अमर उजाला, 18 सितम्बर, 2012
मसूरी। तिब्बतन धर्म गुरु दलाई लामा ने भारत के प्रति आभार जताया है। उन्होंने कहा कि भारत और तिब्बत के बीच आज भी गुरु और शिष्य का रिश्ता है। भारत ने हमेशा हमेशा से तिब्बतियों को सहारा दिया है। वह सोमवार को तिब्बतन होम्स फांउडेशन की स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लेने पहुंचे थे। तिब्बती भाषा में दिए अपने करीब 40 मिनट के संबोधन में दलाई लामा ने स्कूली बच्चों और युवाओं का आह्वान किया कि वे आधुनिक शिक्षा तो ग्रहण करें लेकिन अपनी संस्कृति और सभ्यता को न भूलें।
सेंट्रल स्कूल फॉर तिब्बतन के मैदान में आयोजित कार्यक्रम में संबोधन के दौरान मसूरी में बिताए पुराने दिनों को याद करके दलाई लामा कई बार भावुक हुए। पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात और बिड़ला हाउस में बिताए दिनों का उन्होंने खास तौर पर उल्लेख किया। साथ ही फाउंडेशन के पिछले 50 सालों के उतार-चढ़ाव की चर्चा करते हुए उसे शुभकामनाएं भी दीं।
इससे पहले एसओएस के पूर्व चेयरमेन हेलमेट कूटीन ने कहा कि तिब्बती समाज को हर संभव मदद दी जाएगी। विधायक गणेश जोशी और पालिकाध्यक्ष ओपी उनियाल ने दलाई लामा से अनुरोध किया कि वे धर्मशाला के साथ ही समय-समय पर मसूरी में प्रवास करें। सेंट्रल स्कूल फॉर तिब्बतन के प्रधानाचार्य आरबी सिंह ने स्कूल की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की। टीएचएफ के महासचिव पेमा श्रीरिंग ने संचालन किया। कार्यक्रम के दौरान पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला के अलावा नगर के गणमान्य लोग और धर्मगुरू साक्य रिंपोछे भी मौजूद थे।
दलाई लामा ने तिब्बतन होम्स फांउडेशन की स्वर्ण जयंती स्मारिका का लोकार्पण भी किया। वह जवाहर लाल नेहरू के साथ स्मारिका के कवर पेज पर अपनी फोटो देख अभिभूत हो गए। तीन घंटे तक चले कार्यक्रम में दलाई लामा ने आकर्षक मार्च पास्ट और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की खुलकर प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि तिब्बत से दूर रहकर भी प्रवासी तिब्बती अपनी लोक कला को बचाए हुए हैं। टीचएफ, सीएसटी, राजपुर, गौरीमाफी ऋषिकेश के छात्रों ने मार्चपास्ट में हिस्सा लिया। दलाई लामा ने मार्च पास्ट की सलामी ली। दलाई लामा ने नगर के प्रतिष्ठित स्कूल वाइनवर्ग ऐलन में आयोजित एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया। स्कूल के प्रिंसिपल एल टिंडेल ने सबका स्वागत किया।