तिब्बत पर डा० राममनोहर लोहिया (भारत के प्रख्यात समाजवादी नेता) के विचार
तिब्बत पर चीनी हमला, अक्टूबर १९५०
चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया है, जिसका केवल एक मतलब हो सकता है कि एक शिशु को मसल डालने के लिए राक्षस ने कदम बढ़ा लिया है। तिब्बत पर आक्रमण को यह कहना कि वह ३० लाख लोगों को मुक्त करने का प्रयास हैं, भाषा का अर्थ ही मिटा देने के बराबर है और सारे मानवीय संसर्ग और बोध को खत्म कर देना है। इससे आजादी और गुलामी, वीरता और कायरता, निष्ठा और द्रोह, सत्य और असत्य समानार्थक हो जाएंगे। चीन की जनता के प्रति हमारी दोस्ती और आदर कभी कम नहीं होगा किंतु हमें अपनी धारणा व्यक्त कर देनी चाहिए कि इस आक्रमण और शिशु हत्या का कलंक चीन की वर्तमान सरकार कभी नहीं धो सकेगी।
चीन का यह दावा कि वह तिब्बत में अपनी पश्िचमी सीमाओं को सुरक्षित करना चाहता है सर्वथा अनिष्टकर है।
इस आधार पर तो प्रत्येक राष्ट्र संसार भर में अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। इसके अलावा, चीन की तुलना में हिन्दुस्तान के साथ तिब्बत के संबंध अधिक गहरे हैं। मैं सामरिक संबंधो की बात नहीं करता लेकिन विशेषकर पश्िचमी तिब्बत से भाषा, व्यापार और संस्कृति के संबंधो मे यह देखा जा सकता है। तिब्बत में घुसकर चीन की वर्तमान सरकार ने न केवल अंतरराष्ट्रीय सदाचार की ही अवहेलना की है, बल्कि हिन्दुस्तान के हितों
पर भी आघात किया है।
अगर चीन सरकार का रूख संप्रभुता के किसी बिल्कुल अमान्य किंतु तकनीकी और संदेहास्पद मुद्दे पर आधारित है, तो जनमत संग्रह के द्वारा तिब्बत की जनता की इच्छा मालूम की जा सकती है।
अच्छा होगा कि भारत सरकार चीन सरकार को अपनी फौंजें हटा लेने की सलाह दे और दोनों के बीच सच्ची दोस्ती को दृष्टिगत रखते हुए भारत उस तरह के जनमत-संग्रह की व्यवस्था करने का प्रस्ताव रखे।