दैनिक जागरण, 23 अप्रैल 2015
जागरण संवाददाता, धर्मशाला : तिब्बती समुदाय के लोग एक दिन जरूर आजाद तिब्बत में जाएंगे। अहिंसा के मार्ग से लड़ी जा रही जंग के अवश्य ही सकारात्मक प्रयास रंग लाएंगे। तिब्बत की आजादी में दलाईलामा महत्वपूर्ण कड़ी है। यह बात दक्षिण अफ्रीका के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आर्कबिशप डेसमंड टूटू ने वीरवार को तिब्बतियन चिल्ड्रन विलेज (टीसीवी) स्कूल में संवाद कार्यक्रम में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा, विश्व का समर्थन तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा के साथ है। तिब्बत की आजादी के लिए चीन सरकार को भी नजरिया बदलना होगा। बकौल टूटू, दक्षिण अफ्रीका में अन्याय के बीच कई वर्ष लोगों ने गुजारे थे और कई नेता जेलों में भी रहे व अधिकतर जिंदा घर नहीं पहुंचे। आजादी के लिए नेल्सन मंडेला ने आवाज उठाई और इसे हासिल भी किया। उन्होंने आभार प्रकट किया कि भारत सरकार ने एक बड़ी धरोहर को संभाले रखा है व बौद्ध धर्म को संरक्षित किया है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने कहा कि दलाईलामा उनके परम प्रिय मित्र हैं और इस कारण ही वह यहां आए हैं। तिब्बती विद्यार्थियों में जोश भरते हुए टूटू ने कहा कि वह दिन दूर नहीं जब वह यहां नहीं बल्कि तिब्बत में खेलेंगे और आजादी की खुशियां मनाएंगे।
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बौद्ध धर्म को सीखे युवा पीढ़ी : दलाईलामा
दलाईलामा ने कहा कि युवा पीढ़ी को सोच में बदलाव लाना होगा। मानव मूल्यों व धार्मिक सद्भाव युवा पीढ़ी में बढ़े और बौद्ध धर्म के प्रति वह जागरूक भी हों, उन्होंने इसे अपने जीवन की तीन इच्छाएं भी बताया। मानव मूल्यों के प्रति सचेत होना समय की आवश्यकता है तो धार्मिक सद्भाव भी विश्व शांति के लिए अहम है। युवा पीढ़ी को धार्मिक संदेश देते हुए दलाईलामा ने कहा कि वह बौद्ध धर्म को सीखे जाने, तिब्बती भाषा व संस्कृति से भी अपने आपको जोड़े रखें। यह सब तिब्बत की आजादी के लिए महत्वपूर्ण मूल्य हैं।
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