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धर्मशाला। परम पावन दलाई लामा ने तिब्बत को लेकर आठवें विश्वसांसद सम्मेलन का एक संक्षिप्त वीडियो संदेश देकर उद्घाटन किया।
परम पावन ने कहा, ‘आज तिब्बती मुद्दे के समर्थक विभिन्न समूहों के लोग तिब्बत पर चर्चा करने के लिए वाशिंगटन डीसी में एकत्रित हो रहे हैं। मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहता हूं। एक ओर तिब्बत का मुद्दा सच्चाई पर आधारित है तो दूसरी ओर इसमें करुणा और आंतरिक शांति को विकसित करने की दृष्टि से मन के कार्यों की समझ शामिल है। इसलिए यह केवल राजनीति का मामला नहीं है, बल्कि विश्वास और तर्क पर आधारित मन की शांति को पाने से भी संबंधित है।’
आठवीं शताब्दी में तिब्बत में महान आचार्य शांतरक्षित द्वारा भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रचारित करने की घटना को याद करते हुए परम पावन ने कहा, ‘हमने उस संस्कृति को इस हद तक आत्मसात कर लिया है कि तिब्बत के छोटे बच्चे भी करुणा व्यक्त करते हुए कहते हैं, ‘कीड़े को भी मत मारना।’ हम बचपन से ही करुणा का भाव रखने वाने वाले लोग हैं। लेकिन यह अच्छी प्रथा केवल तिब्बतियों तक ही सीमित नहीं हो सकती है। हम दूसरों को प्रेम और करुणा के महत्व से अवगत करा सकते हैं। इसकी साधना में पारंगत तिब्बती ऐसा करते रहे हैं और उन्हें उस लक्ष्य में योगदान देना जारी रखना चाहिए, क्योंकि हमारे पास ऐसा करने का अवसर है।’
परम पावन ने आगे कहा, ‘ये मुद्दे केवल तिब्बत से संबंधित नहीं हैं। पूरी दुनिया स्वाभाविक रूप से शांति चाहती है और शांति नेक दिल में निहित है। यह उन सभी मानवों के लिए एक सच्चाई है। मनुष्यों की माताएं उनके जन्म के समय से ही प्यार और स्नेह से उनकी देखभाल करती हैं। हम सभी इसलिए जीवित हैं, क्योंकि हमारी माताएं हमें प्यार और अपने स्तन के दूध से पालती हैं। दुनिया के हर इंसान की तरह ही तिब्बती भी इंसान हैं जो अपनी मां के प्यार और स्नेह से पलते-बढ़ते हैं।
शांति प्राप्त करने में प्रेम और करुणा की अहम भूमिका को रेखांकित करते हुए परम पावन दलाई लामा ने बताया कि पश्चिम से आई आधुनिक शिक्षा की प्रणाली मुख्य रूप से भौतिकवाद के इर्द-गिर्द चक्कर काटती है। यह मन और भावनाओं की गतिविधियों से जुड़ी हुई नहीं है, न ही यह मन की शांति प्राप्त करने का कोई साधन बताती है। हालांकि, आजपश्चिम के विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों और न्यूरो साइंटिस्टों के बीच प्रेम और करुणा की भावना विकसित करने के लिए हमारी परंपरा के बारे में जानने की रुचि बढ़ रही है। मेरा मानना है कि हम अपने मन को समझने के परंपरागत ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर प्रेम और करुणा को विकसित करने और मन की शांति प्राप्त करने की विधि को समझा सकते हैं।‘ परम पावन ने आगे कहा ‘हम सभी खुश रहना चाहते हैं और इसके लिए एक अच्छा दिल का होना अति आवश्यक है। मनुष्य के रूप में हम सभी सुख और दुख का अनुभव करते हैं, लेकिन केवल खाने के लिए पर्याप्त होने और कुछ अल्पकालिक मनोरंजन का आनंद लेने से हमें स्थायी खुशी प्राप्त नहीं हो सकती है। वास्तव में प्रसन्नता हमारे चारों ओर शांतिपूर्ण वातावरण उत्पन्न करती है। चाहे हम कहीं भी हों, है न?’
परम पावन ने तिब्बती संस्कृति में गहराई से निहित प्रेम और करुणा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, ‘तिब्बती संस्कृति चित्त और भावनाओं की गतिविधि से संबंधित है। यह केवल देवताओं या नागों का आह्वान करने का अनुष्ठान भर नहीं है। यहां तक कि जो इस संस्कृति में विश्वास नहीं करते हैं लेकिन अगर उनका दिल उदार है तो वे भी इससे खुश होंगे।है कि नहीं? प्रमुख कारक प्रेम और करुणा है। निर्वासन में रहते हुए कई लोगों के सहयोग से हमने अपनी क्षमता के अनुसार अपनी विरासत को सुरक्षित रखने का कार्य किया है और इसका कुछ फल भी मिला है। जहां तक मेरी बात है, मैं इस संस्कृति में पला-बढ़ा हूं।इसलिए मैं जहां भी जाता हूं, लोगों से प्यार और करुणा के बारे में बात करता हूं। राजनीतिक रूप से हम तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं। मैंने वर्षों पहले इसे स्पष्ट कर दिया था। हमारी संस्कृति और भाषा को संरक्षित और सुरक्षित करने का महत्व सबसे अधिक चिंता का विषय है। आज वास्तविकता यह है कि चीन में भी बौद्ध धर्म में रुचि लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। ऐसी परिस्थितियों मेंयदि हम सौहार्दता और नैतिकता की अपनी तिब्बती संस्कृति को पुनर्जीवित और विस्तारित करते हैं, तो यह न केवल तिब्बतियों, बल्कि बौद्ध धर्म की पृष्ठभूमि वाले अन्य लोगों जैसे मंगोलियाई और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन के लोगों को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा। हम बौद्ध धर्म का प्रचार करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। भले ही आप धार्मिक हों या न हों, सौहार्दपूर्ण हृदय विकसित करना और एक अच्छा इंसान बनना फायदेमंद है। जिस क्षण से हम पैदा हुए हैं, हमारी माताओं ने प्यार और स्नेह से हमारी देखभाल की है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं रहा है। है कि नहीं? यह स्वाभाविक रूप से और सहज रूप से आया है।‘
परम पावन ने कहा, ‘इसलिए हम तिब्बती दूसरों के लिए उदाहरण स्थापित करना चाहते हैं। यदि हम अपनी संस्कृति और मूल्यों को तेजी से और व्यापक रूप से प्रचारित-प्रसारित करते हैं, तो मुझे पूरा यकीन है कि इससे बहुत से लोगों को लाभ होगा। मैं यहां इस बात को और स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं किसी को भी बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए आग्रह नहीं कर रहा हूं, बल्कि मैं एक करुणापूर्णदिल विकसित करने की बात कर रहा हूं।‘
परम पावन ने अपने संबोधन का समापन करते हुए कहा,आजमैं जो लोग इस बैठक में उपस्थित हैं, उन सबसे आग्रह करना चाहूंगा कि तिब्बती संस्कृति के सार को पुनर्जीवित करने और आगे बढ़ाने के तरीकों पर विचार करें। क्योंकि यह परोपकार की संस्कृति है। यदि आप शिक्षण संस्थानों में छात्रों को करुणा और ईमानदारी जैसे मानवीय मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए काम कर सकते हैं तो यह और भी फायदेमंद होगा। अभी के लिए बस इतना ही – धन्यवाद!’