शुक्रवार, 22 अक्तूबर, 2010 | स्रोत : आज समाज] वाशिंगटन। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा है कि कम्युनिस्ट चीन के समक्ष और खुलापन एंव स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र के वैशिवक रुख को अपनाने के सिवा अन्य कोई विकल्प नही है और इससे ही लंबित तिब्बत मुददे का मार्ग प्रशस्त होग। निवार्सित तिब्बती नेता ने कहा , ‘ एक बार चीन ज्यादा खुलापन का एहसास करे, तब तिब्बत मुद्दे का बडी आसानी से समाधान हो सकता है। देर सबेर चीन को वैशिवक रुक यानी स्वतंत्रता एंव लोकतंत्र के मार्ग पर चलना ही होगा। ‘ पचहत्तर वर्षीय तिब्बती नेता अमेरिका में ओहियो के सिनसिनाटी में इंटरनेशनल कंडक्टर पुरस्कार ग्रहण करने के बाद बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि एक अरब 30 करोड चीनी जानता को हकीकत जानने का पूरा हक है और वे इस बात का निर्णय लेने में बिल्कुल समर्थ है कि क्या सही है और क्या गलत है । चीनी विद्रोही नेता लू श्यायाबो को वर्ष 2010 के नोबोल शांति पुरस्कार के लिए चुने जाने की चीन द्वारा तीखी आलोचना पर प्रतिक्रिया करते हुए दलाईलामा ने कहा कि पिछले कुछ दशक में वह ध्यान आन मान चौक घटना समेत और खुलापन , और अधिक इंसाफ , कम भ्रष्टाचार की चीनी जनता की मांग का समर्थन करते रहे है। दलाई लामा ने कहा कि नोबल समिति ने इस बार लू के लिए नोबल शांति पुरस्कार की घोषणा की तब उनकी खुशी की सीमा नही रही । उन्होंने कहा कि सीमा नहीं रही । उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार किसी एक व्यक्ति के लिए नही है, बल्कि लू के साथ हजारों ऐसे बुद्विजीवी है जो आजादी की संघर्ष को सही मायने में आगे बढा रहे है। दलाई लामा ने कहा कि यह जरुरी नही है कि ये लोग चीनी पार्टी शासन के खिलाफ है, सही मायनों में ज्यादा खुलापन , ज्यादा पारर्शिता एंव आजादी चाहते है।
चीन में लोकतंत्र से तिब्बत मुद्दा होगा हल
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