नई दिल्ली। भारतीय संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र के समय से तालमेल बिठाते हुए निर्वासित तिब्बती संसद की स्थायी समिति के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपने संसद की डिप्टी स्पीकर डोल्मा छेरिंग तेखांग के नेतृत्व में नई दिल्ली में तिब्बत के पक्ष में अभियान की शुरुआत की। प्रतिनिधिमंडल में सांसद तेनपा यारफेल और छानेछांग धोंडुप ताशी भी शामिल रहे।
प्रतिनिधिमंडल ने भारत सरकार के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री इकबाल सिंह लालपुरा, उपाध्यक्ष श्री केर्सी कैखुशरू देबू के अलावा आयोग के सदस्य श्री धन्यकुमार जिनप्पा डुंडे और श्रीमती रिनचेन ल्हामो जैसी उल्लेखनीय गणमान्य हस्तियों के साथ बातचीत की। इसके अतिरिक्त उन्होंने राज्यसभा सदस्य (एमपी) श्री (डॉ.) लंकाप्पा हनुमंतैया, दिल्ली विधानसभा के सदस्य (एमएलए) श्री अजय दत्त और अन्य प्रमुख हस्तियों के साथ बातचीत की। इन बैठकों में प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय से ताशी डेकी और तिब्बती संसदीय सचिवालय से तेनज़िन चोयिंग मौजूद थे।
दिन की शुरुआत नई दिल्ली के कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन के कार्यालय में एक बैठक से हुई, जहां तिब्बती सांसदों ने फाउंडेशन के निदेशक डॉ. एड्रेन हैक और कार्यक्रम प्रबंधक आशीष के साथ बातचीत की। चर्चाएं भविष्य के संभावित सहयोग पर केंद्रित थीं, जिसके दौरान तिब्बती सांसदों ने उन्हें दिल्ली की अपनी यात्रा के उद्देश्य से अवगत कराया और तिब्बत में वर्तमान संकटपूर्ण स्थिति पर प्रकाश डाला।
इसके बाद, प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रीय पुलिस स्मारक के लिए रवाना हुआ, जहां उन्हें इसके निदेशक ने स्मारक और संग्रहालय दिखाया। उन्हें इसकी केंद्रीय मूर्तिकला, वीरता की दीवार और अन्य उल्लेखनीय पहलुओं के महत्व के बारे में जानकारी दी गई।
इसके बाद, उनकी बैठक भारत सरकार के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री इकबाल सिंह लालपुरा, उपाध्यक्ष श्री केर्सी कैखुशरू देबू और आयोग के सदस्य श्री धन्यकुमार जिनप्पा डुंडे और श्रीमती रिनचेन ल्हामो के साथ हुई।
अतिरिक्त बैठकें दिन भर चलीं। इन बैठकों में राज्यसभा सदस्य (एमपी) श्री (डॉ.) लंकाप्पा हनुमंथैया और दिल्ली विधानसभा के सदस्य (एमएलए) श्री अजय दत्त भी शामिल रहे। इन व्यस्तताओं के बीच प्रतिनिधिमंडल ने शहीदों के बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का भी दौरा किया।
उपरोक्त प्रमुख गणमान्य हस्तियों के साथ अपनी बैठकों के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने ऐतिहासिक साक्ष्यों और संप्रभु इतिहास से भरपूर तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बताया और इस देश को ‘चीन के कब्जे वाले राष्ट्र’ के रूप में मानने की वकालत की। उन्होंने चीन के झूठे कथानकों का समर्थन करने से परहेज करने का आग्रह किया जो तिब्बतियों को अल्पसंख्यक के रूप दुनिया के सामने रखता करता है। चीन का झूठा कथानक तिब्बत पर कब्जे को बीजिंग का आंतरिक मुद्दा बताता है और तिब्बत को चीन का हिस्सा बताता है। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह का समर्थन तिब्बत पर चीन के साम्राज्यवादी आधिपत्य को सही ठहराता है, तिब्बतियों को चीन के अधीन करता हैं और उन्हें अधिक सार्थक स्वतंत्रता के लिए बातचीत करने से महरूम करता है।
इसके अलावा, उन्होंने गणमान्य हस्तियों से आग्रह किया कि वे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसी) से अनुरोध करें कि वे तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने वाली चीन सरकार की नीतियों पर वैज्ञानिक शोध अध्ययन कराए। इस शोध अध्ययन में वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के नकारात्मक प्रभाव को उजागर किया जाए। प्रतिनिधिमंडल ने इन हस्तियों से तिब्बत में स्वतंत्र मानवाधिकार संगठनों को जाने की अनुमति देने, तिब्बत में राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और संघ और मानवाधिकार रक्षकों की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों को जाने देने चीन पर दबाव डालने का आग्रह किया।
प्रतिनिधिमंडल ने ११वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा सहित सभी तिब्बती राजनीतिक कैदियों की बिना शर्त रिहाई के लिए भी चीन पर दबाव बनाने का आह्वान किया। ११वें पंचेन लामा का १७ मई, १९९५ को अपहरण कर लिया गया और तब से उनके बारे में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए तिब्बत-चीन संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय और अनसुलझी प्रकृति का मानने पर जोर दिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने गणमान्य हस्तियों से तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन और धार्मिक दमन पर चिंता व्यक्त करने और चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मैग्निट्स्की अधिनियम को अपनाने के आह्वान में वैश्विक नेताओं के साथ शामिल होने का आग्रह किया।
प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बती लोगों के वैध प्रतिनिधि (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन) को मान्यता देने, ल्हासा में स्वतंत्र तिब्बत के जमाने की सरकार को बहाल करने के साथ इन दोनों संस्थाओं के साथ आधिकारिक और राजनयिक संबंधों को जोड़ने और गहरा करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने जन प्रतिनिधियों से सभी उपलब्ध मंचों पर तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अपनी चिंताएं व्यक्त करने और आवाज उठाने का भी आग्रह किया।