
जिनेवा। मानवाधिकार और लोकतंत्र के लिए १७वां जिनेवा शिखर सम्मेलन-२०२५ आधिकारिक तौर पर कल १८ फरवरी २०२५ को सेंटर इंटरनेशनल डे कॉन्फ़्रेंस जिनेवा (सीआईसीजी) में शुरू हुआ। वैश्विक मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर करने और उससे निपटने के लिए समर्पित इस प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मंच की शुरुआत यूनाइटेड नेशंस वॉच के कार्यकारी निदेशक हिलेल नेउर के स्वागत भाषण से हुई। उद्घाटन भाषण विश्व स्वतंत्रता कांग्रेस के उपाध्यक्ष, लोकतंत्र समर्थक नेता, लेखक और पूर्व विश्व शतरंज चैंपियन गैरी कास्पारोव ने दिया।
इस वर्ष के शिखर सम्मेलन में रूस, सऊदी अरब, चीन, बेलारूस, हांगकांग, उग्यूर क्षेत्र, वियतनाम और ईरान में मानवाधिकारों के हनन पर प्रकाश डालने वाले वक्ताओं की एक प्रतिष्ठित टोली शामिल है। वक्ताओं में तिब्बती कार्यकर्ता और पूर्व राजनीतिक कैदी नामक्यी ने चीनी अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न के अपने कष्टदायक अनुभव साझा किए।
उनके भाषण देने से पहले उनके २०१५ के विरोध का एक छोटा वीडियो क्लिप दिखाया गया, जो उनकी सक्रियता और उनके द्वारा सामना किए गए गंभीर परिणामों का एक ह्रदयविदारक दृश्य विवरण प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा, ‘मैंने व्यक्तिगत रूप से देखा कि कैसे चीनी सैन्य बल मेरे क्षेत्र में और कीर्ति मठ में तिब्बतियों पर नकेल कस रहे थे। मेरा दिल दुख और पीड़ा से भर गया, जिसने मुझे अपनी आवाज उठाने के लिए मजबूर किया।’
२१ अक्तूबर २०१५ को नामक्यी और उनके चचेरी बहन तेनज़िन डोल्मा ने न्गाबा काउंटी के शहीद चौक पर एक विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। इसमें परम पावन दलाई लामा की बड़ी तस्वीरें थीं और उनके तिब्बत लौटने और अपने वतन की आजादी का आह्वान किया गया था। उन्होंने हमारे हाथों से तस्वीरें जबरदस्ती छीन लीं, हमारी आवाज़ दबा दी, हमें ज़मीन पर पटक दिया और आखिरकार हमें हथकड़ी लगा दी।’
आधी रात को बरखम हिरासत केंद्र में स्थानांतरित किए जाने से पहले दोनों को न्गाबा काउंटी हिरासत केंद्र में रखा गया था। नामक्यी ने हिरासत में अपने साथ हुई अत्यधिक यातनाओं का विवरण दिया। इन यातनाओं में शामिल हैं-
– ठीक से सोने न देना और १५०-१६० डिग्री तक की अत्यधिक गर्मी में रखा जाना।
– शारीरिक शोषण, जिसमें पुरुष अधिकारियों द्वारा थप्पड़ मारना, लात मारना और पीटना शामिल है।
– मनोवैज्ञानिक दबाव, जिसमें पूछताछकर्ता झूठी गवाही देने के बदले में सजा कम कराने की पेशकश करके कबूलनामा निकालने का प्रयास करते हैं।
एक साल से अधिक समय तक हिरासत में रहने के बाद २३ नवंबर २०१६ को नामक्यी और उनकी चचेरी बहन पर ट्रोचू काउंटी पीपुल्स कोर्ट में मुकदमा चलाया गया। अभियोजकों ने उनसे हल्की सजा के बदले में हत्या, चोरी या ड्रग डीलिंग के झूठे आरोपों को स्वीकार करने या पछतावा करने का आग्रह किया। उन्होंने इनकार कर दिया। केवल १६ वर्ष की आयु होने के बावजूद चीनी अधिकारियों ने नामक्यी की आधिकारिक आयु को १८ वर्ष कर दिया और उसे ‘देश के साथ विश्वासघात’ और ‘अलगाववादी गतिविधियों’ में शामिल होने के लिए तीन साल की जेल की सजा सुनाई।
नामक्यी ने सिचुआन प्रांत की महिला जेल में कठोर परिस्थितियों का वर्णन इन शब्दों में किया- :
– अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण और चीनी कानूनों और ‘देशभक्ति शिक्षा’ का अनिवार्य अध्ययन।
– नस्लीय भेदभाव, तिब्बती कैदियों को एक-दूसरे से बात करने से मना किया गया।
– गंभीर कुपोषण, उचित चिकित्सा देखभाल की कमी और अत्यधिक ठंड में रखा जाना।
– जबरन श्रम, तीव्र कृत्रिम प्रकाश में तांबे के तारों को जोड़ने का काम कराना, जिससे उनकी आँखों को दीर्घकालिक नुकसान हुआ।
उनकी चचेरी बहन तेनज़िन डोल्मा को सिगरेट के केस बनाने का काम सौंपा गया था और बाद में उसने घड़ियां बनाने का काम किया। २१ अक्तूबर २०१८ को अपनी सजा पूरी करने के बाद दोनों को न्गाबा काउंटी के पद्मा ल्हातांग डिस्पैच सेंटर में और एक सप्ताह के लिए हिरासत में रखा गया। उनके परिवारों को गारंटी-पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया और उनके नाम सरकारी ब्लैक लिस्ट में जोड़ दिए गए।
नामक्यी ने निरंतर निगरानी, पुलिस पूछताछ और अपनी आवाजाही पर प्रतिबंधों का वर्णन करते हुए कहा, ‘हालांकि मेरा शरीर जेल से रिहा हो गया था, लेकिन मेरा मन अभी भी कैद में था। मुझे अक्सर पुलिस स्टेशन बुलाया जाता था, मेरा फोन जब्त कर लिया जाता था और मुझे नियमित रूप से अपने ठिकाने और बातचीत की रिपोर्ट देनी होती थी। ऐसी कठिनाइयों के बीच मेरे दिमाग में एक सवाल बार-बार आता था: क्या संयुक्त राष्ट्र तिब्बत में हो रही पीड़ा के बारे में जानता है? क्या कोई है जो हमारा समर्थन करेगा?’
अपनी कहानी सार्वजनिक तौर पर सुनाने के लिए दृढ़ संकल्पित नामक्यी १३ मई २०२३ को भारत में निर्वासन में चली गईं, एक ऐसे देश में शरण लेने की तलाश में जहां वह तिब्बतियों की दुर्दशा के बारे में खुलकर बोल सकें।
उन्होंने कहा, ‘मुझे यह मंच देने के लिए धन्यवाद। अगर कोई भी, कहीं भी, ऐसा मंच प्रदान करता है तो मैं वास्तविक स्थिति के बारे में सार्वजनिक तौर पर बताऊंगी।’ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक शक्तिशाली संदेश देते हुए अपने भाषण का समापन किया: ‘यह केवल मेरी जीवन कहानी नहीं है, बल्कि हजारों तिब्बतियों की कहानी है। तिब्बत के अंदर लाखों तिब्बती आज भी ऐसी ही पीड़ा में जी रहे हैं। इसलिए, कृपया तिब्बत और तिब्बती लोगों की परम पावन दलाई लामा की तिब्बत वापसी की आकांक्षाओं का समर्थन करना जारी रखें।’
मानवाधिकार और लोकतंत्र के लिए जिनेवा शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर में मानवाधिकारों की तत्काल स्थितियों पर प्रकाश डालना है। २५ से अधिक मानवाधिकार संगठनों के महासंघ द्वारा आयोजित १७वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में रूस, क्यूबा, ईरान, हांगकांग, सऊदी अरब, तिब्बत और इरिट्रिया जैसे देशों के प्रमुख असंतुष्ट कार्यकर्ता एक साथ इकट्ठा होते हैं। इसका प्राथमिक उद्देश्य इन साहसी व्यक्तियों को अपनी गवाही सार्वजनिक करने, प्रणालीगत दुरुपयोगों के बारे में जागरुकता बढ़ाने और लोकतांत्रिक सुधारों की वकालत करने के लिए एक मंच प्रदान करना है। उनकी आवाज़ को बुलंद करके, शिखर सम्मेलन वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन और कार्रवाई को संगठित करना चाहता है।