ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश)। अरुणाचल प्रदेश के तिब्बत समर्थक समूह (टीएसजीएपी) ने २७ अक्तूबर, २०२३ को अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में राज्य के पूर्व मंत्री तानयोंग तातक की अध्यक्षता में आयोजित अपनी बैठक में ताढ़ तारक को टीएसजी अरुणाचल प्रदेश का अध्यक्ष और नीमा सांगे को महासचिव के रूप में निर्वाचित किया। साथ ही बैठक में जल्द ही समिति बनाने का निर्णय लिया गया।
२२ अक्तूबर, २०२१ को टीएसजीएपी के तत्कालीन अध्यक्ष गिचो कबाक के असामयिक निधन के बाद से यह पद खाली पड़ा था। कबाक की याद में उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं और नगरसेवकों ने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने के लिए दो मिनट का मौन भी रखा। सांगे और टीएसजीएपी के संस्थापक सदस्य अनोक वांग्सा ने तिब्बत की स्थिति, तिब्बती मुद्दों पर प्रकाश डाला और अपने विभिन्न मुद्दों को तिब्बत समर्थक समूहों के राष्ट्रीय छतरी निकाय- कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज-इंडिया (सीजीटीसी-आई) में इसके राष्ट्रीय संयोजक आऱ के़ खिरमे के परामर्श से उठाने पर जोर दिया।
टीएसजीएपी की विज्ञप्ति के अनुसार, तारक ने अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए टीम भावना के साथ संगठन का नेतृत्व करने का आश्वासन दिया और तिब्बत मुद्दे को हल करने के लिए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के मध्यम मार्ग दृष्टिकोण का समर्थन किया।
भारत भर में फैले विभिन्न टीएसजी तिब्बत की आजादी के लिए काम करते हैं। कम्युनिस्ट चीन ने १९५९ में तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति का दमन कर अवैध रूप से तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। तिब्बत के आध्यात्मिक धर्मगुरु और तत्कालीन राजनीतिक नेता परम पावन १४वें दलाई लामा हजारों तिब्बतियों के साथ अरुणाचल प्रदेश के रास्ते भारत पलायन कर गए और १९६० के दशक में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की स्थापना की।
तिब्बत की अधिकांश भूमि को लेकर चीन द्वारा आधिकारिक तौर पर १९६५ में तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र गठित किया गया। इसमें तिब्बत के यू-छांग, खाम और अमदो प्रांतों के सभी क्षेत्र शामिल हैं।
इसके बाद से दुनिया भर के तिब्बती परम पावन १४वें दलाई लामा के नेतृत्व में सभी तिब्बतियों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं ताकि परम पावन सम्मानजनक रूप से तिब्बत लौट सकें। इस पूरी लड़ाई में दुनिया भर के तिब्बतियों का प्रतिनिधित्व विभिन्न तिब्बत समर्थक समूह कर रहे हैं।