सूत्रों का कहना है कि यह कदम धार्मिक गतिविधियों पर चीन के कठोर नियंत्रण को दर्शाता है।
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चीनी अधिकारियों द्वारा देश में धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंधों को कड़ा किया जा रहा है। इस पूरी प्रक्रिया से परिचित दो सूत्रों ने रेडियो फ्री एशिया को यह जानकारी दी है। इसके साथ ही पूर्वी तिब्बत के चामदो प्रिफेक्चर के एक तिब्बती बौद्ध मठ में सभी उम्र के नए भिक्षुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है।
क्षेत्र के अंदर से एक सूत्र ने बताया कि यह पहली बार है कि चीनी अधिकारियों ने तिब्बत के मठवासी जीवन में शामिल होने के लिए नामांकन कराने से सभी उम्र के भिक्षुओं को प्रतिबंधित कर दिया है। इस तरह का प्रतिबंध हालांकि पहले भी था लेकिन पहले केवल नाबालिगों या १८ वर्ष से कम उम्र के नौजवानों को ही इसमें शामिल होने से प्रतिबंधित किया गया था।
सुरक्षा कारणों से नाम न छापने का अनुरोध करते हुए सूत्र ने कहा, ‘अब अधिकारियों ने मार्खम (काउंटी) में ख्युंगबम लूरा मठ में भी किसी नए भिक्षुओं के प्रवेश पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है।‘
सूत्रों ने आरएफए को बताया कि ख्युंगबम लूरा मठ काउंटी में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग या येलो हैट संप्रदाय के सबसे बड़े मठों में से एक है जो ऐतिहासिक रूप से तिब्बत के खाम क्षेत्र का एक हिस्सा है। वर्तमान में इस मठ में ८० से अधिक भिक्षु हैं।
माना जाता है कि मठ के भिक्षुओं ने १९५० में तिब्बत के चामडो पर आक्रमण करने वाले पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का विरोध किया था। सूत्रों ने कहा कि चीनी सैनिकों ने छह साल से अधिक समय में केवल एक स्तूप को छोड़कर मठ के अधिकांश हिस्से को नष्ट कर दिया था।
इसके बाद १९८० के दशक की शुरुआत में तिब्बत में शुरू किए गए तथाकथित उदारीकरण कार्यक्रम के बाद स्थानीय तिब्बतियों और शेष भिक्षुओं ने मठ के कुछ हिस्सों को पुनर्स्थापित करने के लिए काम शुरू किया।
चीनी अधिकारियों ने ‘धार्मिक मामलों के नियमन’ नियमों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं। यह दस्तावेज नेशनल रिलिजियस अफेयर्स एडमिनिस्ट्रेशन (राष्ट्रीय धार्मिक मामलों के प्रशासन) द्वारा धार्मिक गतिविधियों, वहां के कर्मियों और स्थलों पर नियमों को निर्धारित करता है। यह कम्युनिस्ट पार्टी की एजेंसी- यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट की एक शाखा है जो विदेशों में चीन के धार्मिक, जातीय मामलों में विदेशी अभियानों की देख-रेख करती है।
विनियमन में कहा गया है कि स्कूलों या शैक्षणिक निकायों में कोई भी धार्मिक गतिविधियां आयोजित नहीं की जा सकती हैं और १८ वर्ष से कम आयु के तिब्बतियों को मठों में नामांकन करने से कठोरता से प्रतिबंधित किया जाता है।
स्थानीय प्रशासक
दो सूत्रों ने कहा कि धार्मिक गतिविधियों पर चीन की कड़ी निगरानी का एक प्रमाण यह है कि अधिकारियों ने ख्युंगबम लूरा मठ के संचालन की निगरानी के लिए एक स्थानीय प्रशासक नियुक्त कर दिया है। साथ ही धमकी दी है कि अगर नियमों का पालन करने में किसी भी तरह की त्रुटि होने पर इस मठ को बंद कर दिया जाएगा। दरअसल, ख्युंगबम लूरा मठ पारंपरिक रूप से वरिष्ठ भिक्षुओं द्वारा चलाया जाता है।
सूत्रों ने कहा कि मार्खम काउंटी के निवासी तिब्बती ख्युंगबम लूरा मठ में किसी भी नए भिक्षु के प्रवेश पर रोक लगाने वाले नए नियम के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं।
क्षेत्र के अंदर के सूत्रों ने कहा कि नए भिक्षुओं के नियमित प्रवेश न होने से अंततः मठ का पतन हो जाएगा और भविष्य में मठ बंद हो जाएगा। इसके बाद स्थानीय तिब्बतियों के पास महत्वपूर्ण धार्मिक समारोहों के लिए कोई पूजास्थल नहीं रह जाएगा और उपासना-प्रार्थना, विशेष रूप से परिजनों की मृत्यु पर अनुष्ठान करने के लिए यहां कोई भी नहीं आएगा।
चीनी अधिकारी लंबे समय से तिब्बती बौद्ध मठों के स्वरूप और प्रभाव को खत्म करने की मांग कर रहे हैं, जो पारंपरिक रूप से तिब्बती सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के केंद्र हैं।
हाल ही में जनवरी २०२१ में नेशनल रिलिजियस अफेयर्स एडमिनिस्ट्रेशन (राष्ट्रीय धार्मिक मामलों के प्रशासन) द्वारा पारित किए गए कम्युनिस्ट पार्टी के ‘पुजारियों के लिए प्रशासनिक उपाय’ संबंधी विनियमन दस्तावेज के अनुसार, धार्मिक पुरोहितों के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ‘धर्म के चीनीकरण’ या ‘चीन के समाजवादी समाज के अनुरूप धर्म विलयीकरण’ योजना का समर्थन करना और देश के राष्ट्रीय हित और विचारधारा के अनुसार काम करना आवश्यक है।
चीनी अधिकारियों ने जुलाई २०१८ में तिब्बत के ऐतिहासिक खाम के पूर्वी क्षेत्र के डज़ाचुका में जोवो गैंडेन शेड्रब पालग्येलिंग मठ से १५ वर्ष से कम उम्र के युवा भिक्षुओं को निकाल दिया है। यह कदम चीन की स्टेट काउंसिल द्वारा नवंबर २०१७ में ‘धार्मिक मामलों पर विनियमों’ का अद्यतन संस्करण जारी करने के तुरंत बाद उठाया गया।
इसके बाद से तिब्बती-आबादी वाले विभिन्न प्रांतों में ११ से १५ वर्ष की आयु के युवा तिब्बती भिक्षुओं को चीवर त्यागने और मठों को छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने की कई रिपोर्टें आई हैं। इनमें धित्सा, जख्युंग और किंघई प्रांत के अन्य मठ शामिल हैं।