tibet.net / वाराणसी। इंडिया तिब्बत फ्रेंडशिप सोसाइटी, उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डॉ. अंजनी कुमार मिश्रा अपने मुद्रण और प्रकाशन के पेशे के अलावा भारत के तिब्बत के साथ साझा संबंधों के ज्ञान के प्रदर्शन में भी सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं। इस दिशा में उनके प्रयास से गोल्डन इंडिया पब्लिक स्कूल (जीआईपीएस) के निदेशक डॉ. विनोद चतुर्वेदी की अनुमति से काशी के सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र में से एक दुर्गाकुंड में ‘ए डे फॉर तिब्बत’ शीर्षक से ‘चीन-भारत के संबंध में तिब्बत का मुद्दा’ शीर्षक से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। काशी को वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। यह कार्यक्रम गुरुवार, ०९ दिसंबर २०२१ को आयोजित किया गया था।
जीआईपीएस में समाजशास्त्र पढ़ाने वाले श्री रामाज्ञा पांडेय ने अतिथियों का परिचय कराया। अतिथियों में आईटीएफएस यूपी राज्य के सचिव डॉ. अंजनी कुमार मिश्रा, सोसाइटी फॉर इंडो-तिब्बतन बौद्ध अध्ययन के कोषाध्यक्ष श्री अशोक उपाध्याय और आईटीसीओ के समन्वयक श्री जिग्मे त्सुल्ट्रिम शामिल थे। जीआईपीएस के निदेशक डॉ. विनोद चतुर्वेदी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इस आयोजन के महत्व पर जोर दिया और सभी छात्रों और संकायों से पूरे विवेक के साथ सुनने का आग्रह किया। डॉ अंजनी कुमार मिश्रा ने श्रोताओं को इस आयोजन के उद्देश्यों और लक्ष्यों के बारे में जानकारी दी और उन स्कूलों और संस्थानों के नाम भी बताए जहां अतीत में यह आयोजन हुआ था। डॉ. मिश्रा ने आईटीएफएस (इंडो तिब्बत फ्रेंडशिप सोसाइटी) की ऐतिहासिक यात्रा की रूपरेखा बताई, जिसमें उन कई महान शख्सियतों का उल्लेख आया, जिन्होंने आईटीएफएस के तहत भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर युवाओं के बीच भारत-तिब्बत संबंधों को मजबूत करने के मुख्य उद्देश्य के लिए अपना योगदान दिया था।
डॉ.राजनारायण तिवारी ने हर किसी की सांस्कृतिक और सामाजिक जड़ों के बारे में जानने के महत्व पर जोर दिया जो किसी की पहचान की नींव होता है जो दृश्यमान, जीवंत और जोरदार हो सकता है। डॉ. तिवारी ने छात्रों से आग्रह किया कि वे तिब्बतियों ने जो खोया है, उसे जाने और सीख लें। इसके साथ ही तिब्बतियों द्वारा अपनी पहचान को वापस पाने के लिए इतने वर्षों से किए जा रहे के संघर्ष से भी सीखे। इस सीख के माध्यम से यह भी देखें कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झेले गए कष्टों और उसके रास्तों से किस तरह से तुलना की जा सकती है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आईटीसीओ के समन्वयक ने सबसे पहले प्रबंधन, संकाय और छात्रों, विशेष रूप से डॉ.अंजनी कुमार मिश्रा को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने इस बात को सामने रखा कि कैसे तिब्बतियों ने समुद्र तल से १३,००० फीट से समुद्र तल से २५० फीट की ऊंचाई से १९५९ से आज तक की अपनी यात्रा के दौरान संघर्ष किया। उन्होंने अपने संबोधन के दौरान तिब्बत के भीतर रह रहे तिब्बतियों की आकांक्षाएं और प्रतिबद्धता, निर्वासन में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की नीति और कार्यान्वयन, इस जानकारी की पहुंच और भारतीय जनता से समर्थन जैसे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उन्होंने छुआ।
श्री रामज्ञा पाण्डेय ने अपनी टिप्पणी करते हुए और अधिक विवेक के साथ रेखांकित किया कि बच्चों के लिए वर्तमान शैक्षिक संस्कृति के सादे कागज पर एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा खींची जा रही है। इससे शायद ही कभी बच्चे उस ज़िग-ज़ैग रेखा को एक सीधी रेखा में बदलना संभव कर पाएंगे। यह कार्यक्रम लगभग ११:३० बजे शुरू हुआ और छात्रों के प्रश्नोत्तर के साथ १४:३० बजे समाप्त हुआ। इसके बाद गोल्डन इंडियन पब्लिक स्कूल की प्राचार्या श्रीमती ममता शर्मा ने सभी लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया।