जागरण, 12 मार्च 2019
धर्मशाला, एजेंसी। भारत आए चीनी लोगों के एक प्रतिनिधिमंडल ने धर्मशाला में तिब्बती लोगों की मांग के समर्थन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। चीन के खिलाफ तिब्बती लोगों द्वारा उस वक्त आवाज उठाने की 60वीं सालगिरह के मौके पर यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई। बता दें कि प्रतिनिधिमंडल में आए यह लोग मूल रूप से चीन के निवासी हैं और यूरोप के कई अन्य देशों में रहते हैं। धर्मशाला और दुनिया के अन्य हिस्सों में रह रहे तिब्बती लोगों की मांग है कि उन्हें चीन से आजादी मिले।
दशकों पहले तिब्बत क्षेत्र पर चीन ने जबरन कब्जा कर लिया था। साल 1959 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। इसी दौरान दलाई लामा को वहां से भारत आना पड़ा और तभी से वह भारत में रह रहे हैं। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा के साथ और उनके बाद भी तिब्बत की आजादी की मांग करने वाले हजारों लोग भारत आ गए। अपनी ही जमीन से बेदखल हुए तिब्बत के इन लोगों ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला को अपना ठिकाना बनाया।
इतिहास की बात करें तो, किंग राजशाही के खिलाफ 1912 में हुई जिन्हाई क्रांति के बाद तिब्बत क्षेत्र (यू-सैंग) 1913 में आजाद घोषित हो गया। यहां के लोगों ने तो खुद को आजाद देश घोषित कर दिया, लेकिन इस आजादी को चीन ने मान्यता नहीं दी। बाद में ल्हासा ने चीन के पश्चिमी क्षेत्र जिकांग को अपने कब्जे में ले लिया। साल 1951 तक यह पूरा क्षेत्र स्वायत्त क्षेत्र रहा और फिर चामडो की लड़ाई हुई, जिसमें चीनी सेना ने ल्हासा पर कब्जा कर लिया और तिब्बत को चीन में मिला लिया। 1959 में तिब्बत ने चीन के दमन के खिलाफ एक बार फिर आवाज उठाई और आजादी की मांग की। आजादी के लिए उठी उस मांग को 60 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी तिब्बत चीन के कब्जे में है और तिब्बती लोग धर्मशाला, दिल्ली और दुनियाभर के कई शहरों में रहकर अपने देश वापस लौटने की उम्मीद पाले हुए हैं।
7वीं सदी से ही तिब्बत साम्राज्य का इतिहास मिलता है, लेकिन साम्राज्य के अंत के साथ ही पूरा तिब्बत क्षेत्र कई छोटी-छोटी इकाइयों में बंट गया। हालांकि, इस दौरान भी पश्चिमी और सेंट्रल तिब्बत (यू-सैंग) का एक बड़ा हिस्सा एक साथ रहा। यहां पर तिब्बत सरकार ल्हासा, शिंगात्से और आसपास के इलाकों से राज करती रही। यह पूरा इलाका मंगोलों और चीनी शासकों के अंतर्गत भी रहा।
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