आज तक 26th अप्रैल 2012
तिब्बत के निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा है कि चीन के इस आरोप के बावजूद कि वह तिब्बत में अशांति फैलाने के लिए लोगों को उकसा रहे हैं, वह तिब्बत की स्वायत्तता के लिए अपने अहिंसक आंदोलन के रास्ते को नहीं छोडेंगे.
चीनी प्रशासन के खिलाफ वर्ष 2011 में शुरू हुए विरोध के बाद से कुल 34 तिब्बतियों ने आत्मदाह कर लिया है, जिसमें अधिकांश बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां शामिल हैं.
इसमें से ज्यादातर ने बीजिंग पर तिब्बत की संस्कृति के दमन का आरोप लगाते हुए खुद को आग लगा ली थी और उसीके चलते उनकी मौत हुई. चीन हमेशा दलाई लामा पर तिब्बतियों को आत्मदाह के लिए उकसाने का आरोप लगाता रहा है लेकिन उन्होंने इन आरोपों को खारिज किया है.
नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के सम्मेलन में उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में चीजें काफी कठिन हुयी है लेकिन हमारा रुख नहीं बदला है. आजादी, पूर्ण आजादी अवास्तविक है- इसका तो सवाल ही नहीं उठता है. दलाई लामा ने कहा कि बदलाव के लिए उनके अहिंसात्मक मध्य मार्ग को अधिकतर तिब्बतियों का समर्थन हासिल है. सम्मेलन खत्म होने के बाद संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि इसलिए हम इसे जारी रख सकते हैं.
दलाई लामा ने कहा कि भारत में निर्वासित तिब्बती नेतृत्व चीन सरकार के साथ तिब्बती अल्पसंख्यकों के लिए ‘सार्थक स्वायत्तता’ पर ‘उद्देयपूर्ण वार्ता’ के लिए अभी भी प्रतिबद्ध है. विदेशों में स्थित तिब्बती मानव अधिकार समूहों ने कहा है कि पिछले सप्ताह सिचुआन प्रांत में एक युवा तिब्बती जोड़े ने खुद को आग लगा ली.
सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीकी आर्कबिशप डेसमंड टूटू समेत 12 नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं ने चीन के राष्ट्रपति से दलाई लामा के साथ वार्ता बहाल करने का आग्रह किया. बहरहाल, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा कि अब तक की वार्ता उपयोगी नहीं रही है.
हंसते हुए उन्होंने कहा कि कभी-कभार मैंने कहा है कि सर्वाधिकारवादी सत्ता के पास कान नहीं हैं केवल मुंह है. चीनी अधिकारी हमेशा हमें उपदेश देते हैं लेकिन कभी कुछ सुनते नहीं.
दलाई लामा ने कहा कि सरकार से सकारात्मक या ठोस परिणाम को लेकर हमारी सारी कोशिश नाकाम रही है लेकिन चीनी जनता या चीनी बुद्धिजीवी या विदेशों में पढने वाले छात्र हमेशा से इस सच्चाई से अवगत हैं.