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धर्मशाला। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के नेतृत्व में धर्मशाला में निर्वासित तिब्बतियों ने तिब्बती शहीदों की याद में १० मार्च की सुबह ६३वां तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह दिवस को याद किया, जो पीएलए के अवैध कब्जे के खिलाफ १९५९ में इसी दिन ल्हासा में भड़क उठा था।
स्मरणोत्सव समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में चेक सीनेट के उपाध्यक्ष जिरी ओबरफेल्जर और विशेष अतिथि के रूप में भारतीय राज्यसभा के सदस्य अमरेंद्र धारी सिंह ने भाग लिया। इसके अलावा, इस आधिकारिक समारोह में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के लोकतांत्रिक स्तंभों के प्रमुख, सांसद, सचिव, सीटीए के कर्मचारी, निदेशक, विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि और धर्मशाला के निवासी तिब्बती शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत सिक्योंग पेन्पा त्सेरिंग द्वारा तिब्बती राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ हुई। उसी समय जनता ने तिब्बती राष्ट्रगान गाया। इसके बाद तिब्बती शहीदों के बलिदान को याद करते हुए एक मिनट का मौन रखा गया।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि के भाषण से पहले सिक्योंग पेन्पा त्सेरिंग और अध्यक्ष खेंपो सोनम तेनफेल ने क्रमशः कार्यापालिका और विधायिका के बयान पढ़े।
विशिष्ट अतिथि अमरेंद्र धारी सिंह ने तिब्बत के संघर्ष के साथ-साथ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों की व्याख्या करते हुए सभा को संबोधित किया, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तिब्बत पर चीन के आक्रमण से जुड़ा है।
उन्होंने तिब्बती पठार के सैन्यीकरण, पर्यावरण पतन, अमानवीय दमन और तिब्बती भाषा, संस्कृति और धर्म को नष्ट करने के अभूतपूर्व प्रयासों के लिए चीन को फटकार लगाई।
उन्होंने कहा, ‘चीन को यह कहकर बचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि यह उसका आंतरिक मामला है। यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, यह मानवाधिकारों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का मामला है, जो हमारा लोकाचार है। सांसद अमरेंद्र धारी सिंह ने कहा कि चीन को एक सख्त संकेत भेजा जाना चाहिए कि भारत कब्जे वाले तिब्बत में रह रहे और निर्वासित तिब्बतियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। उन्होंने आगे तिब्बतियों को तिब्बती धर्म और संस्कृति का पालन करने के लिए भारत द्वारा समर्थन दिए जाने का आश्वासन दिया।’
परम पावन दलाई लामा को ‘शताब्दी की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति’ के रूप में वर्णित करते हुए विशेष अतिथि ने यह भी कहा कि, ‘परम पावन इस समय भारत रत्न के सबसे बड़े हकदार हैं। इस समय इस पुरस्कार के लिए उनके कद का कोई व्यक्ति ओर नहीं है।’
अपने संबोधन में मुख्य अतिथि जिरी ओबरफेल्जर ने कहा कि, ‘चेक गणराज्य में हमने कई दशकों तक अधिनायकवादी कम्युनिस्ट प्रणाली का अनुभव किया है और इसलिए हम इसी तरह के इतिहास का सामना कर रहे और दुर्भाग्य से अब तक इसका सामना कर रहे दूसरों समुदायों की स्थिति को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।’ मुख्य अतिथि ने यह भी उल्लेख किया कि उनके देशवासी कितने भाग्यशाली हैं कि उनके पास वक्लेव हॉवेल जैसा नेता हुए, जिन्होंने विवेक और जिम्मेदारी को आर्थिक सफलता से ऊपर रखा। उन्होंने कहा कि, ‘यही कारण है कि चेक गणराज्य की आजादी हासिल करने के बाद शुरुआती महीनों में ही राष्ट्रपति के तौर पर वैक्लेव हॉवेल ने परम पावन दलाई लामा को हमारे देश का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया।’
अपने संबोधन को समाप्त करने से पहले जिरी ओबरफल्जर ने कहा, ‘मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि यदि दुनिया में कोई भी एक राष्ट्र दमन का शिकार है तो कोई भी देश पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हो सकता है। कोई भी अपनी स्वतंत्रता के बारे में सुनिश्चित नहीं हो सकता है और इसलिए उन्होंने तिब्बती की लड़ाई को ‘सबसे महत्वपूर्ण मानवीय जरूरत- लोगों की आत्मा और आत्मा की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई’ के तौर पर रेखांकित किया।’
शांति मार्च शुरू होने से पहले ‘आधिकारिक १० मार्च की सभा’ प्रार्थना के साथ संपन्न हुई।