आलोचकों का कहना है कि इस नीति से तिब्बती छात्रों का अपनी राष्ट्रीय भाषा और संस्कृति से जुड़ाव कमजोर होगा।
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सर्दियों की छुट्टी के बाद जब तिब्बती बच्चे अपने स्कूलों में लौटे तो उन्हें कक्षाओं में केवल चीनी भाषा में पढ़ाई करनी पड़ रही है, क्योंकि अधिकारी इस तरह की नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं। इसके बारे में आलोचकों का कहना है कि चीनी सरकार लक्ष्य छात्रों को अपनी मूल भाषा और संस्कृति से संबंध काट देना है।
क्षेत्र में रहने वाले एक तिब्बती सूत्र ने इस सप्ताह आरएफए को बताया कि शिक्षकों को कार्यशालाएं आयोजित करके सिखाया जा रहा है कि चीनी भाषा में बच्चों को पढ़ाना कैसे शुरू किया जाए।
सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर आरएफए के सूत्र ने कहा, ‘इन परिवर्तनों के पीछे का इरादा छात्रों का ब्रेनवाश करना है।’
उदाहरण के तौर पर, तिब्बत की राजधानी ल्हासा में अब स्कूलों में सभी विषय चीनी भाषा में पढ़ाए जा रहे हैं। मैंने एक बार इनमें से कुछ विद्यालयों के विद्यार्थियों से पूछा कि वे इस बारे में क्या सोचते हैं तो उनमें से अधिकांश ने उत्तर दिया कि वे तिब्बती भाषा में पढ़ाए जाने को प्राथमिकता देते हैं।
स्रोत ने कहा कि पाठ्य-पुस्तकों का अब उत्तर-पश्चिमी चीन के किंघई प्रांत के गोलोग (चीनीः गुओलुओ) तिब्बती स्वायत्त प्रान्त में चीनी में अनुवाद किया गया है। इस तरह अब तिब्बती भाषा को छोड़कर, गणित, विज्ञान और ललित कला जैसे अन्य सभी विषयों को चीनी भाषा में पढ़ाया जा रहा है।
तिब्बत के एक अन्य स्रोत ने आरएफए को लिखित संदेश में बताया कि इनमें से कुछ ग्रंथों का अनुवाद पिछले शैक्षणिक सत्र की शुरुआत तक किया जा चुका था। लेकिन अब सभी तिब्बती स्कूलों में चीनी शिक्षण पर जोर दिया जा रहा है। इस तरह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की राजनीतिक विचारधारा अब शिक्षा का प्रमुख आधार है।
स्रोत ने कहा कि चीनी अधिकारी इन परिवर्तनों की सार्वजनिक चर्चा को दबा रहे हैं ताकि माता-पिता और अन्य संबंधित लोगों द्वारा विरोध-प्रदर्शन को रोका जा सके, जो कि युवा तिब्बतियों के राष्ट्रीय संस्कृति और पहचान के संबंध में उनके ज्ञान पर प्रभाव डालते हैं।
सूत्रों का कहना है कि किंघई में मठों को पहले से ही स्कूल से छुट्टियों के दौरान युवा तिब्बतियों को तिब्बती भाषा पढ़ाने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। प्रांत और पड़ोसी प्रांत सिचुआन में अधिकारियों ने तिब्बती में शिक्षा देने वाले निजी स्कूलों को भी बंद कर दिया है, जिससे छात्रों को सरकारी स्कूलों में जाने को मजबूर किया जा रहा है जहां विशेष रूप से चीनी भाषा में पढ़ाया जाता है।
लंदन स्थित ‘तिब्बत वॉच’ के शोधकर्ता पेमा ग्याल ने कहा, ‘ये बदलाव और नई नीतियां तिब्बती स्कूलों में बहुत पहले शुरू हो गई थीं, लेकिन चीनी सरकार अब उनके बारे में बेहद गोपनीय ढंग से काम कर रही है।’
उन्होंने कहा, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने तिब्बत में विभिन्न राजनीतिक पुनर्शिक्षा अभियान और अन्य शिक्षा अभियान शुरू किए हैं, लेकिन इनमें से किसी अभियान से अब तक वह लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका जो उनका इरादा था। इसलिए अब वे बहुत कम उम्र से तिब्बतियों का ब्रेनवॉश करने की कोशिश करने जा रहे हैं।’
चीनी में शिक्षण के साथ चीनी भाषा का स्थानीय भाषा की शिक्षा की जगह लेने के सरकारी प्रयासों ने न केवल तिब्बतियों के बीच, बल्कि शिंझियांग के तुर्की भाषा-भाषी उग्यूर समुदाय और उत्तरी चीन के आंतरिक मंगोलिया में भी गुस्सा पैदा किया है।
नस्लीय मंगोलियाई स्कूलों में मंगोलियाई भाषा के प्रयोग को समाप्त करने की योजना ने नस्लीय मंगोलियाई लोगों द्वारा ‘सांस्कृतिक संहार’ के रूप में वर्णित इस प्रक्रिया के खिलाफ २०२० की महामारी के दौरान हफ्तों तक छात्रों द्वारा कक्षा बहिष्कार, लोगों द्वारा सड़कों पर विरोध और दंगा दस्तों एवं राज्य सुरक्षा पुलिस द्वारा पूरे क्षेत्र में दमनात्मक कार्रवाई की गई।
पूर्व में एक स्वतंत्र राष्ट्र तिब्बत पर ७० साल पहले आक्रमण किया गया था और चीनी सेना द्वारा इसे चीन में शामिल कर लिया गया था।
सूत्रों का कहना है कि हाल के वर्षों में राष्ट्रीय पहचान का दावा करने के तिब्बती प्रयासों के लिए भाषा अधिकार एक विशेष फोकस बन गए हैं। मठों और कस्बों में अनौपचारिक रूप से संगठित भाषा पाठ्यक्रम चल रहे हैं। इन्हें न केवल ‘अवैध सभा’ घोषित किया गया है बल्कि शिक्षकों पर हमेशा हिरासत और गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहती है।