जम्मू-कश्मीर में से बनाये गये नये केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख में तिब्बती धर्मगुरु परमपावन दलाईलामा का सभी जगह जोरदार अभिनंदन प्रशंसनीय है। चीन के बुहान शहर से पूरे विश्व में फैली कोरोना महामारी के कारण दलाईलामा गत दो वर्षों तक हिमाचल प्रदेश में धरमशाला स्थित अपने निवास से ही ऑनलाइन प्रवचन कर रहे थे। परिणामतः उनके अनुयायी, समर्थक और प्रशंसक उनके प्रत्यक्ष दर्शन लाभ से वंचित थे। उन्हें उनकी यात्रा की लंबे समय से प्रतीक्षा थी। स्वयम् दलाई लामा भी सामान्य दिनों की तरह फिर से प्रवास करने के इच्छुक थे। अगस्त, 2022 में परिस्थिति अनुकूल होते ही उन्होंने नवगठित केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख में पहली बार आध्यात्मिक प्रवास किया। इस दौरान लेह, जंस्कार, लिंगत्से आदि स्थानों में स्थित बौद्ध मठों के साथ ही वे अन्य सम्प्रदायों से जुड़े मंदिर, चर्च, मस्जिद आदि में भी गये। सभी सम्प्रदायों के लिये उनके मन में सम्मान है यद्यपि वे स्वयम् बौद्ध मतावलंबी हैं।
दलाई लामा भारत को सभी सम्प्रदायों (मत, रिलिजन, मजहब, पंथ) के बीच सद्भाव का विश्व के लिये उत्कृष्ट उदाहरण बताते हैं। उनके अनुसार विष्व के सभी रिलिजन के अनुयायी भारत में हैं। प्रत्येक मजहब का अनुयायी अपनी पूजा पद्धति के अनुरूप आचार-विचार-व्यवहार रखे। इसके साथ ही वह अन्य सभी मजहब के प्रति आदरभाव रखे। सिर्फ अपने रिलिजन को ही सर्वश्रेष्ठ बताने तथा अन्य रिलिजन के प्रति दुर्भावनापूर्ण आचार-विचार-व्यवहार रखने से ही संघर्ष होता है। विष्वस्तर पर साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए एक ही उपाय है-सर्व पंथ समादर भाव। इसी सर्व पंथ समादर भाव अर्थात् सभी आध्यात्मिक पंथों के प्रति एक समान आदरपूर्ण भाव का उदाहरण है भारत।
सभी आध्यात्मिक पंथों के लिये सद्भाव का प्रतीक बन चुके दलाईलामा बौद्ध पंथ से जुड़े कार्यक्रमों में अन्य मतावलंबियों को भी बुलाते हैं और अन्य मतावलंबी भी अपने कार्यक्रमों में उन्हें बुलाते हैं। इसी साम्प्रदायिक सद्भाव का परिणाम था कि लेह स्थित श्रद्धेय कुषोक बकुला रिंपोछे हवाई अड्डे से लेकर उनके निवास जीवस्थल तक सभी सम्प्रदायों के अनुयायी स्वागत में कतारबद्ध खड़े थे। सभी रिलिजन के अनुयायियों ने अपने मठ, मंदिर, चर्च, मस्जिद आदि पूजा स्थलों पर उनका भरपूर स्वागत किया। उन्होंने उनके उपदेश सुने एवं दर्शन तथा आशीर्वाद प्राप्त किये।
लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन तथा लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद् सहित अन्य सभी मतावलंबियों ने भी दलाईलामा के दीर्घजीवन हेतु विशेष पूजादि के आयोजन किये। दलाईलामा ने लद्दाख प्रवास के दौरान षिक्षण केन्द्रों के उद्घाटन भी किये। सिंधु घाट पर लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद् द्वारा अपने वार्षिक सम्मान एवं पुरस्कार से दलाईलामा को सम्मानित किया गया। दलाईलामा के सम्मान में आयोजित विशेष भोज से भी उनकी प्रेरणा, प्रोत्साहन और आशीर्वाद के लिये केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के लोगों की भावविह्वलता स्पष्ट थी।
आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के उपलक्ष्य में अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के पोर्टब्लेयर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भी मुझे विशेष चर्चा के दौरान दलाई लामा के समर्थन तथा साम्राज्यवादी चीन की तिब्बत में जारी दमननीति के विरोध में सुनने को मिला। जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय में संपन्न नेताजी सुभाषचन्द्र बोस एवं वीर सावरकर से संबंधित संगोष्ठी में इस तथ्य पर जोर था कि चीन से संबंध मजबूत करने के लिये भारत अपनी राष्ट्रीय शक्ति में लगातार बढ़ोतरी करे। यही विचार लोकतांत्रिक तरीके से मतदान द्वारा निर्वाचित तिब्बत की निर्वासित सरकार का भी है। निर्वासित तिब्बत सरकार के राजप्रमुख (सिक्योंग) पेंपा त्सेरिंग ने हम भारतीयों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए आश्वस्त किया है कि भारत की आजादी का अमृत महोत्सव भारत को और भी स्ववलंबी तथा शक्तिशाली बनायेगा। तिब्बतियों तथा तिब्बत समर्थकों का मत है कि शक्तिशाली भारत ही तिब्बत समस्या का समाधान करा सकता है। सिक्योंग पेंपा त्सेरिंग ने अगस्त में ही अपनी चेक गणराज्य की यात्रा के दौरान फोरम 2000 की बैठक में तथा चेक गणराज्य की संसद द्वारा आयोजित अपने आधिकारिक स्वागत में तिब्बत में जारी चीनी दमननीति के दुष्परिणामों को सप्रमाण उठाया है। वहाँ के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री तथा संस्कृति मंत्री आदि से मिलकर भी उन्होंने तिब्बत समस्या के समाधान में सहयोग की अपील की है।
ख़ुशी की बात है कि उपनिवेशवादी चीन के विरूद्ध यूरोपीय देश पहले से ज्यादा मुखर हो गये हैं। उनके अनुसार तिब्बत समस्या सम्पूर्ण विश्व के लिये संकट है। चीन की उपनिवेशवादी नीति के शिकार उसके सभी पड़ोसी देश हैं। पूरे विश्व में तिब्बतियों के साथ अन्य देशों के लोग भी चीन के विरूद्ध सक्रिय हैं। उनके प्रदर्शन को और भी गति तथा शक्ति देने का यह सही समय है।
अमरीका और भारत विस्तारवादी चीन पर दबाव बढ़ाये तो सार्थक परिणाम शीघ्र निकलेंगे। अमरीका खुलकर चीन की दमनकारी नीति के विरूद्ध खड़ा है। भारतीय नरेन्द्र मोदी सरकार भी हठधर्मी चीन के विरूद्ध डटी है। चीन को गत कुछ वर्षों से पहली बार भारतीय विरोध झेलना पड़ा है। उसे भारतीय शर्तों के अनुरूप भारत की गलवान घाटी से लौटना ही होगा, जैसा कि उसने डोकलाम में किया था। डोकलाम है भूटान में लेकिन भूटान की सुरक्षा भारत की जिम्मेदारी है। भारत ने अपनी जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभाई थी। अब भी ऐसा ही होगा। इसी विश्वास के बल पर तिब्बती और तिब्बत समर्थक चाहते हैं कि तिब्बत समस्या के शीघ्र समाधान हेतु चीन के विरूद्ध भारत अपने प्रभाव का भरपूर उपयोग करे।