धर्मशाला। निर्वासित तिब्बत सरकार के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) का सूचना एवंअंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) उसनए चीनी विनियमन के बारे में चिंतित है जो ०१ सितंबर २०२३से लागू होने वाला है। इसके तहत तिब्बत के अंदर और चीन में अन्य जगहों पर धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध बढ़ जाएगा। चीन के धार्मिक मामलों के प्रशासन ने ‘मेजर्स फॉर द एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ रिलिजिएस एक्टिविटी साइट्स (धार्मिक गतिविधि स्थलों के प्रशासन के लिए उपाय)’या ‘ऑर्डर नंबर १९’की घोषणा की, जो कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) सरकार की धार्मिक स्वतंत्रता पर चल रही दमनात्मक कार्रवाई का एक और अगला कदम है।
पीआरसी सरकार के यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट ने ३१ जुलाई २०२३ को अपनी वेबसाइट पर विनियमन की घोषणा की। इस विनियमन के लिए मंदिरों, मठों, मस्जिदों आदि को किसी भी धार्मिक गतिविधि आयोजित करने के लिए आधिकारिक अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता होगी, जिसका लक्ष्य चीनी राष्ट्रवाद की मजबूत भावना को औरमजबूत करना और राष्ट्र निर्माण करना है। इसे चीनी भाषा और ‘नस्लीयएकता’को बढ़ावा देने के साथ ही प्रचार और शिक्षा अभियानों के माध्यम से हासिल किया जाएगा।
इन जबरदस्ती के उपायों के साथ-साथ इसी तरह के कई ‘आदेशों’का उद्देश्य तिब्बती बौद्ध सांस्कृतिक और राजनीतिक मामलों पर पीआरसी सरकार के नियंत्रण को अधिक कठोर करना है। विशेष रूप से, ऑर्डर नंबर १९के अनुच्छेद-२७में कहा गया है कि धार्मिक गतिविधि स्थलों के प्रबंधकीय संगठन के सदस्यों को ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व और शासन के वफादार समर्थक’और ‘चीनी राष्ट्रीयता कामुख्य भूमि निवासी’ होना चाहिए। इस गैरकानूनी विनियमन के तहत तिब्बत के वे तिब्बती मठ चीनी अधिकारियों द्वारा कार्रवाई का सामना करने के लिए विशेष रूप से असुरक्षित रहते हैं,जो पीआरसी द्वाराअलगाववादी माने गए परम पावन दलाई लामा की निंदा करने से इनकार करते हैं या उनके प्रति श्रद्धा और निष्ठा व्यक्त करते हैं।
तिब्बती बौद्ध धर्म का वैधानिकउत्पीड़न
बौद्ध धर्म चीन के आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त केवल पांच धर्मों में से एक हैऔर इसकी ‘सामान्य धार्मिक गतिविधियां’१९८२ के चीनी संविधान के अनुच्छेद-३६के तहत नाममात्र संरक्षित हैं। फिर भीचीनी कम्युनिस्ट सरकार ने ‘सामान्य’ शब्द को बार-बारपरिभाषित किया है और उसकीगलत व्याख्या की है। ऐसा उसने सामाजिक स्थिरता बनाए रखने के नाम पर संवैधानिक स्वतंत्रता पर लगाए गए और अधिक प्रतिबंधों को उचित ठहराने के लिए किया है। नया कानून धार्मिक स्थलों को ऐसी गतिविधियां करने से रोकता है जो ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालती हैं,सामाजिक व्यवस्था को बाधित करती हैं और अन्य बातों के अलावाराष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाती हैं।‘राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डालनेऔर सामाजिक व्यवस्था को बाधित करने की यह अस्पष्ट और व्यापक परिभाषा न केवल राजनीतिक गतिविधियों,मौलिक मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के उपयोग को अपराध ठहराती है। लेकिन जब भी चीनी सरकार जरूरत समझती है,यह कानूनतिब्बती बौद्ध सांस्कृतिक और पारंपरिक गतिविधियों कोभी अवैधानिक उत्पीड़न और दंड का शिकार बना लेता है।
१९९४ के बाद सेपीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) अधिकारियों ने तिब्बती बौद्ध मठों और भिक्षुणी विहारों में बड़े पैमाने पर कथित‘देशभक्तिपूर्ण पुन: शिक्षा’अभियान चलाया है जो सरकार के प्रति वफादारी और परम पावन दलाई लामा के प्रति किसी भी तरह के समर्थन और निष्ठा की निंदा करताहै। २०१० मेंपीआरसी सरकार ने ‘ऑर्डर नंबर ८’पारित किया। इसे आधिकारिक तौर पर ‘तिब्बती बौद्ध मठों के लिए प्रबंधन उपाय’ के रूप में जाना जाता है।इसने तिब्बती बौद्ध मठों के आंतरिक मामलों पर सरकार के प्रबंधन और नियंत्रण को बढ़ा दिया। २००७ में ‘ऑर्डर नंबर ५’या ‘तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित लामाओं के पुनर्जन्म के लिए प्रबंधन उपाय’ को अधिनियमित करकेचीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ‘बौद्ध लामाओं के महत्वपूर्ण पुनर्जन्मों को चिहि्नत करने की प्रक्रिया पर नियंत्रण’ का दावा किया। इस ऑर्डर का मुख्य दीर्घकालिक ध्येय १५वें दलाई लामा को चुनने और मान्यता देने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना है।
ऑर्डर नंबर५ की घोषणा से पहले१९९५ मेंपरम पावन दलाई लामा द्वारा तिब्बत के सर्वोच्च लामाओं में से एक के अवतार के रूप में ११वें पंचेन लामा की मान्यता के बादचीन ने ११वें पंचेन लामाजेत्सुन तेनज़िन गेधुन येशी त्रिनले फुंटसोक पाल सांगपो को जबरन गायब कर दिया था। बौद्ध धर्म के११वें पंचेन लामा पिछले २८ वर्षों से गायब हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बार-बार प्रयास के बावजूद उनकी कुशलता और ठिकाने के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
तिब्बती बौद्ध धर्म का चीनीकरण
पीआरसी सरकार केदशकों तक केअवैध कब्जे के बाद भी तिब्बत तेजकठोर धार्मिक नीतियों और कार्रवाइयों के तहतधार्मिक दमन से गुजर रहा है। शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद सेसीसीपी ने ‘तिब्बती बौद्ध धर्म के चीनीकरण’की नीति को लागू करने को प्राथमिकता दी है। यह नीति धार्मिक समूहों को कम्युनिस्टपार्टी के शासन और विचारधारा का समर्थन करके पार्टी को धर्म से ऊपर माननेके लिए मजबूर करती है। चीनी अधिकारियों ने नियमित रूप से तिब्बतियों की धार्मिक स्थलों तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया है, धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया है, धार्मिक स्थलों और प्रतीकों को नष्ट कर दिया है, तिब्बती भिक्षुओं और भिक्षुणियों को बौद्ध धर्म की शिक्षा दी है, जेल में तिब्बती लामाओंपर अत्याचार किया है और परमपावन दलाई के सम्मान में आयोजितधार्मिक गतिविधियों में भाग लेने वाले तिब्बतियों यालामाओं के पास परम पावन की तस्वीरें मिलने पर उन्हें हिरासत में लिया है। इसके अतिरिक्त०४ से १८ वर्ष की आयु के लगभग १०लाख तिब्बती बच्चों को वर्तमान में जबरन उनके माता-पिता से दूर चीनी औपनिवेशिक शैली के आवासीयस्कूलों में रखा गया है, जहां वे तिब्बती भाषा, संस्कृति और धर्म केसीखने और बोलने के अवसर से वंचित हैं।
पीआरसी सरकार बार-बार परमपावन दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की नापाक कोशिशें करती है। वह यह दावा करती है कि परम पावन दलाई लामा के उत्तराधिकारी को नियुक्त करने का सर्वोच्चअधिकार उसके पास है। यह ऐतिहासिक और पारंपरिक रूप से असत्य हैऔर इस दावे को तिब्बती, अंतरराष्ट्रीय समुदाय,बौद्ध और बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा खारिज कर दिया गया है। परम पावन दलाई लामा ने २०११ के एक बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि जो व्यक्ति पुनर्जन्म लेता है,केवल उसी के पास इस बात का वैध अधिकार है कि वह कहांऔर कैसे पुनर्जन्म लेना चाहता है और उस पुनर्जन्मको कैसे मान्यता दी जानी है। इसलिए, परम पावन के पुनर्जन्म का अंतिम अधिकार परम पावन के पास ही सुरक्षित है, किसी अन्य सरकार या व्यक्ति के पास नहीं।
पीआरसी सरकार ने लगातार तिब्बतियों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के वैध प्रयोग को प्रतिबंधित करने वाले नए-नए कानून और नियम बनाए हैं।इसके अलावा, इन नियमों का मुख्य उद्देश्य शी जिनपिंग के तिब्बती बौद्ध धर्म का‘चीनीकरण’करने के उद्देश्य को आगे बढ़ाना है।एक ऐसी प्रक्रिया है जो संभवतः समग्र रूप से तिब्बती पहचान को खत्म करके पूरा होनेवाली है।
तिब्बत में बिगड़ती स्थिति के मद्देनजरहम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह करते हैं कि वे तिब्बत में धार्मिक रीति-रिवाजोंऔर शिक्षाओं पर पीआरसी सरकार द्वारा लागू किए जा रहे गैरकानूनी और कड़े नियंत्रण के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया दें। इसके लिए वेसहयोगियों और साझेदारों की सामूहिक शक्ति और प्रभाव को मजबूत करें। क्योंकि चीन द्वारा केवल तिब्बत में अपना अधिकार बनाए रखने के लिए यह सब किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तिब्बतियों के धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए चीन पर इस बात के लिए दबाव डालना चाहिए कि वह अपनेअंतरराष्ट्रीय दायित्वों और अपने संविधान का सम्मान करे।भले ही वह कम्युनिस्ट पार्टी की वैधता और स्थिति में हस्तक्षेप करता हो या उसे चुनौती देता हो। जब तक पीआरसी सरकार अपनी भेदभावपूर्ण और प्रतिकूल तिब्बत नीतियों को पहचानने, स्वीकार करने और उनका समाधान करने में विफल रहती है, तब तक चीन-तिब्बत संबंधों में सुधार चुनौती बनी रहेगी। अंत मेंतिब्बती समुदाय की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों को दूर करने के लिएयह जरूरी है कि पीआरसी सरकार बिना किसी पूर्व शर्त के परमपावन दलाई लामा के प्रतिनिधियों के साथ मध्यम-मार्ग नीति पर आधारित सार्थक बातचीत फिर से शुरू करे।