तिब्बत का आजाद होना भारत कि सुरक्षा व विकास, पर्यावरण सुरक्षा, ऐशिया में शानित व मानव आधिकारों के लिये अत्यन्त जरूरी है।
1913 से लेकर 1950 के दशक तक तिब्बत स्वतन्त्र राष्ट्र रहा, कर्इ देशों के साथ राजनैतिक सम्बन्ध तिब्बत का अपनी अलग पहचान, राष्ट्रीय मुद्रा, राष्ट्रीय ध्वज, अपनी भाषा, वेश भूषा, रहन सहन, अलग लिपि, कर्इ राष्ट्रों कि तिब्बत को मान्यता आजाद राष्ट्र के रूप में भारत ने भी 1947 मे ऐशियन देशों के सम्मेलन मे तिब्बत को सहभागी बनाया। यह सब प्रमाण चीख चीख कर कह रहे है। तिब्बत आजाद देश था।
भारत ने शिमला नगर में मैक्मोहन समझौता कर भारत और तिब्बत की सीमा माना है। तिब्बत सरकार व बिर्टिश अधिकृत भारत सरकार ने माना। मैक्मौहन सीमा रेखा को हस्ताक्षर कर समझौता किया, जब तक तिब्बत आजाद रहा भारत कि 4000 कि.मी. लम्बी सीमा पर कभी भी परेशानी नही आर्इ। नाम मात्र के सैनिक सीमा कि निगरानी करते थे। तिब्बत चीन से भारत कि सुरक्षा करता रहा जैसा महान राजनैतिक गुरू आचार्य चाणक्य कहते थे यदि दो बडे राष्ट्रों को शानित से रहना है तो मध्य मे एक छोटे राष्ट्र का होना जरूरी है। इस कारण चीन का भारत पर हमला कभी नही हुआ।
भारत के पूर्ण आजाद होने के बाद, भारत की राजनैतिक मजबूरी देश का बटवारा, पाक से युद्ध सभी कारणों से भारत सरकार ने फिलहाल शांति हेतु चीन से शांति के लिये 30 अप्रैल 1954 को पचंशील समझौता किया। अस्थार्इ शांति के लिये दुरगामी शांति को त्याग कर पंचशील में माना तिब्बत चीन का स्वायत क्षेत्र है। तिब्बत-चीन का अन्दुरूनी मामला है। चीन नें मैक्मोहन को नही माना। इस पर चर्चा भविष्य में करते रहेंगे ऐसा माना।
विस्तारवादी चीन ने 1951 तक तिब्बत के खम प्रान्त पर अधिकार कर लिया था, 1956, 57 मे चीन ने भारत कि भूमि को निकालना शुरू कर दिया, सीमा के अन्दर 10 मील तक पूरे तिब्बत पर हमला कर अधिकार कर लिया।
विस्तारवादी चीन तिब्बत को मोर्चे कि तरह इस्तेमाल कर 1962 मे भारत पर पूर्ण हमला किया। हजारों वर्ग भूमि लगभग 80 हजार वर्ग भारत भूमि पर चीन का अधिकार हो गया। भारत की संसद में प्रस्ताव पास हुआ की चीन से एक एक इन्च भूमि वापस लेगे उसके बाद चीन से सीमा पर चर्चा करेगें। इस प्रकार चीन ने पंचशील का कत्ल कर दिया।
प्रश्न यह है कि भारत क्यों मजबूर है। चीन से दोस्ती करने हेतू, पं0 जवाहर लाल नेहरू जी ने संसद मे कहा था चीन जहां तक भूमि पर कब्जा कर लेता है। वही उसकी सीमा बन जाती है। चीन किसी भी सीमा रेखा को नही मानता वह तो अभी कहता है अरूणाचल और सिकिकम उसका प्रदेश है।
चीन का तिब्बत पर हमला कर कब्जा कर लेना चीन का लक्ष्य नही था उक्त लक्ष्य तो भारत भूमि पर अधिकार करना है। जोकि उसने किया।
तिब्बत के गुलाम हो जाने के बाद परम पूज्य दलार्इ लामा जी ने भारत में शरण लिया हम सभी तिब्बतियों का अतिथि देव भव: की तरह स्वागत किया। हमें भी बहुत प्रसन्ता हुर्इ। हमारा गुरू देश, भारत जहां से ज्ञान, धर्म, शिक्षा एवं संस्कृति सभी कुछ हमें प्राप्त हुआ हम सभी अपने दूसरे धर मे आ गये है। हमें महसूस हुआ कि भारत हमें राजनैतिक सहायता देगा, एक दिन तिब्बत आजाद होगा। हम सभी तिब्बतियों ने यहां रहने के लिये शरण नही लिया था, हम एक दिन अपने देश वापस जाएंगे। भारत ने हमारी संस्कृति की रक्षा के लिये अनेक प्रदेशों मे तिब्बत कलोनी बसार्इ। अलग से स्कूल खोले गये ताकी हमारी पहचान सुरक्षित रहें। आज हमारी तीसरी पीढी भारत में जवान हो गर्इ हैं। हम सभी तिब्बती भारत सरकार और भारत के जनता को कृतज्ञ करते है। हम सभी निवेदन करने मे भी हिचकिचाते है।
भारत सरकार की कृपा से हमारी निर्वासत सरकार चल रही हैं। परम पूज्य जी अपने प्रवोचनों से अक्सर कहा करते है कि मेरा शिश मे जो ज्ञान है वह सब भारत के नालंदा विश्वविधलय का ज्ञान का समावेश है। मेरा शरीर भी भारत के अन्न जल द्वारा बना है।
परन्तू फिर भी जो तिब्बत का दर्द है, भारत सरकार और भारत की जनता से निवेदन है कि हम यहां रहने के लिए नही आए है, ना ही इस कारण आऐ है कि हमारे देश में अन्न जाल का संकट पैदा हुआ था। यदि जिन्दा रहना ही मक्सद होता, तो चीन की अधीन हमें केवल अपनी स्वाभिमान को रोज मारना होता। केवल हमारी आत्मा रोज मरती, हमारी तिब्बती पहचान, संस्कृति, सभ्यता व भाषा की मौत हो जाती और हम चीन के आधीन हो जाते।
अपनी पहचान, संस्कृति को बचाने के लिए हमने भारतवर्ष में शरण लिया था, इस आशा के साथ भारत हमें खुलकर राजनैतिक सहयोग करेंगा। भारत हमारा गुरू देश होने के नाते से अब भारत का फर्ज बनता है शिष्य की रक्षा करें यही भारत की संस्कृति है। भारत ने एक मित्र होने या एक पडोसी होने के नाते से यदि शरण दिया है तो वह पडौसी होने का भारत का धर्म है। मित्र होने के नाते, मित्र की रक्षा करें। मानवता के नाते से यदि शरण दिया है तो हमें मानवता के नाते मानवाधिकारों पर चीन जो तिब्बत में कत्लेआम कर रहा है उस पर पुरजोर से संयुक्त राष्ट्र में आवाज भारत बुलन्द करें।
चीन ने जब पंचशील का सम्मान नही किया ना ही चीन ने मैक्मोहन सीमा को मान रहा है। 1962 में भारत पर हमले के बाद पंचशील समझौते को चीन ने मौत के घाट उतार दिया। फिर भारत को 1914 के मैक्मोहन समझौते को पुर्नजिवीत करना चाहिए। तिब्बत को आजाद राष्ट्र मानना चाहिए अन्यथा भारत की चीन से सीमा कहां है। विदेश नीति मे किस समझौते पर चर्चा होती है? भारत क्यों पंचशील से मजबूर है। अब भारत परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है। भारत चीन से जितना शराफत में चुप रहेगा विस्तारवादी चीन समझेगा की भारत चीन से डरता हैं। वह और डरायेगा। भारत के प्रदेशों को अपना अपना अधिपत्य मानेगा। हम सभी तिब्बती चाहते है तिब्बत का समाधान भारत के नेतृत्व में हो। भारत के स्वाभिमान की रक्षा हो, संसद में पास हुऐ प्रस्ताव का सम्मान हो, पहले की तरह भारत चीन के मध्य, आजाद तिब्बत शांति दूत का कार्य करता रहे।
जय तिब्बत, जय भारत, जय जगत