दैनिक जागरण, 27 मार्च, 2012
देवघर : तिब्बत सरकार के निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री समधोंग रिनपोचे का कहना है कि देश के लोगों को चीन के साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते वे हमारे धर्म, संस्कृति व सभ्यता एवं स्वायत्तता के मामले में दखलंदाजी न करें।
सोमवार को श्याम सुन्दर शिक्षा सदन में रिनपोचे ने पत्रकारों से कहा कि चीन अपने संविधान के तहत ही तिब्बतियों को रखना चाहता है, इसलिए स्वायत्तता की मांग को लेकर पिछले 50 वर्ष से आंदोलन चला आ रहा है और आगे भी जारी रहेगा। यह आंदोलन पूरी तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शो पर अहिंसात्मक रहेगा और इसका पूरा ख्याल किया जाएगा कि लोगों को असुविधा न हो। इस आंदोलन में अभी तक 30 लोग आत्मदाह कर चुके हैं।
उन्होंने कहा कि इस मामले में भारत को जो करना चाहिए वह कर रहा है तथा तिब्बत के 90 हजार लोग भारत में ही रह रहे हैं। लेकिन भारत के बहुत कम लोग तिब्बत की पृष्ठभूमि को जानते हैं। तिब्बत क्या था और अभी क्या है, इसकी सीमा आज भारत व चीन की सीमा हो गई, इसे जानने वाले बहुत कम हैं। ऐसे में सूचना माध्यमों को सशक्त करने की जरूरत है।
गांधी के आदर्शो को नहीं हो रहा पालन
रिनपोचे ने कहा कि भारत में गांधीजी के आदर्शो का पालन नहीं हो रहा है। ग्राम स्वराज का सपना आज भी अधूरा है। अर्थनीति में भारत विदेश का नकल कर रहा है। इसका परिणाम है कि देश सशक्त नहीं हो रहा है तथा भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। अन्ना का आंदोलन जायज है। लेकिन संपूर्ण क्रांति व परिवर्तन के लिए अभी बहुत कुछ करना होगा। भ्रष्टाचार समाप्त होने के बाद राजनीतिक, सामाजिक व अर्थव्यवस्था का स्वरूप भी बताना होगा।
उन्होंने कहा कि एशिया को बाजार बनाने के लिए लोगों को अपनी सभ्यता व संस्कृति से तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में युवाओं को अपनी सभ्यता व संस्कृति के अलावा महात्मा गांधी व जेपी को जानना होगा। बता दें कि समधोंग रिनपोचे वर्ष 2001 से 2011 तक तिब्बत के प्रधानमंत्री थे। इसके पूर्व उन्होंने बनारस के सारनाथ में 30 वर्ष तक शिक्षा देने का काम किया तथा हजारी प्रसाद द्विवेदी के सानिध्य में भी रह चुके हैं। इस मौके पर विद्यालय की प्राचार्या निर्मला ठाकुर, संस्थापक लक्ष्मीकांत ठाकुर, हरेन्द्र कुमार व राजेन्द्र दास आदि उपस्थित थे।