प्रो0 श्यामनाथमिश्र
पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय महाविद्यालय, तिजारा (राजस्थान)
चीन में फरवरी 2022 में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक के बहिष्कार की बढ़ती संभावना स्वागतयोग्य है। मानवाधिकारों का हनन तथा अन्तरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए चीन अपनी विस्तारवादी नीति पर चल रहा है। उसके लिये मानवीय मूल्य, लोकतंत्र तथा पर्यावररा-संरक्षण महत्वहीन विषय हैं। वर्तमान चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग की सर्वाधिक रुचि ऐसी व्यवस्था मजबूत करने में है जिसके अन्तर्गत वे आजीवन अपने पद पर बने रहें। अपनी शक्ति बढ़ाने के लिये वे चीन के साम्यवादी दल, संवैधानिक संस्थाओं एवं प्रावधानों में लगातार फेरबदल करने में तत्पर हैं।ऐसे पीड़ादायक वातावरण में चीन सरकार ओलम्पिक आयोजित करके विश्व जनमत को केवल गुमराह करेगी।
तिब्बत, इनरमंगोलिया, हांगकांग, ताइवान तथा पूर्वी तुर्किस्तान चीनी उपनिवेशवाद के शिकार हैं। तथाकथित ‘‘एक चीन नीति‘‘ के नाम पर चीन सरकार अपने पड़ोसी देशों की संप्रभुता समाप्त करने में लगी है। वह पड़ोसी देशों को स्वतंत्र देश नहीं मानती। उन्हें चीन का ही अभिन्न अंग बताने में जुटी है। इसके लिये वह इतिहास को झुठला रही है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार चीन की सीमा का मतलब है चीन की दीवार। चीन की दीवार के बाहर के भू-भाग पर चीन का नियंत्रण अवैध कब्जा है। तिब्बत इसी अवैध चीनी नियंत्रण के विरूद्ध 1959 से संघर्षरत है।
तिब्बत एक स्वतंत्र देश था। यह भारत और ची न के बीच बफर स्टेट ( मध्यस्थ राज्य ) था। बलपूर्वक चीन ने 1959 में तिब्बत को अपने नियंत्रण में ले लिया। तिब्बत, इनरमंगोलिया, हांगकांग, ताइवान और पूर्वी तुर्किस्तान को भी बलपूर्वक चीन में मिलाने की चीनी चाल को विफल करना होगा। चीन लगातार इन देशों के विरूद्ध सैनिक कार्यवाही की तैयारी में लगा है। चीन प्रारंभ से साम्राज्यवादी नीति पर अग्रसर है। ऐसे साम्राज्यवादी चीन द्वारा ओलम्पिक का आयोजन निंदनीय है।
अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा तथा एकता-अखंडता एवं संप्रभुता के संरक्षण के लिये साम्राज्यवादी चीनी सैन्य तैयारी के विरूद्ध भारत ने अपनी दृढ़ता का परिचय देकर सराहनीय कार्य किया है। गलवान घाटी में भारत की सैनिक कार्यवाही से चीन को पराजित होना पड़ा है। भारत लगातार सीमावर्ती क्षेत्र में बुनियादी सेवाओं का विस्तार कर रहा है। सैनिक उपकरणों की तैनाती भी बढ़ाई जा रही है। इससे भारतीय सेना का मनोबल मजबूत हुआ है और भारतीय जनता भी तथाकथित ‘‘हिन्दी चीनी भाई भाई‘‘ के मायाजाल से मुक्त हुई है। ऐसे अनुकूल वातावरण में भारत सरकार से अपेक्षा है कि वह यथासंभव चीन द्वारा कराये जा रहे ओलंपिक का विरोध करे। भारत का मित्र और क्वाड सदस्य ऑस्ट्रेलिया भी विरोध में है। रूस एवं चीन के साथ भारत की मीटिंग में भारत द्वारा इसके समर्थन से तिब्बती और तिब्बत समर्थक अप्रसन्न हैं। उनका मत है कि किसी भी स्तर पर भारत द्वारा इसके समर्थन से चीनी विस्तारवाद को मजबूती मिलेगी। क्वाड में शामिल अमरीका का मत भी यही है।
तिब्बती एवं तिब्बत समर्थक कई संगठन चीन में ओलंपिक के आयोजन के कूटनीतिक बहिष्कार हेतु सुव्यवस्थित रूप से अभियान चला रहे हैं। विश्व के अनेक देश कूटनीतिक बहिष्कार में शामिल होंगे, ऐसी उम्मीद है। ये देश और संगठन इस विचार के हैं कि चीन सरकार मानवाधिकारों का सम्मान एवं संरक्षण नहीं कर रही है इसलिये वहाँ ओलंपिक का आयोजन नहीं होना चाहिये। इसके बहिष्कार से चीन के अलोकतांत्रिक व्यवहार पर रोक लगेगी। इससे अन्तरराष्ट्रीय कानून तथा मानवीय मूल्यों की गरिमा मजबूत होगी।
तिब्बती लोगों एवं तिब्बत समर्थकों की लोकतांत्रिक मूल्य, अन्तरराष्ट्रीय कानून, मानवाधिकार, पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति समर्पण का ही प्रमाण है कि वयोवृ़द्ध तिब्बती धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा कोरोना महामारी से उत्पन्न संकट के बावजूद शिक्षण, प्रशिक्षण, प्रवचन एवं संवाद की प्रक्रिया में प्राचीन भारतीय परंपरा में निहित मानवीय मूल्यों, जो कि लोकतंत्र के आधार हैं, की मजबूती की सलाह देते हैं। शांति,अंहिसा,करुणा तथा मैत्री ही लोकतंत्र के आधार हैं। चीन ने साजिशपूर्वक कोरोना महामारी को विश्वभर में फैलाया है। पूरे विश्व को संकट में डालकर वह स्वयं इस महामारी को कमाई का साधन बना चुका है। वह आर्थिक के साथ अन्य कई प्रकार के लाभ भी इससे उठा रहा है, क्योंकि उसके लिये मानवीय मूल्य अनुपयोगी हैं। उसके लिये ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘‘ एक निरर्थक विचार है।
लेकिन तिब्बती शांति-अंहिसा की राह पर हैं। गत 2 अक्टूबर, 2021 को केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में आयोजित औपचारिक गांधी जयन्ती समारोह में प्रधानमंत्री अर्थात् सिक्योंग पेम्पा त्सेरिंग ने इसी विचार पर बल दिया। परमपावन दलाईलामा के आशीर्वाद से तिब्बती संघर्ष शांतिपूर्ण और अहिंसक है। पेंपा त्सेरिंग ने बताया कि वार्ता से ही तिब्बत समस्या का हल निकलेगा।
तिब्बती प्रधानमंत्री पेंपा त्सेरिंग ने भारत के उत्तर पूर्वी प्रदेशों में स्थित विभिन्न तिब्बती बस्तियों के अपने प्रवास में भी तिब्बती संघर्ष को ज्यादा व्यापक और निर्णायक बनाने की बात कही। उन्होंने ‘‘ मध्यममार्ग‘‘ के विचार को स्पष्ट करते हुए कहा कि अपने ही संविधान और कानून के अनुरूप चीन सरकार तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता प्रदान करे, तिब्बत के संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र पर शासन का अधिकार तिब्बती समुदाय को मिले तथा प्रतिरक्षा और अंतरराष्ट्रीय विभाग चीन अपने पास रखे। इससे चीन की संप्रभुता की सुरक्षा के साथ ही तिब्बत को स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा।