अमर उजाला
7 नवंबर, 2011: तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय ने इच्छा जताई है कि तिब्बत के मसले पर भारत खुलकर आवाज उठाए। उन्होंने तिब्बती मूल के लोगों को भारत में शरण देने की भी सराहना की है। सांगेय का कहना था कि मानवीय दृष्टि से भारत काफी कुछ कर रहा है लेकिन वे चाहते हैं कि तिब्बती लोगों के मुद्दे पर भारत और खुलकर सामने आए। उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम में कहा हालांकि वे एक मेहमान होने के नाते भारत से इस बारे में शिकायत नहीं कर सकते।
वह दलाई लामा के उस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जिसमें धार्मिक गुरू ने कहा था कि भारत एक कायर देश है लेकिन चीन के मामले में वह निडर हो जाता है। उन्होंने कहा, दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन का अधिकार केवल दलाई लामा को ही होगा। इस चयन प्रक्रिया में चीन की किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं होगी। सांगेय ने उत्तराधिकार के सवाल पर दलाई लामा को एक मात्र अधिकृत व्यक्ति बताते हुए कहा कि आध्यात्मिक नेता जिसे भी चाहें अपना उत्तराधिकारी बना सकते हैं।
उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार दलाईलामा को
निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री लोब्सांग सांगेय ने कहा कि दलाईलामा के उत्तराधिकारी के चयन का अधिकार केवल दलाईलामा को ही होगा। इस चयन प्रक्रिया में चीन की किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं होगी। सांगेय ने कहा कि आने वाला उत्तराधिकारी दलाईलामा का 15वां उत्तराधिकारी होगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले महीने दलाईलामा ने एक विस्तृत वक्तव्य जारी कर कहा था कि उनके मरने के बाद ही अगले दलाईलामा का पुनरावतार हो यह जरूरी नहीं है। उनके जीवनकाल में भी उत्तराधिकारी का चयन हो सकता है। उनके इस वक्तव्य की आलोचना करते हुए चीन ने कहा था कि दलाईलामा अपने जीवनकाल में अपने उत्तराधिकारी का चयन नहीं कर सकते हैं।
इस बयान पर सांगेय ने कहा कि चीन सरकार को धर्मगुरु दलाईलामा का वक्तव्य खारिज करने का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि अव्वल तो चीन सरकार उन्हें शैतान बता चुकी है। दूसरे वह पुनरावतार में भरोसा नहीं करती और धर्म को जहर मानती है। निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री ने तल्ख लहजे में नसीहत दी कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपनी विचारधारा की चिंता करे ना कि हमारी।
सांगेय ने उत्तराधिकार के सवाल पर दलाईलामा को एक मात्र अधिकृत व्यक्ति बताते हुए कहा कि आध्यात्मिक नेता जिसे भी अपना उत्तराधिकारी बनायेंगी तिब्बत के लोग और दुनिया भर के बौद्ध उसे ही अपना15वां दलाईलामा स्वीकार करेंगे। उन्होंने दलाईलामा की पदवी चीन की सरकार द्वारा दिए जाने की परंपरा और इस मामले में चीन सरकार के पास वीटो अधिकार होने के चीनी प्रवक्ता के दावे को भी खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा कि चीन के पास यह अधिकार कभी नहीं रहा और तिब्बती बौद्ध ही नहीं चीन में रह रहे करीब 20 करोड़ बौद्ध मतावलंबी भी दलाईलामा का ही फैसला स्वीकार करेंगे।