चीन ने अब तिब्बत की क्षेत्रीय राजधानी ल्हासा में प्रतिष्ठित जोखांग मठ के बाहर जिपर की खांसी और अन्य सुगंधित धुएं (धूप बत्ती) जलाने पर प्रतिबंध लगा रहा है, अधिकारियों ने इसका कारण वायु प्रदूषण बताया है।
इस कदम से विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल पर पहले से ही पूजा पर लगी रोक को और सख्त कर दिया गया है। मंदिर के बाहर के क्षेत्रों में निर्माण कार्य के बाद सार्वजनिक प्रार्थना और अन्य भक्ति के प्रदर्शनों को रोकने के लिए जोखांग के सामने चौकनुमा बाड़ लगा दिया गया है।
तिब्बत में रहने वाले एक सूत्र ने इस सप्ताह आरएफए को बताया कि तिब्बती में सांग सोल नामक धूप जलाने के लिए जोखांग के सामने दो बड़े ढाँचे स्थापित किए गए हैं, जिन्हें अब उपासकों के लिए पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। ये उपासक प्रत्येक बुधवार को और अन्य विशेष अवसरों पर पारंपरिक रूप से समारोह आयोजित करते रहे हैं।
आरएफए के सूत्र ने कहा, ‘ल्हासा में चीनी अधिकारियों का दावा है कि इन धूपों को अंधाधुंध जलाना पर्यावरण के लिए हानिकारक है और वायु को प्रदूषित करता है।’ चीनी अधिकारियों ने इस मुद्दे में जन जागरुकता पैदा करने के लिए शुरू नवंबर में कार्यशालाओं का आयोजन किया।
सूत्र ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, ‘उन्होंने जोखांग के सामने की पूजा स्थलों के पास सड़क के किनारे प्रचार कार्यक्रम चला रखा है, जहां आधिकारिक बैनर में ‘व्यक्तिगत जागरुकता’ और’ शिक्षा’ के द्वारा संग सोल जैसी जिम्मेदार साधना के बारे में बताया गया है।’
सूत्र ने कहा, ‘जोखांग के सामने संग सोल समारोहों के लिए बनाए गए दो ढांचे बंद हैं।’
नियंत्रण के बढ़ते तरीके
विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों का कहना है कि जोखांग मठ में लगाए जा रहे नए प्रतिबंध, पारंपरिक तिब्बती धार्मिक रिवाजों पर चीनी नियंत्रण के बढ़ते तरीके और बीजिंग द्वारा तिब्बती बौद्ध धर्म को चीनी परंपरा के अनुरूप ढालने के बढ़ते प्रयासों, का संकेत देते हैं।
कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए अप्रैल में ल्हासा में लॉकडाउन के दौरान, दो चीनी शैली के मंडप जोखांग के सामने स्थापित किए गए थे। उस समय इस बात को लेकर चिंता जताई गई थी कि मंदिर परिसर में विदेशी स्थापत्य यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल के दायरे में आएंगे और इससे जोखांग की स्थिति विश्व विरासत जैसी हो सकती है।
और 17 फरवरी, 2018 को मंदिर के परिसर में आग लग गई। इसमें कम से कम एक इमारत जलकर राख हो गई। लेकिन मंदिर की मुख्य प्रतिमा वाले केंद्रीय चैपल तक आग नहीं फैल पाई। इस बुद्ध की प्रसिद्ध मूर्ति को सातवीं शताब्दी में तिब्बती सम्राट सोंगत्सेन गम्पो की दुल्हन चीन से तिब्बत में लाई थी।
सूत्रों ने पहले की रिपोर्टों में आरएफए को बताया था कि तिब्बत में चीनी अधिकारियों ने इस बीच तिब्बती संस्कृति और धार्मिक विश्वास के दृश्य प्रतीकों पर अब तक का सबसे बड़ा हमला करते हुए प्रत्यक्ष रूप से क्षेत्र के कई हिस्सों में प्रार्थना झंडों को नष्ट करने का आदेश दिया है।
एक सूत्र ने कहा कि पुराने हों या नए, सभी मंत्रों की प्रार्थना करने वाले झंडे पर्यावरणीय सफाई और ‘व्यवहार सुधार’ के नाम पर अपने पारंपरिक स्थानों से हटाए जा रहे हैं। यहां तक कि जिन झंडों को लटका दिया गया था, उन्हें भी ध्वस्त किया जा रहा था।
तिब्बत के एक अन्य स्रोत ने इस सप्ताह आरएफए को बताया, ‘तिब्बती लोगों के धार्मिक व्यवहार के हर पहलू को चीन ने नियंत्रित किया है, यह कहते हुए कि हाल ही में नियंत्रण की तंगी ने तिब्बत में पूजा की स्वतंत्रता को और भी बिगड़ने के लिए प्रेरित किया है।
सूत्र ने कहा, ‘तिब्बतियों द्वारा पारंपरिक पूजा स्थलों और यहां तक कि सांग प्रसाद की साइट को बंद करना चीन की सांस्कृतिक क्रांति की याद दिलाता है।’