tibet.net / स्विट्ज़रलैंड। राजनीतिक विद्रोही, वर्तमान राजनीतिक कैदियों के प्रतिनिधि और स्वतंत्रता कार्यकर्ता कूटनीति और मानवाधिकारों के वैश्विक केंद्र जिनेवा में ‘जिनेवा समिट फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी’ के १४वें सत्र में एकत्रित हुए। शिखर सम्मेलन में विश्व स्तर पर उन देशों के मुद्दों पर प्रकाश डाला गया,जिनके मानवाधिकारों के रिकॉर्ड खराब हैं। ताकि उनकी स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए और अधिक करने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय एजेंडे में रखा जा सके। शिखर सम्मेलन में अन्य एकाधिकारवादी शासनों के बीच चीन और उसके उत्पीड़न के तहत क्षेत्रों के अधिकारों के रिकॉर्ड पर विचार-विमर्श किया गया।
‘चीन में मानवाधिकारों के लिए संघर्ष’ शीर्षक से चीन पर केंद्रित शिखर सम्मेलन के एक खंड में तिब्बती कवि और स्वतंत्रता कार्यकर्ता तेनज़िन त्सुंडु, ‘उग्यूरों के लिए अभियान के संस्थापक’ और चीन में एक राजनीतिक कैदी की बहन रुशान अब्बास और हांगकांग वॉच में नीति सलाहकार तथा चीन पर अंतर-संसदीय गठबंधन के सलाहकार जॉय सिउ को विचार रखने के लिए आमंत्रित किया गया।
इस पैनल का संचालन गुलामी विरोधी चैरिटी-‘एराइज’ के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी ल्यूक डी पुलफोर्ड द्वारा किया गया।
आज सुबह शिखर सम्मेलन में बोलते हुए तेनज़िन त्सुंड्यू ने तिब्बत में अपनी यात्रा और जेल के अनुभवों का विवरण प्रस्तुत करके दर्शकों को आकर्षित किया। उन्होंने बताया कि चीनी जेलों में ‘व्यक्ति को तोड़ने’ के लिए आंखों पर पट्टी बांधकर पीटा जाता है, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है, भोजन और नींद से वंचित किया जाता है। उन्होंने इन प्रताड़नाओं को झेलने पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसके लिए तिब्बती बौद्ध और सांस्कृतिक परवरिश ने उन्हें आंतरिक तौर पर सहन शक्ति दी थी और कहा कि ‘असली ताकत वह नहीं है जो बाहर से अत्याचार कर रहा है’, बल्कि वास्तविक शक्ति वह है जो जीवन के उच्च उद्देश्यों के लिए खुद को सशक्त बनाता है। त्सुंड्यू ने कहा कि असली शक्ति शक्ति घृणा, क्रोध और बदला लेने की इच्छा से नहीं आती है।त्सुंड्यू ने अपील की कि वास्तव मेंअसल शक्ति दुश्मन के साथ सहानुभूति रखने में है जो कमजोरी के दौर से गुजर रहा है। त्सुंड्यू ने कहा ‘एक और तरीका है, जो नहीं होना चाहिए। वह है ‘एक-दूसरे से नफरत करना।’
तिब्बत के ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए त्सुंड्यू ने कहा किद्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद जबसंयुक्त राष्ट्र की शुरुआत हो रही थी और इतिहासकी उस अवधि में, जब अधिकांश राष्ट्र स्वतंत्र होने लगे थे, उसी दौर में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया, जिसमें हजारों तिब्बती मारे गए। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर ज्यादातर लोग जागरूक नहीं थेऔर तिब्बत को जानने वालों ने चीन का पक्ष लिया। आज चीनी राष्ट्र में ९६लाख वर्ग किलोमीटर भूमि तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान, मंचूरिया और दक्षिणी मंगोलिया को मिलाकर बनाई गई है। आज के चीन के भूभाग का ६० प्रतिशत हिस्सा कब्जे वाले देशों का है।
अपनी ही सरकार द्वारा सताए और दबाए जा रहे चीनी लोगों पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए त्सुंड्यू ने कहा, ‘मुझे तिब्बती लोगों की उतनी चिंता नहीं है, जितनी मुझे उन चीनी लोगों की चिंता है जो अपनी तानाशाही सरकार के अधीन हैं और पीड़ित हैं।’त्सुंड्यू ने १.४ अरब आबादी वाले चीन का दुनिया में सबसे बड़ा एकाधिकारवादी शासन होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन का समर्थन करने वाली सरकारों और व्यापारिक हितों को हर चीज से ऊपर रखने पर निराशा व्यक्त की। त्सुंड्यू ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, इसका एक दूसरा तरीका होना चाहिए। यह इस तरह नहीं चल सकता। उन्होंने कहा कि तानाशाहों द्वारा तानाशाहों का समर्थन किया जाता है और संयुक्त राष्ट्र में आकर शांति की बात की जाता है। लेकिन वे आंतरिक रूप से अधिक से अधिक लोगों को दबाने के लिए काम करते हैं।’ त्सुंड्यू ने श्रोताओं को बताया कि मानव अधिकार रक्षकों और स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं के बीच एकजुटता ही आगे बढ़ने का रास्ता हो सकता है।
जिनेवा शिखर सम्मेलन के सहयोगी गैर सरकारी संगठनों में से एक ‘स्विस-तिब्बती महिला संगठन’ ने तिब्बती कार्यकर्ता तेनज़िन त्सुंड्यू का शिखर सम्मेलन में बोलने के लिए विशेष रूप से अभिनंदन किया। इसके बाद यूरोप के अन्य हिस्सों में तिब्बत एडवोकेसी के लिए त्सुंड्यू का दौरा निर्धारित है।