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क्या आपने ‘पेमाको की गुप्त भूमि’ के बारे में सुना है?
यह वह क्षेत्र है जहां चीन अपनी आगामी १४वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) के ग्रेट बेंड में मेगा हाइड्रोपावर स्टेशन बनाने की योजना बना रहा है।
यह परियोजना थ्री गोरजेस बांध के आकार का तीन गुना होगी, जो भारत जैसे निचले इलाके के देशों के लिए बेहद खतरनाक है। इस बांध का एक और आयाम है- दुनिया के सबसे पवित्र स्थानों में से एक पेमाको लुप्त हो जाएगा।
दुर्भाग्य से हम बीजिंग में नास्तिक शासन से ‘पवित्र’ शब्द का अर्थ समझने की उम्मीद नहीं कर सकते।
शी जिनपिंग के सिद्धांत में ‘राष्ट्र पर शासन करने के लिए, सीमाओं पर शासन करो; सीमाओं पर शासन करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास को मजबूत करो’ है। चीन ने भारतीय सीमा के पार तिब्बत में ६०० ‘मॉडल’ गांवों का निर्माण करके नए महान हेल्समैन के नारे को एक ठोस आकार दिया है। इनमें से कुछ गांव इस पवित्र क्षेत्र में पड़ जाते हैं।
जल विद्युत संयंत्र हों या नए गांवों का निर्माण, इन क्षेत्रों की पवित्रता और प्राचीन शुद्धता हमेशा के लिए खत्म हो रही है।
एक बौद्ध विद्वान और ‘द हार्ट ऑफ द वर्ल्ड: ए जर्नी टू द लास्ट सीक्रेट प्लेस’ के लेखक इयान बेकर ने ‘सभी गुप्त भूमि के राजा’ गुरु पद्मसंभव के आठवीं शताब्दी में पेमाको की यात्रा के बारे बड़े पैमाने पर लिखा है।
बेकर ने समझाया, ‘हिमालयी रेंज का सुदूर पूर्वी छोर (पेमाको) है, जहां (यारलुंग त्संगपो) यानि ब्रह्मपुत्र नद हिमालय पर्वतमाला के बिल्कुल टर्मिनस पर नमचा बरवा की चोटी की चारों ओर से परिक्रमा करते हुए एक हेयरपिन मोड़ बनाता है … सिर्फ पेमाको की महान और आनंदमय भूमि के बारे में सुनते हुए … जो आत्मज्ञान का मार्ग है।’
बेकर ने कई बार पेमाको का दौरा किया: ‘मैंने पेमाको में बाहरी और आंतरिक मंडलियों के अनुक्रम का पालन करने की कोशिश की, जिससे परिक्रमा के केंद्र में एक तरह का स्वर्गिक चक्कर हो गया।’
वह पौराणिक स्थान जल्द ही चीनी इंजीनियरों द्वारा नष्ट कर दिया जाएगा।
बेकर लिखते हैं: ‘शंभाला को मंडल के प्रतिनिधि के तौर पर माना जाता है। अगर कोई मंडल में प्रवेश कर रहा है तो इसमें परिधि की ओर से प्रवेश करने के अनेक रास्ते हैं। … जैसे ही कोई मंडल में प्रवेश करता है, वह रूपांतरित हो जाता है। इस तरह यह एक रूपांतरित स्थान की स्थिति भी है। पेमाको में लोग एक विशेष तांत्रिक बौद्ध देवी दोरजी फागमो के शरीर होने के बारे में कहते हैं, जिन्हें संस्कृत में वज्रवरही कहा जाता है।’
सुरंग खोदने वाली मशीनों के आने के बाद धरती के इस स्वर्ग का क्या होगा? चीनी प्रचार तंत्र फिर भी ‘पारिस्थितिकी के संरक्षण और जीवन यापन (प्रदान करने), स्वास्थ्य, आकर्षण और खुशी’ के द्वारा एक सुंदर जगह बनाने की बात करता है। क्या यह थ्री गोरजेस डैम के आकार के तीन गुना पनबिजली संयंत्र के अनुकूल है? देवी कहां शरण लेंगी?इसके अलावा, क्या वह इन ‘मानव निर्मित’ योजना के लिए सहमत होंगी?
एक और मजाक: दक्षिणी तिब्बत के एक दूरदराज के गांव की एक अज्ञात तिब्बती महिला ड्रोलकर अचानक चीन में प्रमुखता में आ गईं, जब इस साल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के १०० वर्ष पूरे होने के अवसर पर उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा सबसे प्रतिष्ठित सम्मान ‘०१ जुलाई मेडल’ से सम्मानित किया गया। लेकिन क्यों?
अक्तूबर २०१७ में श्री शी ने दो युवा महिला तिब्बती चरवाहों- ड्रोलकर और उनकी बहन को एक पत्र भेजा था, जिन्होंने उन्हें भारतीय सीमा के उत्तर में अपने गांव, युम का परिचय दिया था।
राष्ट्रपति शी ने सीमा क्षेत्र में उनके द्वारा की गई वफादारी और योगदान के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। क्षेत्र में शांति के बिना लाखों परिवारों के लिए शांतिपूर्ण जीवन नहीं होगा।’
लड़कियों का गांव युम मैकमोहन रेखा के उत्तर में कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो सुदूर भारतीय गांव तक्षिंग से दूर नहीं है। यह गांव अचानक आगे स्थापित होनेवाले ६०० गांवों के लिए एक आदर्श गांव बन गया।
युम तिब्बत में सबसे पवित्र स्थानों में से एक था और पवित्र त्सारी तीर्थयात्रा के लिए आखिरी पड़ाव था। चीनी वेबसाइट ‘चाइना तिब्बत ऑनलाइन’ ने इस क्षेत्र की प्रशंसा करते हुए लिखा है, ‘तिब्बत के शंभाला के रूप में प्रसिद्ध, त्सारी टाउनशिप अपनी हरी-भरी वनस्पति, मिले जुले मौसम, शांत झील, बहते हुए ब्रुक, विशाल जंगल, पवित्र पहाड़ों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों के लिए जानी जाती है।
अभी भी कैलाश यात्रा के साथ तिब्बत में सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक त्सारी संयोग से अगस्त १९५९ में लोंगजू में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच पहली झड़प का स्थल बन गया था।
इस तीर्थयात्रा की अनूठी विशेषताओं में से एक यह थी कि यह भारत-तिब्बत सीमा (मैकमोहन रेखा) के ठीक पार चलती थी। इसका आधा हिस्सा तिब्बत में है, जबकि दूसरा आधा हिस्सा भारत के उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी (नेफा या अरुणाचल प्रदेश) में।
युम ने यात्रा में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक भूमिका निभाई। ‘द कल्ट ऑफ प्योर क्रिस्टल माउंटेन: पॉपुलर पिलग्रिमेज एंड विजनरी लैंडस्केप इन साउथ-ईस्ट तिब्बत’ के लेखक टोनी ह्यूबर ने लिखा, ‘तीसरे तिब्बती महीने के दूसरे सप्ताह के दौरान, ‘माउंटेन ओपनिंग’ के लिए प्रारंभिक अनुष्ठान युम गांव में शुरू हुआ, जो त्सारी के पश्चिम में अवस्थित है।
उस समय पर्वत के रक्षक देवताओं की पूजा की जाती थी। सालाना समारोह और त्योहार के इस सप्ताह भर की अवधि को छोले चेन्मो या ‘द ग्रेट रिलिजियस वर्क’ कहा जाता है और यह मुख्य रूप से स्थानीय ग्रामीणों द्वारा किया जाने वाला एक अनुष्ठान था। आज ग्रामीण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लाल झंडे की पूजा करते हैं और गांव के चारों ओर की चट्टानों को लाल रंग में रंग देते हैं।
ह्यूबर ने एक जानकार स्थानीय व्यक्ति के बारे में बातें की, जिन्होंने दो वंशानुगत लामाओं के काल में पहाड़ को खोलने की भूमिका निभाई थी… जैसा कि उनके नाम से पता चलता है। वे रास्ते को साफ करने के लिए और पहाड़ पर गहरे झरने वाले हिमपात और तीर्थयात्रियों पर गिरने की आशंका वाले हिमस्खलन को रोकने के लिए अनुष्ठान सूत्रों के माध्यम से उत्पन्न कुछ जादुई शक्तियों का उपयोग करते थे।’ ये ड्रोलकर के पूर्वज थे।
युम और त्सारी घाटी के निवासी यात्रा की परंपरा के ‘सेवक’ या ‘चौकीदार’ थे। ‘पहाड़ के देवी-देवताओं के लिए गांवों में होनेवाली पूजा उत्सवों के आयोजन में उनकी सक्रिय भूमिका थी’। ह्यूबर के अनुसार, युम त्सारी में तांत्रिक रिट्रीट के विकास का मूल केंद्र था … ऐसा कहा जाता है कि छोले चेन्मो का मूल अर्थ युम क्षेत्र में योगियों द्वारा शीतकालीन ध्यान के अंत को चिह्नित करना और तांत्रिक आकाश की पूजा करना था।’
यह सब १९५१ में तिब्बत पर आक्रमण और चीनी कब्जे के साथ समाप्त हो गया।
जबकि अधिनायकवादी चीन ने पवित्र परंपरा को लगभग पूरी तरह से मिटा दिया है, यह निश्चित रूप से कुछ ऐसा है जिसे लोकतांत्रिक भारत बढ़ावा दे सकता है। नई दिल्ली को तिब्बत (लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम या अरुणाचल प्रदेश में) की सीमाओं के पास सभी पवित्र स्थानों को विकसित करना चाहिए, विशेष रूप से उन सभी स्थानों को जिन्हें पद्मसंभव, गुरु नानक, लामाओं या स्थानीय संतों का आशीर्वाद प्राप्त है।