तिब्बती धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा द्वारा भारतीय ज्ञान की प्राचीन नालंदा परंपरा का निरंतर प्रचार-प्रसार स्वागत योग्य है। भगवान् बुद्ध के प्रवचनों से भरपूर नालंदा परंपरा में सत्य, अहिंसा, शांति एवं करुणा को महत्वपूर्ण मानवीय मूल्य बताया गया है। जो लोग धर्मविरोधी या नास्तिक हैं उन्हें भी इन मूल्यों की जरूरत है। वे भी अपने जीवन और समाज में शांति-अहिंसा-करुणा चाहते हैं। संसार का प्रत्येक मज़हब अर्थात् पंथ, संप्रदाय या रिलिजन इन्हीं मूल्यों की मजबूती पर जोर देता है। इस प्रकार ये मानवीय मूल्य धार्मिक या धर्मविरोधी व्यक्ति के लिये समान रूप से उपयोगी हैं। इसी जनवरी, 2020 में बोधगया स्थित भारतीय प्रबंध संस्थान में दलाई लामा ने 7वीं-8वीं शताब्दी से जारी भारत-तिब्बत संबंधों की प्रामाणिक व्याख्या करते हुए नालंदा परंपरा को पुनर्जीवित करने पर जोर दिया। वे नालंदा परंपरा को लोकतांत्रिक परंपरा मानते हैं, क्योंकि इसमें व्यक्ति को निर्णायक शक्ति प्रदान की गई है तथा सामाजिक जीवन के नियमन पर जोर दिया गया है। पटना स्थित बिहार न्यायिक अकादमी में न्यायाधीषों और वकीलों को संबोधित करते हुए उन्होंने विष्वास प्रकट किया कि कानून एवं संविधान के शासन पर आधारित भारतीय न्याय प्रणाली उत्तरोत्तर भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करेगी। भारत में विभिन्न मज़हब में सद्भाव का कारण भारत में कानून का शासन है। न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वह इस प्राचीन भारतीय परंपरा की सुरक्षा करे।
दलाई लामा ने कर्णाटक के मनगौड और गोआ में भी प्राचीन नालंदा परंपरा का गौरवगान किया। उनके इस प्रयास की सार्थकता का ही प्रमाण है कि बिहार के मुख्यमंत्री नितीष कुमार ने उनसे बोधगया में भेंट की तथा पटना में उन्हें भावभीनी विदाई दी।
वास्तव में तिब्बती समुदाय भारतीय वातावरण में घुलमिल गया है। निर्वासित तिब्बत सरकार के निर्वाचित सिक्योंग डाॅ. लोबजंग संग्ये द्वारा नववर्ष के साथ भारतीय गणतंत्र दिवस की बधाई इसी मेलजोल का प्रमाण है। डाॅ. लोबजंग संग्ये तो बार-बार कहते हैं कि भारत स्थित तिब्बती समाज ‘‘मेक इन इंडिया’’ का उत्कृष्ट उदाहरण है, क्योंकि भारत में ही हमें सहयोगपूर्ण सुविधायें प्राप्त हैं। दलाई लामा तो भारत को तिब्बत का गुरु तथा तिब्बत को भारत का चेला कहते हैं, क्योंकि बौद्ध दर्षन भारत से ही तिब्बत पहुँचा और विकसित हुआ। वे भारतीय बौद्ध दर्षन को आज भी आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रासंगिक मानते हैं।
भारतीय समाज भी सदैव तिब्बती समुदाय के साथ है। हिमाचल प्रदेष की धर्मषाला में 5 मई 1990 को स्थापित भारत-तिब्बत सहयोग मंच ने इसी जनवरी 2020 में अपनी जोधपुर की चिंतन बैठक में भी तिब्बती सवाल को गंभीरता से उठाया। दलाई लामा तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माननीय सुदर्षन जी ने इसके संस्थापक-संरक्षक माननीय इन्द्रेष कुमार जी को आष्वस्त किया था कि सहयोग मंच अपने कार्य में सफल होगा, क्योंकि तिब्बत पर चीन का कब्जा अवैध और अलोकतांत्रिक है। सहयोग मंच द्वारा जोधपुर चिंतन बैठक में कैलाष मानसरोवर को चीनी चंगुल से मुक्त कराने, तिब्बत को आजाद करने, तिब्बती प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण को सुरक्षित रखने तथा वहाँ मानवाधिकारों की सुरक्षा की मांग की गई। पूर्वी तिब्बत के दावांगपो शहर में चीनी प्रषासन द्वारा भिक्षुओं सहित 30 तिब्बती लोगों की गिरफ्तारी भी सहयोग मंच के लिये चिंता का विषय है। उन पर आरोप है कि वे तिब्बती दलाई लामा की तिब्बत में ससम्मान वापसी, तिब्बत की आजादी तथा मानवाधिकारों की बहाली की मांग कर रहे थे। भारत-तिब्बत सहयोग मंच का यह मत तर्कसंगत है कि भारतीय शांति, सुरक्षा, समृद्धि एवं स्वाभिमान के संरक्षण के लिये तिब्बत की आजादी जरूरी है। देषभर के अतिवरिष्ठ 66 कार्यकर्ताओं की चिंतन बैठक में सहयोग मंच ने पुनः स्पष्ट कर दिया कि चीन की दीवार ही चीन की सीमा है, बाकी सब चीन का अवैध कब्जा है।
अमरीकी कांग्रेस की प्रतिनिधि सभा ने भारी बहुमत से पारित अपनी तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम में तिब्बती पर्यावरण, धार्मिक स्वतंत्रता, दलाई लामा के उत्तराधिकारी तथा मानवाधिकारों की बदहाली को प्रमुखता से उठाया है। इस सहयोग के लिये सिक्योंग डाॅ. लोबजंग संग्ये द्वारा उनके प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन प्रषंसनीय है। भारत में कई तिब्बत समर्थक संगठन लगातार साम्राज्यवादी चीन की दमनकारी नीति का पर्दाफाष कर रहे हैं। भारत-तिब्बत समन्वय केन्द्र और कोर ग्रुप फाॅर तिब्बतन काॅज के संयुक्त संयोजन में ‘‘ए डे फाॅर तिब्बत’’ कार्यक्रम के सफल आयोजन से तिब्बती जनजागरण अभियान को नई गति मिली है। गुजरात विद्यापीठ तथा झारखंड केन्द्रीय विष्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तिब्बती आंदोलन की प्रषंसा करते हुए विष्वास व्यक्त किया गया कि इसे विष्वव्यापी सहयोग एवं समर्थन बढ़ता ही जायेगा। विस्तारवादी चीन सरकार तिब्बत के मामले में बेनकाब हो चुकी है। उसे चाहिये कि वह तिब्बत को ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ प्रदान करे। यह समस्या का सही समाधान है। यह चीन के अपने ही संविधान एवं कानून के अनुरूप है। इससे चीन की एकता-अखंडता-संप्रभुता सुरक्षित रहेगी और तिब्बतियों को स्वषासन का अधिकार मिल जायेगा। प्रतिरक्षा और परराष्ट्र नीति तय करे चीन सरकार। अन्य विषय तिब्बतियों को सौंपे जायें। यही है मध्यममार्ग। इससे चीन और तिब्बत के साथ पूरे विष्व का भला होगा।
चीन की दीवार है चीन की सीमा, बाकी अवैध कब्जा
विशेष पोस्ट
संबंधित पोस्ट