तिब्बत के साथ एकजुटता के लिए एशियार्इ रैली
तिब्बत आंदोलन के प्रति समूचे एशिया के तिब्बत समर्थकों द्वारा अपनी पूरी एकजुटता दिखाने के लिए आयोजित “तिब्बत के साथ एकजुटता की एशियार्इ रैली” (एशियन रैली इन सालिडेरिटी विद तिब्बत) में हम आपको सादर आमंत्रित करते हैं।
तिब्बत के आंदोलन और तिब्बत के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में अपनी वाजिब चिंता और समर्थन जताने के लिए विभिन्न एशियार्इ देशों से हर कार्यक्षेत्र के करीब 2,000 तिब्बत समर्थकों के इस रैली में हिस्सा लेने की उम्मीद है।
आप यह जानकर संत्रस्त होंगे कि वर्ष 2009 से अब तक तिब्बत में आत्मदाह की 120 घटनाएं हुर्इ हैं जो कि इस बात का अत्यंत पीड़ादायी साक्ष्य है कि कम्युनिस्ट चीन सरकार खुलकर शांतिपूर्ण लेकिन असहाय तिब्बती जनता के प्रति असहनीय दमनकारी नीतियां चला रही है और उन्हें सभी बुनियादी मानवाधिकारों -धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषार्इ, शैक्षणिक और विशिष्ट राष्ट्रीय पहचान को संरक्षित रखना-से पूरी तरह से वंचित रखा जा रहा है। इसलिए इस रैली में ज्यादा से ज्यादा संख्या में हिस्सा लें।
दिन :सोमवार, 26 अगस्त, 2013
स्थान :जंतर मंतर, नर्इ दिल्ली
समय :सुबह 10:30 से दोपहर 1:00 बजे तक
आयोजक :एशियार्इ तिब्बत समर्थक समूह
सहयोगी :कोर ग्रुप फार तिब्बतन काज-इंडिया
संपर्क करें: 09313282225य 09968686828य 011.29841569
तिब्बत और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में संक्षिप्त जानकारी
वर्ष 2006 की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार अंटार्कटिका के बाद सबसे कम ताजे जल वाला महाद्वीप एशिया ही है। इसलिए जल एशिया की दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए एक प्रमुख चुनौती बनकर उभर रहा है।
तिब्बत दुनिया की छत और एशिया के वाटर टावर की तरह है, इसलिए तिब्बत में जो अपरिवर्तनीय पर्यावरण विनाश हो रहा है, उसके पूरी दुनिया के लिए गंभीर नतीजे होंगे, खासकर नदियों के प्रवाह की ओर स्थित पड़ोसी देशों के लिए। चीन जनवादी गणतंत्र सरकार तिब्बत की विशाल नदियों की दिशा उत्तर की ओर मोड़ने की कोशिश कर रही है ताकि उसके अपने सूखे इलाकों में जल पहुंचाया जा सके। ये नदियां भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, नेपाल, कम्बोडिया, पाकिस्तान, लाओस, थाइलैंड और वियतनाम के लिए जीवन रेखा की तरह हैं जहां दुनिया की 47 फीसदी जनसंख्या रहती है।
तिब्बत को तीसरा ध्रुव माना जाता है और वहां ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। इसलिए साझे संसाधनों के लिए किसी सांस्थानिक सहयोग के अभाव में यदि जल नया रणक्षेत्र बना तो एशिया की शांति भंग हो जाएगी। चीन के पूर्व जल संसाधन मंत्री वांग शुछेंग के अनिष्टसूचक शब्दों में कहें तो, “चीन के सामने चुनौती यह है कि या तो जल की हर बूंद के लिए लड़ार्इ लड़ें या दम तोड़ दें।”
तिब्बती पहचान को मिटा देने के उद्देश से पिछले 50 साल से चीन द्वारा चलार्इ जा रही दमनकारी नीतियों के बावजूद तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बती अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दृढ़ हैं। आत्मदाह करने वाले ज्यादातर लोगों में युवा तिब्बती रहे हैं जो सांस्कृतिक क्रांति के बाद पैदा हुए हैं और परम पावन दलार्इ लामा से कभी नहीं मिले हैं। चीन के कठोर रवैए और तिब्बत में भेदभावपूर्ण नीतियों के अपने सीधे व्यकितगत अनुभव की वजह से वे आत्मदाह को प्रेरित हुए हैं।
इसलिए हमारा और खासकर एशियार्इ देशों का यह नैतिक कर्तव्य है कि वैज्ञानिकों, स्वयंसेवी संस्थाओं और पूरे एशिया की उस जनता के साथ गठजोड़ और सहयोग कायम किया जाए जिनकी नियति और भविष्य तिब्बती पठार के पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करती है।