कुनचोक डोल्मा याकल्हा
मानवाधिकार के लिए नियुक्त विशेष दूत
चीन अपने ‘चीनी विशेषताओं के साथ मानव अधिकार’ के एजेंडे को बड़ी तेजी से बढ़ावा दे रहा है। इसके तहत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘विकास’ को मानव अधिकारों से अधिक तरजीह देता है। उसका यह प्रयास जिनेवा में मानव अधिकार परिषद सलाहकार समिति की हाल ही में संपन्न 22वीं बैठक में भी जारी रहा।
सलाहकार समिति की चर्चा का एक बड़ा हिस्सा ‘मानव अधिकार को प्राप्त करने में विकास का योगदान’ (संकल्प 35/21) और ‘विकास के अधिकार पर कानूनी रूप से बाध्यकारी साधनों का महत्व’ (संकल्प 39/9) विषय के आसपास घूमता रहा।
जून 2017 में एचआरसी के 35 वें सत्र में ‘सभी तरह के मानवाधिकारों को प्राप्त करने में विकास का योगदान’ शीर्षक से चीन के संकल्प को स्वीकार करने के बाद सलाहकार समिति ने परिषद से अनुरोध किया था कि वह ‘उन तरीकों का अध्ययन करें, जिसमें विकास सभी मानवाधिकारों को प्राप्तव करने में योगदान देता है, विशेष रूप से सर्वोत्तम अनुभवों और प्रथाओं के साथ योगदान देता हो।‘
आम तौर पर प्रस्तावों को वोटिंग के बिना ही स्वीकार कर लिया जाता है, लेकिन अमेरिका ने इस प्रस्ताव पर वोटिंग की अपील की। उसने इस पर सबसे बड़ी चिंता जताते हुए कहा कि चीन का संकल्प ‘विकास और मानवाधिकारों के बीच संबंध को एक तरह से फिर से परिभाषित करने का प्रयास है जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए संस्करण से अलग तरह का है।‘
दुर्भाग्य से चीन का प्रस्ताव 13 मतों के मुकाबले 30 मत से पारित हो गया। विरोध में वोट देने वाले देशों में (संयुक्त राज्य अमेरिका, अल्बानिया, बेल्जियम, क्रोएशिया, जर्मनी, हंगरी, जापान, लातविया, नीदरलैंड, पुर्तगाल, स्लोवेनिया, स्विटज़रलैंड और यूनाइटेड किंगडम) शामिल थे। तीन सदस्य देश (जॉर्जिया, कोरिया, पनामा) मतदान के दौरान अनुपस्थित हो गए।
सलाहकार समिति की हालिया बैठक में भी चीन ने कहा कि विकास का अधिकार ‘अन्य अधिकारों के लिए पूर्व शर्त’ है जिस पर ‘पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।‘
समिति के कुछ विशेषज्ञ सदस्यों ने सवाल किया कि विकास के अधिकार पर कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन थोपने की दिशा में इतनी पहल क्यों की जा रही है, यह देखते हुए कि यह महत्वपूर्ण मानवाधिकार संधियों की भावनाओं और उनके मूल्यों को कम करता है जो पहले से ही लागू हैं। उदाहरण के लिए, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध।
इस महत्वपूर्ण सत्र में नागरिक समाज के कई लोग उपस्थित थे।
मैंने अपनी यह चिंता व्यक्त की कि मानवाधिकारों के लिए विकास के योगदान के बारे में चर्चा करना नकारात्मक प्रथाओं से निपटने के प्रयासों को विफल कर देगा। इस सिद्धांत को मान लेने से राज्य को विकास का बहाना बनाकर मानवाधिकारों को कुचलने की एक तरह से वैधता मिल जाती है।
मैंने कहा, ‘यदि आप विकास और मानव अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं, तो वियना घोषणा और कार्यक्रम कार्रवाई एक महत्वपूर्ण मानवाधिकार दस्तावेज है जो यह स्पष्ट करता है कि आप मानवाधिकारों के उल्लंघन के बहाने के रूप में विकास का उपयोग नहीं कर सकते हैं।‘
मसौदा समूह के रिपोर्टियर मिखाइल लेबेदेव ने जवाब दिया, ‘अगर हमें विकास में नकारात्मक अनुभवों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करना है तो हमारे सामने बहुत अधिक शोध पत्र होंगे क्योंकि कई नकारात्मक पहलू हैं जिनके बारे में हम सभी जानते हैं।
‘मैंने इस पर कहा, ‘यदि आप एक इमारत का निर्माण कर रहे हैं और उसे भवन सुरक्षा के लिए 4 स्तंभों की आवश्यकता है, तो मैं किसी से यह बोलने की अपेक्षा नहीं रखूंगा कि, ‘नहीं, केवल 3 स्तंभों का निर्माण करें, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त समय या स्थान नहीं है।‘
‘हमें एक कदम पीछे आने की जरूरत है और इस तथ्य पर गौर करना चाहिए कि विकास एक उच्च प्रतियोगिता वाली अवधारणा है। इसे देखते हुए हमें मानवाधिकारों के दायित्वों से खुद को दूर करने के लिए विकास का उपयोग करने वाले राज्यों के जोखिमों का आकलन करना चाहिए।‘
मैं तिब्बती खानाबदोशों की वास्तविकताओं को साझा करना चाहूंगा, जिनके पारंपरिक जीवन चीन की तथाकथित विकास नीतियों द्वारा नष्ट कर दिए गए हैं।
‘2006 से, बीस लाख से अधिक तिब्बतियों को चीन के विकास प्रयासों के तहत उनके मूल स्थानों से विस्थापित किया गया है। इन विकास प्रयासों को ‘एक नया समाजवादी क्षेत्र का निर्माण’ कहा गया है। इसमें ग्रामीण तिब्बतियों के जीवन स्तर में सुधार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का दावा किया गया है। लेकिन 2013 में ह्यूमन राइट्स वॉच ने तिब्बती खानाबदोश समुदायों के व्यापक मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में 115 पृष्ठों की एक व्यापक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें पाया गया कि बल प्रयोग और धमकियों का इस्तेमाल कर बड़ी संख्या में खानाबदोशों को उनके मूल स्थानों से विस्थापित किया गया। इस बारे में उनसे कोई पूर्व परामर्श नहीं किया गया और न ही उन्हें कोई अन्य विकल्प प्रदान किया गया था।‘
इस प्रकार से अपनी बात को समाप्त करते हुए मैने कहा, ‘इसीलिए, मानवाधिकारों को प्राप्त करने में विकास के योगदान का आकलन करते समय मानव अधिकारों के उल्लंघन में विकास के योगदान का भी आकलन होना चाहिए।