ें जमाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। देश की रक्षा करनी चाहिए और अपने गृहनगर का निर्माण करना चाहिए।’
चीनी अखबार ने ध्यान दिलाया कि, ‘आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में ४० से अधिक नस्लीय अल्पसंख्यक रहते हैं और ३६.४ लाख की आबादी में तिब्बती निवासियों की संख्या ९० प्रतिशत से अधिक है। आजकल, तिब्बत में विभिन्न नस्लीय पृष्ठभूमि के सदस्यों वाले परिवार काफी आम हैं।’ हालांकि यह सच है या नहीं, कहना मुश्किल है।
पार्टी का अखबार ऐसे चार जोड़ों का उदाहरण देता है। उसके अनुसार, हान-तिब्बती अंतरनस्लीय-विवाह ‘विकास के इस नए युग में नस्लीय एकता का महान प्रदर्शन’ है।
क्या यह २०२५ में होने वाले अगले तिब्बत वर्क फोरम से पहले लागू होने वाली सरकारी नीति है? ये निर्णय (जैसे पीएलए में तिब्बतियों की अनिवार्य भर्ती) आमतौर पर पूरी तरह से लागू होने तक गुप्त रहते हैं।
कुछ महीने पहले, सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ ने इस मुद्दे को उठाया था, ‘आंकड़ों के अनुसार, मेटोक (अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सियांग के पास) में ५६० से अधिक बहु-नस्लीय परिवार हैं। विभिन्न नस्लीय समूहों के लोग खेती और पशुपालन में एक-दूसरे की मदद करते हैं और विभिन्न नस्लीय समूहों के बच्चे एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। यहां लोग नए साल का दिन, चंद्र नव वर्ष, तिब्बती नव वर्ष या मोनपा नस्लीय समूह के लोक सांस्कृतिक उत्सव मनाते हैं।’
सरकारी समाचार एजेंसी ने झांग चुनहुआन और उनके परिवार द्वारा चीनी नव वर्ष मनाने के मामले को उजागर करते हुए लिखा है, ‘आठ साल पहले, शांक्सी प्रांत का एक युवक झांग चुनहुआन मेटोक आया था। उस समय हिमालय के दक्षिणी तल पर स्थित काउंटी में यातायात असुविधाजनक थी। झांग को दैनिक जरूरत का सामान खरीदने के लिए टाउनशिप से काउंटी सीट तक कुछ तीन-चार घंटे पैदल चलना पड़ता था। झांग ने याद किया कि उसने कभी भी यहां अपना घर बनाने की योजना नहीं बनाई।’
ये स्पष्ट रूप से कई और तिब्बतियों द्वारा अनुकरण किए जाने वाले मॉडल मामले हैं। बीजिंग इससे हिसाब-किताब लगा रहा है कि यदि हजारों तिब्बती लड़कियां चीनी प्रवासियों से शादी करती हैं (उदाहरण के लिए, जो सीमा पर मेगा बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं पर काम करने के लिए आते हैं), तो एक मुद्दा हमेशा के लिए बदल जाएगा। इससे भविष्य में तिब्बत के फिर से तिब्बत बनने का मौका नहीं मिल पाएगा।
नई दिल्ली और धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार दोनों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए, अन्यथा उत्तर भारत में सीमावर्ती क्षेत्रों में रहनेवाले भारतीय नागरिकों को जल्द ही नए पड़ोसियों का सामना करना पड़ेगा, इसके परिणाम भी उन्हें भुगतने होंगे।
यह पीएलए में तिब्बतियों की भर्ती से अधिक जटिल और गंभीर मुद्दा है। इसका मतलब है कि सीमा को ‘स्थिर’ करने के साधनों पर निश्चित रूप से टीएमडी जनरलों के साथ एडमिरल मियाओ हुआ ने चर्चा की होगी।