डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, भारत के पहले राष्ट्रपति(२४ अक्टूबर, १९६२ को पटना के गांधी मैदान में दिए गये उनके भाषण का अंश) स्वतंत्रता सबसे पवित्र वरदान है। हिंसक या अहिंसक सभी तरीकों से इसकी रक्षा की जानी चाहिए। इसलिए तिब्बत को चीन के नियंत्रण से मुक्त कराकर तिब्बतियों को सौंप देना चाहिए।
चीनी आक्रांताओं ने तिब्बत को लूटा है और वहां के शांतिपूर्ण नागरिकों को तबाह कर दिया है। तिब्बत क्षेत्र व संस्कृति दोनों दृष्टियों से भारत के करीब है। इसलिए हमें तिब्बत को लुटेरों के खूनी चंगुल से बचाने के लिए कठोर प्रयास करना होगा ताकि तिब्बती लोग आजादी की हवा में सांस ले सकें। यदि चीन ने चोरी से हमारी जमीन में घुसपैठ किया है तो उन्हें बेरहमी से वापस भेज देना चाहिए।
विश्र्व इस बात का गवाह है कि भारत ने किसी भी देश पर कभी बुरी नजर नहीं डाली है। लेकिन युद्ध की स्थिति में हमें किसी भी स्थान या जमीन पर शत्रु से मुकाबला करना चाहिए।
जब हम ”हिन्दी-चीनी”, ”भाई-भाई” का नारा लगा रहे थे तो चीन हमारी जमीन को हड़पने में जुटा था और निर्दयी विश्र्वासघात के द्वारा चीन ने हमारी लगभग १२ हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया। यह आवशयक है कि एक आत्मसंयमी देश की भांति हम आकंराताओं का मुकाबला करें। इस बात में कोई संदेह नहीं कि हमें अपनी मातृभूमि को इन आक्रांताओं से मुक्त कराना चाहिए।
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
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