दैनिक जागरण, 24 मार्च 2014
राज्य ब्यूरो, शिमला : ‘चीन मुक्त तिब्बत विषय पर केवल राजनेता ही फैसला लें। इसके लिए निर्वासित तिब्बत की सरकार निर्णय लेने में स्वंतत्र है। अब मैं राजनीतिक मसलों से पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो चुका हूं। वर्ष 2011 में मैंने राजनीतिक क्षेत्र से किनारा कर लिया है। अब केवल धर्म के लिए कार्य कर रहा हूं।’ यह बात धर्मगुरु दलाईलामा ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में बुधवार को पत्रकारों से अनौपचारिक वार्ता के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि समाजवाद और पूंजीवाद का अर्थव्यवस्था में संयुक्त सकारात्मक मिश्रण होना चाहिए। मुझे गर्व है मैं मार्क्सवादी हूं, लेकिन लेनिन और स्टालिन की तरह नहीं हूं। न्यूयार्क दौरे के दौरान वहां की मीडिया ने एक बार पूछा था कि 15वें दलाईलामा के बारे में क्या विचार है? तो मैंने आखों से चश्मा खोल जवाब दिया कि अभी मेरी आयु अभी 79 वर्ष हुई है। जब 90 साल की उम्र होगी उसके बाद नए धर्मगुरु का गद्दी सौंपी जाएगी। इसके बारे में वर्ष 2012 में धर्मगुरुओं की बैठक हुई थी। इसमें भी 15वें धर्मगुरु के बारे में चर्चा हुई थी। जब भी धर्मगुरुओं की सभा कोई फैसला लेगी, उसे स्वीकार किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि भारत का तक्षशिला विवि काफी बड़ा था। बौद्ध धर्म के उपदेश भी वहां पर मौजूद थे। इसके बाद उन्हें समायोजित किया गया। भारत में धर्मनिरपेक्षता होना सबसे बड़ी स्वतंत्रता है। यहां हर धर्म को मानने की स्वंतत्रता है। समाज में मीडिया की भूमिका काफी अहम है। मीडिया हर विषय को खंगालते हुए सच सामने लाता है। लोकतंत्र में मीडिया की सहभागिता अतुलनीय है।