तिब्बत.नेट, 15 मार्च, 2019
स्कॉटिश संसद में उप पीठासीन अधिकारी, पूर्व स्कॉटिश सरकार की मंत्री और स्कॉटिश पार्लियामेंट इन द नेशनल में तिब्बत के लिए सर्वदलीय समूह की अध्यक्ष लिंडा फैबियानी द्वारा तिब्बत की पारिस्थितिकी और इसके वैश्विक महत्व पर अपना मत व्ययक्त करते हुए एक आलेख प्रकाशित किया गया है। मूल स्रोत यहां देखें।
चीन के खिलाफ तिब्बत की हारे हुए विद्रोह की 60वीं वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए कल 14 मार्च को दुनिया भर में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था। यह एक ऐसी हार थी, जिसने दलाई लामा को निर्वासित होने के लिए मजबूर कर दिया था। तिब्बत का भविष्य विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण क्यों है? इसे यहां दर्शाया जा रहा है।
30 साल के कुछ अधिक हुए, जब सितंबर 1987 में परम पावन 14वें दलाई लामा ने तिब्बत मुद्दे के समाधान के लिए अमेरिकी कांग्रेस में अपना प्रस्ताव पेश किया था- एक संकल्प जिसे फाइव प्वाइंट पीस प्लान के रूप में जाना जाता है।
इस योजना का केंद्र एक सरल लेकिन गहन सत्य था: यह योजना वैश्विक स्तर पर परस्पर निर्भरता के इन समय में भविष्य में दुनिया भर में हम सबकी फलदायी दृष्टि के लिए थी। इसके अनुसार न केवल अपना ध्यान उस पर केंद्रित करना था जो हम स्वयं के लिए कर सकते हैं, बल्कि उस पर केंद्रित करना था, जो हम दूसरों के लिए कर सकते हैं।
दलाई लामा ने एशियाई देशों के बीच शांति के क्षेत्र के रूप में तिब्बत की कल्पना की। सिर्फ राजनीतिक या सैन्य शांति ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय शांति भी- एक ऐसा विचार जो तिब्बत के नजरिये से एक विश्व के निर्माण के केंद्र में हो सकता था।
तिब्बती पठार को अक्सर तीसरा ध्रुव कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके ग्लेशियरों, बर्फ के भंडारों और पर्माफ्रॉस्ट के कारण यहां दो ध्रुव क्षेत्रों के बाहर ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है। तिब्बती पठार से निकलने वाली- सिंधु और ब्रह्मपुत्र, यांग्त्ज़ी, मेकांग, इरावदी और अन्य नदियां जो एशिया के अधिकांश आबादी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जल की आपूर्ति करती है। यह दुनिया की लगभग आधी आबादी बैठती है।
तिब्बती पठार को तीसरा ध्रुव इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि अन्य दो ध्रुवों की तरह यह मौसम के पैटर्न के कारण वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रति विशिष्ट रूप से संवेदनशील है। तिब्बती पठार पर तापमान तेजी से बढ़ रहा है। इससे लगभग दुनिया भर में तापमान बढ़ रहा है, क्षेत्रीय मानसून का पैटर्न नाटकीय रूप से बदल रहा है और आसपास के शहरों से प्रदूषण इसके नाजुक ऊंचाइयों की पारिस्थितिकी तक को प्रभावित कर रहा है।
पठार के आसपास के ग्लेशियर 1970 के दशक से पिघल रहे हैं और 2050 तक 35% तक इनके कम हो जाने का अनुमान है। पूर्वी तिब्बत में लगभग सभी हिमनदों के नुकसान का अनुमान लगाया गया है, जो चीन की मुख्य भूमि में सदी के अंत तक पानी पहुंचा सकता है। पर्माफोस्टों का गलन समान तीव्रता से हो रहा है। हाल के अध्ययन में इशारा किया गया है कि 2050 तक पूरे पठार के 39% पर्माफ्रोस्ट के नुकसान की आशंका है और 2100 तक 81% पर्माफ्रोस्टू पिघल जाएंगे।
यह सब भूकंप और भूस्खलन में भारी वृदि्ध और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण नुकसान का कारण होगा। उदाहरण के लिए बीजिंग-ल्हासा रेलवे लाइन पर पर्माफ्रोस्ट में गिरावट का मतलब है कि वर्तमान प्रौद्योगिकी के साथ रेलवे 20 वर्षों के भीतर अव्या्वहारिक और गैर जरूरी हो जाएगा। तिब्बतियों पर इस सब का पहले से ही बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा हुआ है। पीली, यांग्त्ज़ी और मेकोंग को जलापूर्ति करने वाली नदियों के प्रमुख क्षेत्रों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों के कारण दक्षिणी अमदो में 90,000 खानाबदोशों को विस्थागपित करके उन्हें पुनर्वासित किया जा चुका है। यह चीन की सामान्य पुनर्वास नीति का एक हिस्सा भर है, जिसके तहत पिछले 10 वर्षों में 23 लाख से अधिक तिब्बतियों को यहां से वहां पटकता रहा है।
तिब्बत के आसपास के देशों और आबादी के समक्ष बहुत बड़ी उलझनें आनेवाली हैं। कुछ तो पहले से ही दिख रही है। ग्लेशियर और पर्माफ्रोस्ट के तेजी से पिघलने के साथ-साथ मॉनसून पैटर्न में बदलाव और पठार पर वनों की कटाई से चीन, भारत, नेपाल और दक्षिण-पूर्व एशिया में विनाशकारी बाढ़ और सूखे का दुष्चाक्र आना शुरू हो गया है।
यदि वर्तमान अनुमान सही हैं तो आने वाले दशकों में एशिया भर में कृषि और उद्योग में मदद करनेवाली तिब्बती पठार से बहने वाली प्रमुख नदी प्रणालियों की क्षमता में तेजी से कमी आएगी या इनका वास्तव में एक साथ ही विनाश हो जाएगा। इसके परिणामस्वदरूप बड़े पैमाने पर जन आंदोलन होंगे और पलायन का संकट बढ़ेगा। इससे क्षेत्रीय संघर्ष की आशंका स्पष्ट है।
इस तरह की आशंकाओं को कम करने के लिए और भविष्य के लिए जरूरी योजना बनाने के लिए तिब्बत पठार पर केंद्रित एक निरंतर अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम की आवश्यकता है। केवल तिब्बत से सटे सीमा वाले देशों में से नहीं बल्कि हम सभी के लिए यह जरूरी है। इसे परम पावन 14वें दलाई लामा ने समझा है। इसी में तिब्बत का भविष्य है, पूरे एशिया का भविष्य है और वृहत्तर रूप से देखें तो बाकी दुनिया के सभी लोगों का भविष्य इसी में है।
तिब्बत की संप्रभुता के प्रश्न पर विचार निश्चित रूप से चल रहा है। हो सकता है कि वर्षों से इन चर्चाओं ने दुनिया में इस क्षेत्र के महत्व के बारे में कुछ हद तक सामान्य समझ पैदा की हो।
मैं इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एबरडीन विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर हिमालयन रिसर्च के निदेशक डॉ मार्टिन मिल्स के अथक कार्य के लिए आभारी हूं। किसी भी राजनीतिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अधिक आज के हमारे समय में इस तीसरे ध्रुव यानी तिब्बती पठार का पर्यावरणीय प्रभाव प्रमुख मुद्दों में से एक है।