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यारलुंग त्संगपो (ब्रह्मपुत्र) नद पर बांधों के निर्माण करने के एक नए युग की शुरुआत करके अनगिनत जीवन और पारिस्थितिक तंत्र को ‘विकास’ और भू-राजनीति के नाम पर जोखिम में डाला जा रहा है।
पिछले सात दशकों में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने 87,000 से अधिक बांधों का निर्माण किया है। इ्नसे वे ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा की संयुक्त क्षमता से भी अधिक यानि,352.26 गीगावॉट बिजली पैदा करते हैं। दूसरी ओर इन परियोजनाओं के कारण 2 करोड़ 30 लाख से अधिक लोग अपने मूल आवासों से विस्थापित होने को मजबूर हुए हैं।
तिब्बती पठार पीने योग्य मीठे जल संसाधन का विशाल भंडार है, जो पूरे एशिया में पानी की आपूर्ति करता है। अपनी अधिकांश नदियों को नुकसान पहुंचाने के बाद चीन अब तिब्बत के पठार से बहने वाली प्रमुख अंतरराष्ट्रीय नदियों पर अपनी निगाहें जमा रहा है, जिससे तिब्बत की नदियों को नुकसान पहुंचाने का एक नया दौर शुरू हो गया है।
एशिया का जल टॉवर कहा जानेवाला तिब्बत 10 प्रमुख एशियाई नदियों का स्रोत है, जो 10 देशों से होकर बहती हैं। इनमें दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले देश- चीन, भारत, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड, बर्मा, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और पाकिस्तान शामिल हैं।
तिब्बत पर अपने राजनीतिक नियंत्रण के माध्यम से चीन तिब्बती पठार से निकलने वाली सभी प्रमुख नदियों के ऊपरी हिस्से पर अपना नियंत्रण रखता है। चीन की तुलना में तिब्बत विकास कार्यों के लिए उपयोग किए जा रहे अपने जलविद्युत संसाधनों का मात्र 0.6 प्रतिशत से कम ही उपयोग कर पाता है और इस तरह वह एक अछूता क्षेत्र बना हुआ है। लेकिन यह तेजी से बदल भी रहा है। जैसा कि चीन अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करना चाहता है, उसे अभी और अधिक जलविद्युत का दोहन करना होगा। चीनी पनबिजली और ऊर्जा कंपनियां सरकार को यह समझा रही है कि अधिक से अधिक पनबिजली परियोजनाओं को तिब्बत की तेज-प्रवाह वाली नदियों में टैप करने की अनुमति दी जाए। इस तरह ऐसी 28 से अधिक परियोजनाएं मंजूरी का इंतजार कर रही हैं।
तिब्बत भूगर्भीय रूप से अस्थिर क्षेत्र है, जिसकी समुद्र तल से औसत ऊंचाई 4,500 मीटर (14,800 फीट) है। तिब्बती पठार की महत्वपूर्ण स्थिति, जो पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और भूकंपीय रूप से सक्रिय है, के बावजूद चीन अभी भी एशिया की प्रमुख नदियों-यांग्त्ज़ी, येलो, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, मेकांग और सालवीन पर जलविद्युत उत्पादन बढ़ाने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना के साथ आगे बढ़ रहा है।
12वीं पंचवर्षीय योजना (2011-15) और 13 वीं पंचवर्षीय योजना (2016-2020) के लिए चीन की स्टेट काउंसिल की ऊर्जा योजना ने तिब्बती पठार की नदियों पर जलविद्युत परियोजना को सख्ती से आगे बढ़ाने के सरकार के इरादों की पुष्टि कर दी है। जलविद्युत को अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विस्तार योजना को चीन की केंद्रीय योजना के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। 2020 तक चीन अपनी जलविद्युत क्षमता को तिगुना यानि 300 गीगावॉट तक करना चाहता है। इसलिए यह अपने पनबिजली लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी सीमा से बाहर जानेवाली नदियों को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
जिसे तिब्बती में यारलुंग त्संगपो के नाम से जाना जानेवाला तिब्बत, भारत और बांग्लादेश से होकर बहनेवाला एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय नद है। यह पश्चिम से पूर्व तक 1,800 मील (2,900 किलोमीटर) लंबा है। इसका उद्गम स्थल तिब्बती पठार पर पवित्र कैलाश पर्वत के पास चेमा युंग दुंग ग्लेशियर है।
कभी अबाध प्रवाह वाला नद अब हर खंड पर क्षतिग्रस्त है। जंगमू पनबिजली स्टेशन से शुरू होकर ब्रह्मपुत्र पर बांधों की पूरी शृंखला बन गई है। भूविज्ञानी यांग योंग ने सही कहा था कि यह गतिविधि ‘तिब्बत की नदियों के लिए जलविद्युत युग की शुरुआत’ को दर्शाती है।
जनवरी 2013 में चीन ने अपनी 12वीं पंचवर्षीय योजना के हिस्से के रूप में ब्रह्मपुत्र नदी पर तीन बांध परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिससे भारतीय मीडिया में इसके नीचे की ओर के प्रवाह पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएं बढ़ गईं। इन मामलों पर भारत की चिंता को कम करने के प्रयास में चीनी सरकार भारत को यह आश्वासन देने के लिए तैयार थी कि परियोजना और इसके मुद्दों को वैज्ञानिक रूप से बनाया जाएगा। चीन ने यह भी कहा कि यह परियोजना एक नदी पर बहने वाली (रन-ऑफ-रिवर या आरओआर) पनबिजली परियोजना है-जिसका अर्थ है कि नदी के एक हिस्से को बिजली बनाने वाली टर्बाइनों को चलाने के लिए मोड़ दिया जाएगा और फिर पनबिजली बन जाने के बाद पानी को नदी में वापस बहा दिया जाएगा। इस तर्क के अनुसार, ऐसा आरओआर परियोजना जल प्रवाह को कम नहीं करेगा और इसका कोई दुष्प्रभाव नीचे के देशों पर नहीं पड़ेगा।
ये दावे काफी हद तक असत्य हैं। इसके बजाय, आरओआर परियोजनाओं को दिन के दौरान पानी की बड़ी मात्रा में भंडारण की आवश्यकता होती है। केवल व्यस्त समय में मांग की आपूर्ति को पूरा करने में बिजली उत्पादन करने के लिए शाम को एक ही बार में जमा सारे पानी को छोड़ दिया जाता है। नदी में ये दैनिक उतार-चढ़ाव नदी की पारिस्थितिकी के लिए एक अविश्वसनीय व्यवधान पैदा करते हैं। इसके अलावा, बड़े बांध भी भूकंप की संभावनाओं को बढ़ाते हैं, स्वच्छ वातावरण को नष्ट करते हैं और उन लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं जो ब्रह्मपुत्र नद पर निर्भर हैं।
गैर-प्रदूषणकारी ऊर्जा से आबादी को लाभान्वित करने के बजाये चीन के बांध निर्माता प्रकृति के साथ शैतानी सौदेबाजी कर रहे हैं, अपने आर्थिक विकास के अभियान में तिब्बत की आत्मा को बेच रहे हैं। इसके साथ ही इस बात के बहुत सारे वैज्ञानिक प्रमाण है कि बांध स्वच्छ, हरित या सस्ती बिजली के स्रोत नहीं बन पाए हैं, जैसा कि अक्सर बताया जाता है।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चीन ने ब्रह्मपुत्र के बीच स्थान पर तीन जलविद्युत बांध (डागू, जिएक्सु और जियाचा) का निर्माण शुरू कर दिया है। इनमें डागू (660 मेगवाट) और जिएक्सु (560 मेगावाट) बांधों का निर्माण जांग्मु के ऊपरी हिस्से में और जियाचा बांध (320 मेगावाट) का निर्माण जांग्मु के निचले हिस्से में किया जा रहा है- ये सभी एक-दूसरे से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
ज़ांग्मु जलविद्युत स्टेशन (510 मेगावाट) केवल शुरुआत है। चीन की योजना ब्रह्मपुत्र की मुख्यधारा और उसकी सहायक नदियों पर 11 जलविद्युत स्टेशन बनाने की है। हुआनेंग, हुआदियान, गुआदिओन और दातांग- चार प्रमुख बिजली उत्पादक समूह- पहले से ही तिब्बत में जड़ें जमा चुके हैं। उनमें से हुआनेंग तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) में सबसे बड़ा जलविद्युत उत्पादक समूह है।
राज्य के स्वामित्व वाली चीन हुआनेंग समूह की एक सहायक कंपनी हुआनेंग तिब्बत पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (एचटीपीजी) ने इस क्षेत्र में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को लेकर टीएआर सरकार के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। कंपनी और क्षेत्रीय सरकार के बीच हुए समझौतों के अनुसार, तिब्बत में हुआनेंग की स्थापित क्षमता 2020 तक 10,000 मेगावाट तक पहुंच जाएगी। ऐसा माना जाता है कि टीएआर में जलविद्युत संसाधन का उत्पादन कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 29 प्रतिशत है।
योजना के अनुसार, हुआनेंग समूह जिएक्सु और जियाचा जलविद्युत स्टेशनों के विकास के लिए जिम्मेदार है जबकि डागू का निर्माण हुआदियान समूह द्वारा किया गया है।
इसके अलावा बायु जलविद्युत स्टेशन ने पिछले साल नवंबर में अपना सर्वेक्षण शुरू किया। उस पावर स्टेशन की स्थापित क्षमता 800 मेगावाट है।
समय-समय पर जब भी क्षेत्र में पानी से संबंधित बाढ़ और अन्य मुद्दे जैसी आपदाएं उपस्थित होती हैं, भारत चीनी प्राधिकार के समक्ष अपनी चिंताओं को उठाता है। उन चिंताओं को समझौता ज्ञापन (एमओयू) या विशेषज्ञ स्तर के तंत्र (ईएलएम) के माध्यम से दूर किया जाता है, जो गैर-बाध्यकारी और उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करनेवाले किसी शासी निकाय के बिना ही होता है।
चीन ने अब तक ब्रह्मपुत्र पर इन बांधों के निर्माण के बारे में आधिकारिक तौर पर सूचित नहीं किया है। तिब्बती नदियों पर बांध निर्माण के बारे में पारदर्शिता की कमी को लेकर सवाल उठता है कि क्या तिब्बती लोगों और निचले इलाके के देशों को इस नदी प्रणाली के खतरे और प्रभावों के बारे में पूरी तरह से सूचित नहीं किया जाना चाहिए, जो लाखों लोगों के जीवन का आधार है। ये प्रस्तावित बांध न केवल तिब्बती पठार बल्कि सीमा के दूसरी ओर भी गंभीर पारिस्थितिकीय खतरे पैदा करेंगे। चीन, इन बांधों का निर्माण करके नदी के अति दोहन के लिए जिम्मेदार होगा, जो नदी के पारिस्थितिकीय तंत्र को खतरे में डाल सकता है और साथ ही पानी के बहाव को निचले देशों की ओर से बदल सकता है। इससे भारत और बांग्लादेश के किसान और मछुआरे प्रभावित होंगे।
इसके अलावा, चीन नदी के प्रवाह में आसानी से फेरबदल कर सकता है जो भारत को रणनीतिक रूप से नुकसानदेह स्थिति में डालता है। भारत के लिए यही समय है कि वह नदी पर अपने उपयोगकर्ता अधिकारों का पता लगाने और ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से पर उन बांध गतिविधियों की निगरानी करने के लिए समुचित कदम उठाए।
तिब्बती पठार का पर्यावरणीय सेहत लगभग 1.3 अरब लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो एशिया में नदी के निचले इलाके में बहाव वाले देशों में रहते हैं। तिब्बती नदी को केवल जलविद्युत स्रोत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। बल्कि इसके भू-वैज्ञानिक महत्व को भी गंभीरता से ध्यान में रखा जाना चाहिए।
’डेचेन पाल्मो तिब्बत नीति संस्थान में एक शोधकर्ता हैं। यहां आलेख में उनके द्वारा व्यक्त विचार जरूरी नहीं कि तिब्बत नीति संस्थान के विचार से मेल खाते हों।