पंजाब केसरी, 7 जुलाई 2014
धर्मशाला: भारत-तिब्बत सहयोग मंच का शुरू से ही यह मत रहा है कि तिब्बत एक स्वतंत्र देश है और चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया हुआ है लेकिन भारत सरकार ने 1949 व 1950 में इस बात को मान्यता दे दी कि तिब्बत चीन का हिस्सा है। इससे यह नुक्सान हुआ कि चीन भारत के सिर पर आ गया। यह बात भारत-तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष व पंजाब शिक्षा बोर्ड के वाइस चेरयमैन कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कही।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि भारत ने स्वयं मान लिया कि तिब्बत चीन का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि भारत-तिब्बत सहयोग मंच मानता है कि भारत सरकार ने जो गलती की थी उसे सुधारा जाए और यह घोषणा की जाए कि तिब्बत स्वतंत्र देश है। उन्होंने कहा कि इसमें हिमाचल की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि सीमा क्षेत्र में सड़कों की दशा को सुधारा जाए। उन्होंने कहा कि रेलवे लाइन पठानकोट-कांगड़ा-जोगिंद्रनगर को मंडी व लेह तक पहुंचाया जा सकता है। कुलदीप चंद अग्रिहोत्री ने कहा कि अरुणाचल के बारे बहुत लोगों को पता नहीं है। लोगों को अरुणाचल के बारे में जानकारी देने के लिए सहयोग मंच ने त्वांग यात्रा शुरू की है। त्वांग अरुणाचल का अंतिम जिला है। नवम्बर माह में त्वांग यात्रा अरुणाचल जाएगी।
भार-तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष कुलदीप चंद अग्रिहोत्री ने कहा कि चीन ने पंचशील के 50 साल मनाए हैं। इस समारोह में भारत ने भी शिरकत की जोकि सही नहीं है। उन्होंने कहा कि पंचशील संधि 1954 में हुई थी। इससे पहले भारत की तिब्बत के साथ ट्रेड को लेकर 30 साल के लिए संधि हुई थी। यह संधि 1954 में खत्म हुई। भारत सरकार इसे रिन्यू करना चाहती थी लेकिन तब तिब्बत चीन के कब्जे में आ गया था। चीन ने भारत के साथ 8 साल के लिए संधि की और जब 1962 में यह संधि समाप्त हुई तो चीन ने भारत पर हमला कर दिया। जिस संधि के 8 साल पूरे होने पर चीन ने भारत पर हमला किया उस संधि के 50 साल का जश्न चीन मना रहा है।