प्रो0 श्यामनाथ मिश्र
पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खेतड़ी (राज.)
ग्यारहवें पंचेन लामा गेदुन चुकी नीमा के 25वें जन्म दिवस के अवसर पर दिल्ली में 25 अप्रैल 2014 को आयोजित विशेष कार्यक्रम में तिब्बतियों के साथ ही बड़ी संख्या मेें विभिन्न तिब्बत समर्थक सामाजिक-राजनीतिक-आध्यात्मिक संगठनों ने एक स्वर में मांग की कि चीन सरकार ग्यारहवें पंचेन लामा को यथाशीघ्र रिहा करे। ज्ञातव्य है कि लगभग बीस वर्ष पहले उन्हें चीन की सरकार ने अवैध रूप से बंदी बना लिया था। तब वे महज चार-पाँच साल के बालक थे। उस समय उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने सबसे कम उम्र का कैदी बताया था। तब से लेकर अब तक उनके बारे में तथा उनके परिवार के बारे में तिब्बत पर अवैध नियन्त्रण स्थापित करने वाली साम्राज्यवादी चीन सरकार ने सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं बताया है। इससे सभी तिब्बतियों एवं तिब्बत समर्थकों का चिंतित होना स्वाभाविक है। वे सभी लगातार मानवाधिकार संगठनों और संयुक्त राष्ट्रसंघ से अपील कर रहे हैं कि चीन सरकार पर दबाव बनाकर पंचेन लामा जी एवं उनके परिवार को चीनी चंगुल से मुक्त कराया जाए।
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान अपनी व्यस्तता के बावजूद कई राजनीतिक दलों और विचारधाराओं के प्रतिनिधि ‘‘मध्यम मार्ग’’ संस्था द्वारा आयोजित विशाल पद यात्रा एवं सार्वजनिक सभा में शामिल हुए। इससे साफ पता चलता है कि तिब्बत के प्रशन पर सभी प्रमुख भारतीय राजनीतिक दल एकमत हैं। इसी तरह अगले दिन जंतर मंतर पर ही आयोजित सर्वधर्म प्रार्थना सभा में सभी आध्यात्मिक पंथों के प्रमुख धर्मगुरू एवं चिंतक शामिल हुए। ये भी ग्यारहवें पंचेन लामा जी की अवैध गिरफ्तारी से चिंतित हैं। उनके द्वारा सामूहिक प्रार्थना की गई और ‘‘मध्यम मार्ग’’ संस्था को आश्वासन दिया गया कि सभी आध्यात्मिक पंथों के धर्मगुरू एकजूट होकर उसके संघर्ष में साथ देते रहेंगे।
चीन सरकार को चाहिए कि वह ग्यारहवें पंचेन लामा को यथाशीघ्र रिहा करे। इसके विपरीत वह तिब्बत में शांतिपूर्ण आंदोलनकारी तिब्बतियों पर तरह-तरह से अत्याचार कर रही है। इसी का नतीजा है कि तिब्बती आंदोलनकारी आत्मदाह करने को मजबूर हो रहे हैं। गत एक-दो वर्षों में ही लगभग डेढ़ सौ तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं। इसी अप्रैल माह में भी एक तिब्बती ने आत्मदाह करके अपना बलिदान किया है। चीन सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ यह बहुत ही कठोर किस्म का बलिदान है। यह मामूली आत्मदाह नहीं है। हर बार की तरह 27 अप्रैल को तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री (सिक्योंग) डाॅ. लोबजंग संग्ये, तिब्बती संसद के स्पीकर पेम्पा त्सेरिंग तथा अन्य निर्वासित तिब्बती प्रतिनिधियों ने तिब्बती आंदोलनकारियों से अपील की कि वे आत्मदाह मत करें। बौद्ध दर्शन के अनुसार अपने खिलाफ की गई हिंसा भी जायज नहीं है। मध्यम मार्ग संस्था द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रमों में बार-बार इस प्रकार की अपील की गई।
चीन सरकार के दबाव में नेपाल सरकार भी तिब्बतियों पर घोर अत्याचार कर रही है। इसका खुलासा ह्यूमन राइट्स वाच द्वारा निर्मित एक वीडियो फिल्म में किया गया है। नेपाल में तिब्बतियों को अनेक प्रकार की पाबंदियों में रहना पड़ रहा है। अपने देश से बाहर रह रहे तिब्बतियों पर भी चीन सरकार दमनचक्र चला रही है। यह नेपाल की संप्रभुता का भी अनादर है। चीन सरकार का इस प्रकार का प्रत्येक कृत्य अमानवीय, अलोकतांत्रिक, कानून विरोधी तथा निंदनीय है। अपनी तिब्बत विरोधी गतिविधियों में उसे किसी तरह की अड़चन पसंद नहीं है। वह इसे चीन का आंतरिक मामला बताती है, जबकि तिब्बत का मामला अंतर्राष्ट्रीय कानून का मामला है। चीन को तिब्बत से बाहर जरूर जाना होगा, क्योंकि उसने अवैध तरीके से तिब्बत को अपने कब्जे में ले रखा है। मध्यम मार्ग संस्था की मांग है कि चीन सरकार तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता प्रदान कर दे। तिब्बत को चीन के अंतर्गत ही स्वशासन का अधिकार मिले। ऐसी मांग चीन के अपने संविधान एवं कानून के अनुकूल है।
चीन सरकार के लिए उचित यही होगा कि वह हठ छोड़कर विश्व जनमत का आदर करते हुए पंचेन लामा जी को रिहा करे। वह तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता देकर वहाँ की खराब हालत को दूर करे। इसके लिए उसे तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों से सार्थक वार्ता करनी चाहिए। भारत ऐसी वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। तिब्बत समस्या के समाधान में ही भारत की सुरक्षा तथा भारत-चीन संबंधों की मधुरता निहित है।
भारत अपने आप को तथाकथित ‘‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’’ तथा भारत के लिए पंचषूल प्रमाणित हो चुके ‘‘पंचषील’’ के मायाजाल से मुक्त करे। चीन द्वारा भारत की हजारों वर्गमील जमीन हड़पी जा चुकी है। अब भी चीन सरकार भारत के कई इलाकों पर अपने दावे कर रही है। वह भारत की एकता-अखंडता तथा संप्रभुता को चुनौती देती हुई भारतीय भूभाग में घुसपैठ कर रही है। भारत को कमजोर करने के लिए चीन सरकार भारत को चारों ओर से घेर चुकी है। तिब्बत की जमीन का उपयोग भारत के खिलाफ किया जा रहा है। दोनों देशों के बीच विश्वसनीय दोस्ती के लिए जरूरी है तिब्बत की आजादी। पहले की तरह फिर से तिब्बत को बफर स्टेट बनाया जाए। भारत एवं चीन के बीच स्वतंत्र तिब्बत का अस्तित्व ही भारत-चीन संबंधों को मजबूत करेगा।